![]() |
अघोराचार्य श्री बाबा कीनाराम जी, बाबा कीनाराम चालीसा
अमिय पाण्डेय ,
Sep 27, 2020, 17:39 pm IST
Keywords: Baba Kinaram Chalisa Baba Kinaram Ji Kinaram Chalisa किनाराम चालीसा जय बाबा कीनाराम जी बाबा कीनाराम चालीसा किनाराम बाबा जय बाबा कीनाराम जी जय जो बाबा जी किनाराम बाबा
![]() दोहा
श्री सतगुरु की कृपा से,
करु अमल गुण-गान।
संतन हित अवतरित भे,
कीनाराम भगवान।।
मैं पापी मतिमन्द हूँ,
केवल आस तुम्हार।
भक्ति मुक्ति अरु शक्ति दे,
उर तम हरहु अपार।।
चौपाई
जय हे कीनाराम गुनखानी,
जय-जय-जय हे औघड़दानी।
अकबर सिंह रघुवंश कुमारा,
तेहि सुत होई नाथ अवतारा।
दत्तात्रेय शिवा गुरु पाहीं,
तुम सम और शिष्य कोउ नाहीं।
पाउन ज्ञान जो अगम अपारा,
नहि विरचित कोय संसारा।
तुम समान नहीं जग में जोगी,
यों तो हुए विरक्त वियोगी।
संतन मह तुम भयउ सुजाना,
तुम सम और न ब्रह्म को जाना।
ब्रह्म ज्ञान के तुम हो ज्ञाता,
तुमहीं ऋद्धि-सिद्धि के दाता।
तुम्हरी कृपा जाहि जग पावै,
दुःख दरिद्र भुलहु नहिं आवै।
निशि-दिन जो प्रभु नाम उचारा,
भव वारिध सो होवहि पारा।
नाम लेत अघ नासै वैसे,
तूल राशि चिनगारी जैसे।
छूटहिं रोग महाभयकारी,
पावहिं सुत जो बंध्या नारी।
भक्ति भाव से नेह लगावै,
सो प्राणी बैकुण्ठ सिधावै।
जा कहं ऋण होवे अधकाई,
नाम जपे अरु ध्यान लगाई।
निश्चय होय उऋण व प्राणी,
सुख सम्पत्ति छावै घर आनी।
कैदी होय जेल जो जावै,
तब पूजा में ध्यान लगावै।
निशि-दिन धरे चरण में ध्यान,
सहस बार जप करहिं सुजाना।
छूटे कैद से संशय नाहीं,
यदि विश्वास करे उर माही।
लागे भूत-प्रेत हो जबहिं,
मठ के अन्दर आवै तबहीं।
करि असनान ध्यान पग लावै,
भोग लगाय के हवन करावै।
प्रेत-पिशाच छोड़ि संग भागे,
फिर नहि उनके संग में लागे।
जो तब चरणन ध्यान लगाई,
सो नर मन वांछित फल पाई।
तुमहीं नई हिह में जाई,
बुढ़िया का सुत अभय कराई।
बीजा राम नाम रत ताही,
अपने साथ-साथ निरबाही।
काशी में जा सिद्धि दिखाई,
कालू राम गे चकराई।
मुर्दा को जिन्दा कर दीन्हा,
राम जियावन कहि संग लीन्हा।
कालू किरिम कुण्ड पर जाई,
तुम्हरे घट महं स्वयं समाई।
सब अधिकार दिया तुम पाही,
तुम सा औघड़ जग मह नाही।
किरिम कुण्ड पर गद्दी थापी,
तुम सा हुआ न कोई परतापी।
तीन और गद्दी शुचि न्यारे,
हरिहरपुर देवल पगु धारे।
यों तो आप रामगढ़ वासी,
गद्दी पर गद्दी परकासी।
सब गद्दी महं श्रेष्ठ बखानी,
दर्शन कर फल पावहिं प्रानी।
निज कर सो एक कूप सवारा,
नाम राम सागर जेहि धारा।
कमी देख ईंटा नहि पाये,
गोईठा ही से उसे बंधाये।
आज तलक हैं कीर्ति निशानी,
जिसमें चार किसिम का पानी।
चारों घाट चार गुण भारी,
पूरब नहाय तो जाय तिजारी।
दर्शन हित समाधि पर जावे,
लौ विभूति तन भस्म लगावै।
निश्चय रोग- दोष छुटि जाई,
दर्शन ही से पाव पराई।
जो नित पाठ करै चालीसा,
भव से पार करहि जगदीशा।
मनसा सुत औघड अबिनासी,
काटहु शीघ्र गले की फांसी।
निरालम्ब हैं अब यह दासा,
लक्षमण के उर करहु निवासा।
बार-बार बिनती करूं, धरूँ चरण सुखधाम।
इच्छा पुरन कीजिए, जय -जय कीनाराम।।
आरती
तब नाम कीना कीर्तनम,
तव ध्यान मंगल मंगलम।
चरणारविन्द भजन्ति नित्यम,
मोक्ष पद ते पावतम।
तव नाम कीना ब्रह्म कीना,
मृतक को तुम प्रान दीना।
तव कूप ज्ञान प्रदायकम,
तव भस्म मंगल मंगलम।।1।।
तब नाम किना कीर्तिनम,
जे लेत नित तव आरती,
दुःख हरनि क्लेश निवारती,
तव नाम जब उद्घोषणम,
यमदूत भागत यमपुरम,
तव स्थान श्री यदुनाथकम,
हनुमंत सहित सियावरण,
यहाँ बसत विघ्न बिनायकम,
द्रोपदी पाण्डु युधिष्ठिर।।2।।
तब नाम कीना कीर्तिनम,
तव पुरी पावनि रुचि करम,
त्व जनक जननी नमाम्यहम,
यह कहत बद्री दासकम,
क्री कुण्ड अति फल दायकम,
तव स्थान नित्य प्रणाम्यहम,
गो विप्र रक्षक गौतमम,
नित करत हैं हर ताण्डवम,
तव ध्यान मंगल मंगलम।।3।।
तक कूप ज्ञान प्रदायकम,
तव भस्म मंगल मंगलम।
तब नाम कीना कीर्तिनम......
दोहा
सोवत कैनिशि ध्यान धरि,
जागत करत प्रणाम।
तिनकर सकल मनोरथ,
पूरवहि कीनाराम।।
परम रम्यबट-वृक्ष यह,
धन्य धन्य यह ग्राम।
सभी जीव नर नारि को,
बद्री करत प्रणाम।।
।।ऊँ श्री अघोरेश्वराय नमः।। |
क्या आप कोरोना संकट में केंद्र व राज्य सरकारों की कोशिशों से संतुष्ट हैं? |
|
हां
|
|
नहीं
|
|
बताना मुश्किल
|
|
|