'मैं आया नहीं हूं, लाया गया हूं, खिलौना देकर बहलाया गया हूं'-कहने वाले जानकी बल्लभ चले गये

जनता जनार्दन संवाददाता , Apr 08, 2011, 14:12 pm IST
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'मैं आया नहीं हूं, लाया गया हूं, खिलौना देकर बहलाया गया हूं'-कहने वाले जानकी बल्लभ चले गये पटना: 'निराला निकेतन' की गौये उदास हैं, हनक भरी आवाज़, और मनुहार भरा लाड़ अब उन्हें नहीं  मिलेगा। उनका रखवाला अब खुद दुनिया की रखवाली करने वाले के पास जा पहुँचा है। 'मेरे पास आकर बैठिए, अब मैं चल रहा हूं..' यही वे शब्द हैं जो मुजफ्फरपुर स्थित 'निराला निकेतन' में छायावाद के अंतिम स्तम्भ हिन्दी के मूर्धन्य कवि आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री ने निधन से पहले पत्नी छाया देवी से कहे थे।

गुरुवार की रात आचार्य का निधन हो गया। वे 98 वर्ष के थे। वर्ष 1916 में गया के मैरवा में जन्मे शास्त्री ने मुजफ्फरपुर को अपनी कर्मस्थली बनाया। वे यहां वर्ष 1939 में संस्कृत महाविद्यालय में संस्कृत शिक्षक के रूप में आए थे। इसके बाद उन्होंने राम दयालु सिंह महाविद्यालय में हिन्दी और संस्कृत के विभागाध्यक्ष के रूप में काम किया था। यहीं से उन्होंने 1978 में सेवानिवृत्ति ली।

उनके साहित्य के प्रति रुझान को इसी बात से समझा जा सकता है कि उन्होंने 16 वर्ष की उम्र में ही अपनी पहली पुस्तक 'काकली' लिखी थी। इसके बाद तो उन्होंने साहित्य की दुनिया को कई अनमोल तोहफे दिए। इसी से प्रभावित होकर सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने उनसे मुलाकात की थी और उसके बाद तो आचार्य की लेखनी चल पड़ी।

उनकी पड़ोसी रहीं साहित्यकार डॉ़ रश्मि रेखा कहती हैं कि वे तो मेरे पिता के समान थे। वह कहती हैं कि उनकी रचना का कोई सानी नहीं। वे लिखते हैं "तन चला संग, पर प्राण रह जाते हैं! जिनको पाकर था बेसुध, मस्त हुआ मैं, उगते ही उगते, देखो, मस्त हुआ मैं।"

वह कहती हैं कि आचार्य अपनी पत्नी छाया देवी को काफी प्यार करते थे। यही कारण है कि उनकी मौत के बाद छाया देवी की स्थिति काफी खराब हो गई है। उनका आवास निराला निकेतन हिन्दी प्रेमियों का तीर्थ बना रहता था, परंतु अब साहित्यकारों को निराला निकेतन की साहित्यक परंपरा समाप्त होने का भय सता रहा है।

मूर्धन्य साहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठित आचार्य ने 1935 से 1945 के बीच 55 कहानियां लिखी हैं। इसके साथ ही उन्होंने कई पुस्तकों और पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। आचार्य की मुख्य रचनाओं में रूप-अरूप, तीर-तरंग, शिप्रा, मेघ गीत, अवंतिका, धूप दुपहर की (गजल संग्रह) के अलावा दो तिनकों का घोंसला और एक किरण : सौ झाइयां काफी प्रसिद्ध रही। इसके अलावा उन्होंने नाटक, गीत नाट्य, ललित निबंध, संस्मरण, आत्मकथा भी लिखकर साहित्य दुनिया को सौंपी।

एक साहित्यकार उनके संस्मरण को सुनाते हुए कहते हैं कि बिहार के सबसे सर्वश्रेष्ठ और प्रतिष्ठित राजेन्द्र शिखर सम्मान प्राप्त करने के अवसर पर उन्होंने बड़ी बेबाकी से कहा था कि "मैं आया नहीं हूं, लाया गया हूं, खिलौना देकर बहलाया गया हूं।" उस समय राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद भी मौजूद थे। वह कहते हैं कि पिछले वर्ष भी जब इन्हें पद्म श्री से नवाजा जाना था तो उन्होंने इस सम्मान को ठुकरा दिया। हालांकि साहित्य में उनके अहम योगदान के लिए दयावती पुरस्कार, राजेन्द्र शिखर सम्मान, भारत-भारती सम्मान, साधना-सम्मान, शिवपूजन सहाय सम्मान से नवाजा जा चुका है।
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