दिलचस्प मोड़ पर, उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव

दिलचस्प मोड़ पर, उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव
8 जनवरी को चुनाव आयोग द्वारा उत्तर प्रदेश, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और मणिपुर राज्यों हेतु चुनाव तिथि की घोषणा के साथ हीं इन पांच राज्यों में आचार संहिता लागू हो गई है. जिसमे उत्तर प्रदेश और पंजाब के चुनाव पर सभी के नजरें सबसे ज्यादा टिकी हुई हैं. परन्तु भाजपा के दृष्टिकोण से उत्तर प्रदेश का चुनाव सेमीफाइनल है, जिसे वो किसी भी कीमत पर हारना नहीं चाहेगी. पंजाब में ये सिर्फ कांग्रेस का खेल बिगाड़ना चाहती है. अन्यथा वहां दूर दूर तक सत्ता में इसके आने की कोई संभावना नहीं है. उत्तर प्रदेश में 2017 की हीं तरह सात चरणों में चुनाव होगा. पहले चरण का मतदान पश्चिम उत्तर प्रदेश में 10 फ़रवरी को होगा, तो सप्तम 7 मार्च को पूर्वी उत्तर प्रदेश में. 10 मार्च को मतों की गिनती की जाएगी. 
     
अगले दो महीने तक राजनीतिक सरगर्मी अपने चरम पर होगा. परन्तु जिस प्रकार से भाजपा के मंत्री और विधायकगण कद्दावर नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के नेतृत्व में एक एक कर पार्टी को छोड़ रहे हैं, वो कहानी में नया ट्विस्ट लेकर आया है. हवा का रूख साफ़ साफ़ बता रहा है कि ये किधर को बह रहा है. सवाल यह उठता है कि तमाम विसंगतियों के बावजूद भाजपा अपने किले को अभी तक बचाने में कैसे कामयाब रही और अब एकदम से कैसे बैकफुट पर आ गई? चुनाव घोषणा के पहले तक जो भाजपा अविचलित एवं अपने जीत के प्रति आश्वस्त दिख रही थी, उसका किला भरभराने और दरकने लगा है. दरअसल उत्तर प्रदेश में सत्ता की मानसिकता में कोई बदलाव नहीं आया है. अति आत्मविश्वास के वशीभूत मोदी और योगी ने पार्टी में बढ़ रही नाराजगी को ज्यादा तवज्जो नहीं दिया. साथ ही साथ धर्म आधारित मुद्दे को ज्यादा हवा देकर जमींन से जुड़े मुद्दे को नजरअंदाज करने की कोशिश की. पिछड़े एवं दलित वर्गों का आरक्षण, आवारा पशुओं द्वारा उत्त्पन्न विषम सामाजिक परिस्थिति, युवाओं  के रोजगार सम्बन्धी मुद्दे, महंगाई तथा किसान आन्दोलन लगातार सरकार के ऊपर दवाब बना रहे थे, परन्तु सत्ता की हनक ने भाजपा नेतृत्व को इन मुद्दों को हलके में लिया. बल्कि लगातार धार्मिक मुद्दों को हवा दिया गया और उत्तर प्रदेश के मतदाताओं को हिन्दू और मुस्लिम के खांचे में बांटने का भरपूर प्रयास किया गया. यह नैरेटिव प्रथम चार वर्षों तक काफी हद तक सफल भी रहा. परन्तु 2021 के द्वितीय कोरोना लहर के पश्चात धरातल पर चीज़ें बहुत तेजी से बदली हैं. इस बात को योगी जी बहुत बेहतर तरीके से समझ रहे हैं. वे लगातार इसी प्रकार के बयान दे रहे हैं जिससे कि उनका हिंदुत्व का चेहरा और भी ज्यादा असरदार तरीके से प्रस्फुटित हो तथा वोटर का धार्मिक ध्रुवीकरण स्वाभाविक रूप से होने लगे. परन्तु ऐसा लगता है कि मतदाता इस बार ज्यादा समझदार हो गया है. धार्मिक मुद्दों के बजाय जमीन से जुड़े मुद्दों को ज्यादा तरजीह देने के मुड में है. स्वाभाविक हीं है कि भाजपा की पेशानी पर इस समय बल साफ़ साफ़ नजर आ रहा है. 
      
