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23 दिसंबर को ही क्यों मनाया जाता है राष्ट्रीय किसान दिवस? जानें इसकी कहानी

जनता जनार्दन संवाददाता , Dec 23, 2025, 11:30 am IST
Keywords: National Farmers Day   भारत   राष्ट्रीय किसान दिवस   चौधरी चरण सिंह   
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23 दिसंबर को ही क्यों मनाया जाता है राष्ट्रीय किसान दिवस? जानें इसकी कहानी

भारत एक ऐसा देश है जिसकी पहचान सदियों से कृषि और किसानों से जुड़ी रही है. यहां की बड़ी आबादी आज भी खेती-किसानी पर निर्भर है और देश की खाद्य सुरक्षा से लेकर अर्थव्यवस्था तक में किसानों की भूमिका बेहद अहम है. किसानों के इसी अमूल्य योगदान को सम्मान देने और उनके संघर्ष, मेहनत व समर्पण को याद करने के लिए हर साल 23 दिसंबर को राष्ट्रीय किसान दिवस मनाया जाता है.

राष्ट्रीय किसान दिवस केवल एक प्रतीकात्मक दिन नहीं है, बल्कि यह देश के अन्नदाताओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और कृषि क्षेत्र से जुड़ी चुनौतियों व सुधारों पर विचार करने का अवसर भी है. यह दिन भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है, जिन्हें व्यापक रूप से “किसानों का मसीहा” कहा जाता है.

राष्ट्रीय किसान दिवस की शुरुआत कैसे हुई?

राष्ट्रीय किसान दिवस की शुरुआत वर्ष 2001 में हुई थी. उस समय केंद्र में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की सरकार थी और अटल बिहारी वाजपेई देश के प्रधानमंत्री थे. सरकार ने यह निर्णय लिया कि चौधरी चरण सिंह की जयंती को राष्ट्रीय किसान दिवस के रूप में मनाया जाएगा.

इसका मुख्य उद्देश्य था किसानों के योगदान को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाना, उनके अधिकारों के प्रति समाज को जागरूक करना और कृषि क्षेत्र में सुधार की दिशा में निरंतर प्रयास करना. इस दिन किसानों को आधुनिक खेती की तकनीकों, सरकारी योजनाओं, नई कृषि नीतियों और टिकाऊ खेती के तरीकों की जानकारी दी जाती है.

चौधरी चरण सिंह: किसानों के मसीहा

चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर 1902 को उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के नूरपुर गांव में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था. उन्होंने बीएससी और कानून की पढ़ाई की और इसके बाद राजनीति में कदम रखा. वे जुलाई 1979 से जनवरी 1980 तक भारत के पांचवें प्रधानमंत्री रहे. हालांकि उनका कार्यकाल छोटा रहा, लेकिन किसानों और ग्रामीण भारत के लिए उनका योगदान बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है.

चौधरी चरण सिंह का पूरा राजनीतिक जीवन गांव, किसान और खेतिहर मजदूरों के हितों के लिए समर्पित रहा. उन्होंने उत्तर प्रदेश में जमींदारी प्रथा के उन्मूलन, भूमि सुधार और किसानों को उनकी फसलों का उचित मूल्य दिलाने के लिए कई ऐतिहासिक कदम उठाए. उनका स्पष्ट मानना था कि अगर किसान खुशहाल नहीं होंगे तो देश भी प्रगति नहीं कर सकता.

वे परिवारवाद और जातिवाद के कट्टर विरोधी थे और सादगीपूर्ण जीवन के लिए जाने जाते थे. उनकी नीतियों और विचारों ने भारतीय कृषि व्यवस्था को एक नई दिशा दी. उनके योगदान को सम्मान देते हुए वर्ष 2024 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया.

भारत की अर्थव्यवस्था में किसानों की भूमिका

भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र की भागीदारी आज भी महत्वपूर्ण है. देश की 60 प्रतिशत से अधिक आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से खेती और उससे जुड़े कार्यों पर निर्भर है. किसान न केवल देश के लिए अनाज उगाते हैं, बल्कि खाद्य सुरक्षा को भी सुनिश्चित करते हैं.

अगर किसान नहीं होंगे तो न केवल अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा, बल्कि आम नागरिकों का जीवन भी प्रभावित होगा. इसके बावजूद किसानों को आज भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिनमें जलवायु परिवर्तन, फसलों का उचित मूल्य न मिलना, कर्ज का बोझ और आधुनिक तकनीकों की कमी प्रमुख हैं.

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