सऊदी अरब के दौरे पर पहुंचे ट्रंप, लड़ाकू विमानों ने एस्कॉर्ट किया

सऊदी अरब के दौरे पर पहुंचे ट्रंप, लड़ाकू विमानों ने एस्कॉर्ट किया

अमेरिका के पूर्व और अब फिर से निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल की पहली औपचारिक विदेश यात्रा के लिए सऊदी अरब का रुख कर एक बार फिर वैश्विक राजनीति को चौंका दिया है. इस यात्रा ने न केवल अमेरिका की पारंपरिक कूटनीतिक प्राथमिकताओं को फिर से परिभाषित किया है, बल्कि मध्य-पूर्व में उभरते राजनीतिक समीकरणों, रणनीतिक गठबंधनों और निवेश आधारित कूटनीति को भी एक नई दिशा दी है.

जैसे ही ट्रंप सऊदी अरब की राजधानी रियाद पहुंचे, सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (MBS) खुद एयरपोर्ट पर उनका स्वागत करने पहुंचे—जो इस यात्रा की गर्मजोशी और राजनीतिक महत्त्व को रेखांकित करता है. ट्रंप को वहां सऊदी संस्कृति के अनुरूप पारंपरिक अरबी कॉफी परोसी गई, जिससे यह संकेत गया कि दोनों देश एक बार फिर से गहरे कूटनीतिक रिश्ते की ओर बढ़ रहे हैं.

सऊदी अरब को फिर प्राथमिकता

अमेरिका के राष्ट्रपतियों के लिए आमतौर पर पहली विदेश यात्रा कनाडा, मेक्सिको या यूरोपीय देशों की होती है. लेकिन ट्रंप इससे पहले भी 2017 में इसी परंपरा को तोड़ते हुए राष्ट्रपति बनने के बाद सबसे पहले सऊदी अरब पहुंचे थे. अब 2025 में दोबारा सत्ता में आने के बाद उन्होंने फिर से वही संकेत दिया—"मित्र वही, जो पैसे में भारी!"

ट्रंप ने राष्ट्रपति पद की दोबारा शपथ लेने के बाद सबसे पहला फोन सऊदी क्राउन प्रिंस को किया, और मीडिया से यह भी स्पष्ट कर दिया कि "जिस देश में अमेरिका में सबसे अधिक निवेश होगा, वही उनकी पहली यात्रा का हकदार होगा."

600 अरब डॉलर से 1 ट्रिलियन डॉलर तक

ट्रंप के बयान के तुरंत बाद सऊदी सरकार ने अमेरिका में 600 अरब डॉलर (लगभग ₹50 लाख करोड़) निवेश का वादा किया. लेकिन ट्रंप का जवाब और भी बड़ा था—उन्होंने इस आंकड़े को 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचाने की इच्छा जताई. उनके अनुसार, इसमें सबसे बड़ा हिस्सा अमेरिकी रक्षा उपकरणों की खरीद का होना चाहिए.

सऊदी अरब का सॉवरेन वेल्थ फंड (PIF) पहले से ही अमेरिका की कई कंपनियों में निवेश कर चुका है. रिपोर्टों के अनुसार, इसके पास लगभग 925 अरब डॉलर की संपत्ति है, जिससे आने वाले वर्षों में निवेश की दिशा और तीव्रता दोनों बढ़ने की संभावना है.

उधर, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) ने भी आगामी 10 वर्षों में अमेरिका के एआई, सेमीकंडक्टर, ऊर्जा और इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में 1.4 ट्रिलियन डॉलर निवेश करने की मंशा जताई है. इसका साफ अर्थ है कि ट्रंप की विदेश नीति में अब ‘भू-राजनीति’ के साथ ‘वित्त-नीति’ भी एक मजबूत स्तंभ बन चुकी है.

खाड़ी देशों से रिश्तों की पुनर्बहाली

अपने पहले कार्यकाल में ट्रंप ने सऊदी अरब, UAE और अन्य खाड़ी देशों के साथ बेहद घनिष्ठ संबंध बनाए थे. उन्होंने न केवल विशाल रक्षा सौदों को आगे बढ़ाया, बल्कि अब्राहम एकॉर्ड्स के ज़रिए इस्लामिक देशों और इज़राइल के बीच ऐतिहासिक समझौते भी कराए.

अब, अपने दूसरे कार्यकाल में ट्रंप इस अभियान को आगे ले जाना चाहते हैं. उन्होंने संकेत दिए हैं कि सऊदी अरब और इज़राइल के बीच संबंधों को औपचारिक रूप देने के लिए अमेरिका मध्यस्थ की भूमिका निभाएगा.

हालांकि सऊदी अरब ने फिलहाल साफ किया है कि वह तब तक इज़राइल को मान्यता नहीं देगा जब तक कि फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता नहीं मिलती, जिसकी राजधानी पूर्वी यरूशलम हो और सीमाएं 1967 के पहले जैसी हों.

ट्रंप को उम्मीद है कि अब्राहम एकॉर्ड्स का विस्तार करके वे सऊदी को भी इस कड़ी में शामिल कर लेंगे, जिससे अमेरिका, इज़राइल और खाड़ी देशों के बीच एक नया त्रिकोणीय गठबंधन तैयार हो सके.

ट्रंप की 'डैमेज कंट्रोल' रणनीति

सऊदी पत्रकार जमाल खाशोज्जी की हत्या के बाद अमेरिका और सऊदी अरब के रिश्तों में काफी तनाव आ गया था. लेकिन ट्रंप प्रशासन और उनके दामाद जेरेड कुशनर ने उस दौरान बैकचैनल डिप्लोमेसी के ज़रिए इस संकट को संभाला.

रिपोर्टों के अनुसार, इसी विश्वास के चलते सऊदी अरब ने ट्रंप के पद छोड़ने के बाद भी कुशनर की निजी निवेश फर्म में 2 अरब डॉलर (17,000 करोड़ रुपये) का भारी-भरकम निवेश किया. यह इस बात का प्रतीक था कि ट्रंप परिवार और सऊदी शासन के बीच राजनीतिक से कहीं आगे जाकर आर्थिक विश्वास और रणनीतिक सहयोग भी मौजूद है.

अमेरिका की अर्थव्यवस्था और वैश्विक प्रभाव

ट्रंप की यह यात्रा उस वक्त हो रही है जब अमेरिकी अर्थव्यवस्था 2025 की पहली तिमाही में गिरावट की ओर बढ़ रही है — जो पिछले तीन वर्षों में पहला बड़ा आर्थिक झटका माना जा रहा है. उनके टैरिफ आधारित व्यापार नीति के कारण वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाएं प्रभावित हो रही हैं, और व्यापारिक अस्थिरता का माहौल बना है.

ऐसे में ट्रंप का सऊदी अरब दौरा केवल राजनयिक उद्देश्य नहीं बल्कि वित्तीय संतुलन के लिए भी किया गया कदम है. यह अमेरिका की अर्थव्यवस्था में सऊदी अरब जैसे पूंजी सम्पन्न देशों के निवेश को आकर्षित करने की रणनीति का हिस्सा है.

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