अभी तक 159 उम्मीदवारों की सूची में अखिलेश यादव द्वारा टिकट बंटवारे में विशेष रणनीति साफ़ साफ़ नजर आ रही है. मुज्ज़फरनगर के छः विधानसभा सीटों में से किसी पर भी मुस्लिम उम्मीदवार को खड़ा नहीं करना तथा भाजपा द्वारा लगातार उठाये जा रहे धार्मिक मुद्दों पर कोई गंभीर प्रतिक्रिया व्यक्त न करना उनके नेतृत्व की परिपक्वता को दर्शा रहा है. 64 पिछड़ी जातियों में से केवल 12 हीं यादव जाति से हैं, तथा 31 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे गए है. शेष अनुसूचित एवं अगडी जाति के लोगों को मौका दिया गया है.  विभिन्न सर्वे अभी भी भाजपा और सपा के बीच पांच प्रतिशत के वोट अंतर को दिखा रहे हैं तथा बसपा की काफी कमजोर स्थिति दिखा रहे हैं. 2017 में प्राप्त 22.23 मत प्रतिशत तो निश्चित हीं नहीं मिलने वाला है, परन्तु 17 – 18 प्रतिशत वोट अभी भी इसे प्राप्त हो सकता है. बसपा के परंपरागत वोट बैंक में अभी इतनी जल्दी सेंधमारी होती दिख नहीं रही है, बावजूद इसके कि मायावती अनिच्छा से चुनाव लडती दिख रही हैं. फिर भी चार से पांच प्रतिशत का वोट विचलन भाजपा एवं सपा दोनों के लिए सत्ता प्राप्ति की सम्भावना बना सकता है. भाजपा द्वारा प्राप्त मत प्रतिशत 39.67 तो निश्चित हीं इस बार नहीं मिलने वाला है परन्तु चुनाव की परिस्थितियों के मद्देनजर 35 से 36 प्रतिशत भी इसे सत्ता में पुनः वापसी का रास्ता दिखा सकता है. सबसे रोचक स्थिति समाजवादी पार्टी की हीं है. आगामी चुनाव में इसे अभी तक अपना सर्वाधिक मत प्रतिशत मिलता हुआ दिख रहा है, जो लगभग 35 प्रतिशत के आसपास हो सकता है. परन्तु फिर भी उसे सत्ता प्राप्ति मिल हीं जायेगी, ऐसा कहना थोडा मुश्किल है. कांग्रेस अपने पिछले मत प्रतिशत 6.25 से आगे बढ़ेगी और लगभग 9 से 10 प्रतिशत के आसपास प्राप्त करेगी. अन्य एवं छोटे दलों को कुल मिलाकर 7 से 8 प्रतिशत के आसपास मत मिलने की सम्भावना है. यानि, दूसरे प्रकार से बसपा, कांग्रेस और अन्य मिलकर लगभग 30 से 33 प्रतिशत मत प्राप्त करेंगे. शेष दो तिहाई यानि 67 से 70 प्रतिशत वोट का बंटवारा भाजपा एवं सपा के बीच होना तय है. ऐसी स्थिति में दोनों दलों के लिया बराबर की सम्भावना है. चुनाव पूर्व की पांच संभावित तस्वीर उभरकर आ रही है. चुनाव प्रारंभ होने के पश्चात मतदाताओं का रूख एकदम से बदल भी सकता है तथा किसी एक पार्टी के पक्ष में पूरी तरह लामबंद भी हो सकते हैं. परन्तु यह निर्भर करेगा सत्ता एवं विपक्ष के द्वारा उठाये जा रहे मुद्दों पर. भाजपा लगातार कैराना, भाईजान, जिन्ना, दंगा और परिवारवाद जैसे मुद्दे उछाल रही है वहीँ विपक्ष जिन्ना बनाम गन्ना, बेरोजगारी, महंगाई और लखीमपुर काण्ड जैसे मुद्दों को उठा रही है. 
     
