दिल्ली चुनाव का भारतीय राजनीति पर आने वाले समय में पड़ने वाला प्रभाव
डॉ संजय कुमार ,
Feb 14, 2020, 10:23 am IST
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राजनीति एवं राजनीति शास्त्र का अध्येता होने के नाते दिल्ली चुनाव को लेकर मेरे मन में भी कुछ सवाल एवं जवाब घुमड रहे हैं, जो आपके साथ शेयर करना चाहता हूं। एग्जिट पोल से इतर मेरी अपनी कुछ प्रस्थापनाएं हैं।
दिल्ली का चुनाव इस मायने में महत्वपूर्ण है कि इसका अंतिम परिणाम भारत के भविष्यगत राजनीति पर किस प्रकार का प्रभाव डालेगा?1.यदि आम आदमी पार्टी प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाती है तो आने वाले समय में भारतीय राजनीति में जबरदस्त उथल पुथल होते हुए देखेंगे।2. यदि आम आदमी पार्टी साधारण तरीके से सरकार बनाने में सफल हो जाती है तो इसका प्रभाव बिल्कुल अलग होगा और 3. यदि भारतीय जनता पार्टी सरकार बनाती है तो इसका प्रभाव बहुत ही दूरगामी होने वाला है।
मुझे ऐसा लग रहा है कि आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन बहुत ही बेहतरीन होने वाला है, जिसमें सीटों की संख्या पिछली बार 67 के मुकाबले कम जरूर होगा, परंतु पिछली बार 2015 के प्राप्त मत प्रतिशत 53.4 के मुकाबले 2 से 3 प्रतिशत की वृद्धि हो जाय तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। वहीं दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी भी अपने पुराने मतदान प्रतिशत 32.2% के मुकाबले यदि 35 से 36 प्रतिशत के आसपास आ आए तो भी मुझे कोई आश्चर्य नहीं होगा। रही बात कांग्रेस की, तो कांग्रेस ने यह चुनाव एक प्रकार से आम आदमी पार्टी के सहयोगी के तौर पर लड़ा है। इसलिए पिछली बार 9.7 प्रतिशत के मुकाबले यदि 2 से 3 प्रतिशत घट जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। मेरे हिसाब से एक बहुत इंटरेस्टिंग पक्ष यह भी होने वाला है कि आम आदमी पार्टी को जितने सीटें मिलेगी, उतना ही मत प्रतिशत उसे मिले। वही दूसरी ओर भाजपा को जितनी सीटें मिलेगी उसका लगभग दोगुना मत प्रतिशत उसे मिले।
चुनावी राजनीति की यही खूबसूरती होती है कि आमने सामने की लड़ाई में तस्वीर बिल्कुल अलग होती है त्रिकोणीय लड़ाई के मुकाबले। इस बार दिल्ली के चुनाव में कुल 1 करोड़ 47 लाख मतदाताओं के सापेक्ष लगभग 83 लाख मतदाताओं ने वोट दिया। 2015 में 67.12 प्रतिशत के मुकाबले इस बार केवल 58 प्रतिशत लोगों ने ही अपने मतदान का प्रयोग किया। लगभग 10 प्रतिशत कम मतदान क्या इशारा कर रहा है? मेरे हिसाब से यह साफ-साफ भाजपा के निराशाजनक प्रदर्शन को दिखा रहा है। शाहीनबाग के मुद्दे को पूरी हवा देने की कोशिश की गई और मतदाताओं को धार्मिक आधार पर गोलबंद करने का प्रयास किया गया। परंतु मेरे हिसाब से भाजपा का यह दांव उल्टा पड गया है। चुकिं पिछले 10 महीने से केजरीवाल लगातार अपने चुनावी रणनीति में विकास को मुद्दा बनाए हुए थे, तो स्वाभाविक है कि भाजपा को भी विकास के मुद्दे पर ही केजरीवाल को घेरना चाहिए था। परंतु भाजपा ने यही पर रणनीतिक भूल कर दी। CAA और NRC के मुद्दे पर भाजपा पहले से ही विपक्षी पार्टियों के निशाने पर थी, रही सही कसर शाहीनबाग ने पूरी कर दी। शाहीनबाग ने यदि भाजपा को मजबूती प्रदान की तो उससे ज्यादा मजबूती केजरीवाल को मिल गई। सभी राजनीतिक दलों को यह बात समझ में आ जानी चाहिए कि धर्म के आधार पर राजनीति बहुत लंबे समय तक नहीं चल सकती है, परंतु विकास के मुद्दे पर बहुत लंबे समय तक लंबी इनिंग खेली जा सकती है। ठीक यही काम मोदी जी ने 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान किया था, और उसका जबरदस्त परिणाम भाजपा को मिला। 2019 का प्रचंड बहुमत यदि मोदी फिर से लेकर आए उसके पीछे उनका विकास संबंधी नजरिया ही है।
दूसरा महत्वपूर्ण तथ्य चुनाव का यह रहा कि अरविंद केजरीवाल के मुकाबले भाजपा कोई विश्वसनीय चेहरा नहीं उतार पाई। मनोज तिवारी की एक गंभीर राजनीतिक छवि अभी भी नहीं बन पाई है। 'केजरीवाल का 5 साल और भाजपा में नेता का अकाल' शायद सटीक विश्लेषण लगता है। तीसरा महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि केजरीवाल ने बिजली, स्वास्थय एवं शिक्षा के क्षेत्र में जबरदस्त काम किया। इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है। यहां तक कि उनके घुूर विरोधी भी उनके इस काम की तारीफ करते हैं। स्वाभाविक है कि केजरीवाल एक मंजे हुए गंभीर राजनेता की तौर पर अपने आप को स्थापित करने में सफल रहे हैं।
यदि भी तय मान लीजिए कि यदि केजरीवाल प्रचंड बहुमत के साथ आते हैं तो 2022 के आगामी उत्तर प्रदेश चुनाव में बहुत सारे नए समीकरण देखने को मिल सकते हैं। केजरीवाल उत्तर प्रदेश में अपनी जमीन बनाने में लग जाएगे, जिसका सीधा असर सपा और बसपा जैसे पार्टीयों पर हो सकता है। बहुत सारे पुराने साथी जो AAP छोड़कर बाहर चले गए हैं, वह पार्टी का दामन थाम सकते हैं।
(दिल्ली चुनाव को लेकर मैंने 8 फरवरी को चुनावी विश्लेषण किया और कुछ भविष्यवाणी भी की। चुनाव परिणाम मेरे लिए बिल्कुल उसी प्रकार रहे जैसा कि होना चाहिए। हो सकता है अन्य लोगों के लिए यह चौकानेवाले रहे हो। लगभग 90% तक चुनाव परिणाम मेरे आकलन के हिसाब से रहे)
#डॉ संजय कुमार, उत्तर प्रदेश कोऑर्डिनेटर, सीएसएसपी, कानपुर
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