Saturday, 20 April 2024  |   जनता जनार्दन को बुकमार्क बनाएं
आपका स्वागत [लॉग इन ] / [पंजीकरण]   
 

दिल्ली की सीमा पर जो बैठे वे किसान हैं, और सम्मान के हकदार भी!

अरविंद कुमार सिंह , Jan 29, 2021, 12:50 pm IST
Keywords: भारतीय राजनीति   Indian Politics   Farmers   किसान   किसान आंदोलन   farmers protest   Farm Bill 2021   देश के किसान   देश के नेता  
फ़ॉन्ट साइज :
दिल्ली की सीमा पर जो बैठे वे किसान हैं, और सम्मान के हकदार भी!
नकारात्मक सोच किसी मसले का समाधान नहीं सम्मान हरेक का है,किसान हो या जवान, शहरी हो ग्रामीण 21वीं सदी में महानगरों में जी रहे उन लोगों की अज्ञानता तो समझी जा सकती है, जिनको अब फिल्मों में भी गांव और किसान देखने को नही मिलते। लेकिन बौद्धिक होने का दंभ भरने वाले और खेती बाड़ी में देश में सबसे पिछड़े इलाकों से आने वाले लोगों का क्या कहेंगे। कृषि क्षेत्र की चुनौतियों को जानते हुए भी वे शांति से दो महीने तक अपनी बात रखने के लिए गाजीपुर जैसी सरहद पर बैठे रहे। उस सरहद पर जहां जाते समय लोग नाक पर कपडा लगा लेते हैं। 
 
किसी को भी अपने घर से दूर अच्छी से अच्छी जगह भी एकाध दिन ही अच्छी लगती है। लेकिन किसान तो इतने दिन से सरकार से याचना ही कर रहा है। जहां रोका वहीं रुक गया। लेकिन उनके लिए जहर भरी भाषा का उपयोग करना क्या उचित है। क्या ऐसा करने वाले  सरकार से भी बड़े हैं। क्या वे सरकार को किसानों के खिलाफ डिक्टेट करना चाहते हैं। क्या वे पुलिस जवानों से  भी अधिक किसानों के बारे में समझ रखते हैं, जिसमें किसान परिवारों से ही अधिकतर लोग आते हैं।  
 
किसानों का आंदोलन जिन मुद्दों को लेकर है वे भारत सरकार से संबंधित है। किसानों की लड़ाई न उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब या किसी भी राज्य सरकार से है न ही पुलिस या प्रशासन से।  भारत सरकार और किसानों के बीच 11 दौर की बातचीत के बाद भी दोनों तरफ से संवाद के रास्ते बंद नहीं हुए हैं। सुप्रीम अदालत ने भी उनके धरने को हटाने के लिए नहीं कहा है। लेकिन जिनके रास्ते में भी गाजीपुर या सिंघु सीमा नहीं पड़ती, उनका रास्ता सबसे ज्यादा अवरुद्ध हो रहा है। जिन लोगों ने लाल किले पर हिंसा की खुद पुलिस के घायल जवानों ने अपने बयान में कहा है कि वे लोग किसान नहीं हो सकते। किसान कभी ऐसे हमले नहीं करता। हिंसा करने वाले फेसबुक पर लाइव अपनी बातें रख चुके हैं। लेकिन उनके बारे में बोलते समय डर लगता है जैसे वे सगे हों और शांत बैठे किसान दुश्मन। अपराधी देर सबेर सलाखों के पीछे पहुंच ही जाएंगे। 
 
लेकिन मैने बोट क्लब पर लाखों की भीड़ को एक सप्ताह तक बैठे देखा है। लाल किले पर भी महेंद्र सिंह टिकैत के विशाल जमावड़े को देखा है। चांदनी चौक का एक भी कारोबारी नही कह सकता है कि किसानों ने उनको कोई नुकसान पहुंचाया हो। लाल किले को नुकसान पहुंचाने का तो सवाल ही नहीं। किसी मूंगफली वाले से लेकर पुलिस के जवान तक से उनकी कोई झड़प नहीं हुई। मेरठ के विशाल धरने पर  आग्रह करके किसान सभी आने वालों और पुलिस जवानों,पत्रकारों और सभी को खाना खिलाते रहे। तब तो कोई लंगर भी नहीं चल रहा था और गांवों की महिलाओं के श्रम से खाने पीने के सामान ट्रैक्टर से आ रहे थे। 
 
लेकिन उन लोगों को इन किसानों से क्या पीड़ा है, जिनको इनमेें सारे अराजक तत्व औऱ खलिस्तानी नजर आ रहे हैं। पंजाब में जब वास्तव में उग्रवाद था तो इन्होने उसके खिलाफ कुछ लिखा हो तो मुझे भी साझा करेंगे पढ़ना चाहूंगा। लाल किले पर उत्पात मचाना था वे करके जा चुके हैं। जो शांति से बैठे हैं, उनकी बातों को न सुनिए, उनके मुद्दों का विरोध भी करिए और गलत लगे तो इन सीमाओं पर जाकर इनसे अपनी बात रखिए, आपको कोई कुछ नहीं कहेगा।  लेकिन ऐसा आचरण मत कीजिए, जिससे वातावरण विषाक्त हो। उन्होंने आपका कोई खेत नहीं जोत लिया है। लोकतंत्र में जनता को वह ताकत मिली हुई है कि वह अपनी बात को मनाने के लिए आंदोलन करे। रास्ता संवाद से ही निकलना है और दोनों पक्षों में संभव है कि किसी को थोड़ा झुकना भी पडे। लेकिन कोई आंदोलन अनंतकाल तक नहीं चल सकता है। 
 
अतीत में ये ही किसान संगठन जब कांग्रेस, सपा, बसपा और जनता दल की सरकारों  से लड़ते थे तो आपको योद्धा लगते थे। लेकिन अब आढ़तियों का एजेेंट, खलिस्तानी और दुनिया के सबसे बुरे हो गए हैं। दो महीनों से सरकार गिराने के लिए नहीं बैठा है। अपने मुद्दों को लेकर बैठा है।  शांति से अपनी बातों को उठाने वालों के खिलाफ जहर उगलना लोकतंत्र के खिलाफ खड़ा होना है। बेहतर होगा कि कामना करेंं कि संसद सत्र के बीच किसानों की सम्मानजनक घर वापसी के लिए रास्ता निकले और वे अपने कामधंधों को फिर से जमाने में लगें। उनके पास भी खेतीबाड़ी के लिए बहुत काम है। और वे भी किसी को किसी रूप में परेशान नहीं करना चाहते हैं। यह मेरा आकलन भी है और अनुरोध भी।

#लेखक अरविंद कुमार सिंह, वरिष्ठ पत्रकार और भारतीय राजनीति औल संसदीय प्रणाली के विशेषज्ञ है
अन्य देश लेख
वोट दें

क्या आप कोरोना संकट में केंद्र व राज्य सरकारों की कोशिशों से संतुष्ट हैं?

हां
नहीं
बताना मुश्किल