परसेप्शन की इस लड़ाई में पडला कभी इस ओर तो कभी उस और झुक रहा है. इस बार के चुनाव में फ्लोटिंग वोटर की संख्या ज्यादा देखी जा रही है. परंपरागत रूप से प्रत्येक चुनाव में दो से तीन प्रतिशत मतदाता फ्लोटिंग माने जाते रहे हैं, परन्तु 2022 का चुनाव पिछले 30 वर्षों का सबसे महत्वपूर्ण चुनाव साबित होने जा रहा है भाजपा और सपा दोनों के लिए और शायद कांग्रेस के लिए भी. 2024 के लोकसभा चुनाव की दशा एवं दिशा यह चुनाव निर्धारित करने जा रहा है. अमित शाह अकारण हीं यह बात नहीं कह रहे हैं. उनकी पैनी नजर और गहरी समझ इस बात को साफ़ साफ़ इंगित कर रही है.    
 
अनुमानित तस्वीर 
सारणी – 1 (10 मार्च 2022 की संभावित तस्वीर. 1 फ़रवरी का आकलन)
तस्वीर
कांग्रेस
भाजपा+
 
सपा+
बसपा
अन्य
 
प्रथम तस्वीर
9 से 10% (5 से 7 सीटें)
33 से 35% (160 से 190 सीटें)
33 से 35% (160 से 190 सीटें)
15 से 17% (15 से 20 सीटें)
7 से 9% (4 से 8 सीटें) 
 
द्वितीय तस्वीर
11 से 12% (7 से 12 सीटें)
30 से 32% (100 से 120 सीटें) 
36 से 38 % (200 से 250 सीटें)
15 से 17% (15 से 20 सीटें)
7 से 9% (4 से 8 सीटें)
 
तृतीय तस्वीर
7 से 9% (3 से 5 सीटें)
36 से 38% (200 से 250 सीटें)
30 से 32% (120 से 140 सीटें) 
12 से 14% (7 से 12 सीटें
7 से 9% (4 से 8 सीटें)
 
चतुर्थ तस्वीर 
7 से 9% (3 से 5 सीटें)
30% से कम (100 से कम सीटें)
40% से ज्यादा (300 से ज्यादा सीटें) 
12 से 14% (7 से 12 सीटें)
7 से 9% (4 से 8 सीटें)
 
पंचम तस्वीर 
7 से 9% (3 से 5 सीटें)
40% से ज्यादा (300 से ज्यादा सीटें)
30% से कम (100 से कम सीटें)
12 से 14% (7 से 12 सीटें
7 से 9% (4 से 8 सीटें)
 
उपरोक्त संभावित तस्वीर क्रम के अनुसार लिखा गया है, मतलब जिसके होने की संभावना क्रमानुसार है. भाजपा ने भी पश्चिम उत्तर प्रदेश में जाटों को लुभाने के लिए टिकट वितरण में काफी उदारता बरती है. परन्तु वोट में यह कितना तब्दील होता है, यह कहना थोड़ी जल्दबाजी होगी. किसान आन्दोलन द्वारा उपजे जख्म अभी भी गहरे हैं. जाटों के बारे में एक कहावत प्रसिद्द है कि एक बार जो वो सोच लेते हैं, वो फिर आसानी से नहीं छोड़ते. इसलिए चुनाव चाहे किसी भी स्तर का हो, जल, जंगल और जमीन के मुद्दे हमेशा से प्रमुख रहे हैं. पश्चिम उत्तर प्रदेश में आज भी कृषि सबसे बड़ा मुद्दा है. 2013 के दंगों की याद दिलाकर उनके भावनाओं को भड़काने की कोशिश अवश्य की जा रही है, परन्तु धार्मिक ध्रुवीकरण के आधार पर वोटिंग होना मुश्किल लग रहा है. अगर ऐसा होता है तो 136 सीटों के सापेक्ष भाजपा को बहुत हीं दिक्कत का सामना करना पड़ेगा. मध्य एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश भी लगभग उसी पैटर्न को फॉलो करते हुए दिखाई पड़ेंगे, जैसा की पश्चिम उत्तर प्रदेश करेगा. बुंदेलखंड में कमोबेश स्थिति फिफ्टी फिफ्टी रहने की संभावना है. 

डॉ संजय कुमार
एसो. प्रोफेसर एवं चुनाव विश्लेषक 
सी.एस.एस.पी, कानपुर
                                                                                                            8858378872, 7007187681
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