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दलगत मतभेद का इस्तेमाल महिलाओं की छवि धूमिल करने के लिए नहीं होना चाहिएः नरेश-जया विवाद पर स्मृति इरानी
जनता जनार्दन संवाददाता ,
Mar 13, 2018, 14:08 pm IST
Keywords: Smriti Irani Jaya-Naresh controversy Naresh Agarwal Jaya Bachchan Political row Naresh Agarwal comment Women in politics नरेश अग्रवाल जया बच्चन स्मृति ईरानी महिलाओं का सम्मान विवादास्पद टिप्पणी
![]() उन्होंने एक ट्विटर यूजर के यह कहे जाने के बाद यह टिप्पणी की कि इस मुद्दे को लेकर बीजेपी पर हमलावर कांग्रेस को 2012 में उसके नेता संजय निरुपम की उनके (स्मृति) खिलाफ की गई टिप्पणी को आधार बनाकर जवाब देना चाहिए. संजय निरुपम ने एक टीवी शो पर चर्चा के दौरान स्मृति ईरानी के खिलाफ इसी तरह की विवादास्पद टिप्पणी की थी, जिसका मामला फिलहाल कोर्ट में है. स्मृति ने कहा कि दलगत मतभेद का इस्तेमाल महिलाओं की छवि धूमिल करने के लिए नहीं किया जा सकता. उन्होंने ट्वीट कर कहा, 'मेरा मामला पिछले 5 साल से कोर्ट में है. लेकिन मेरी लड़ाई अन्य महिलाओं को अपमानित करने का एक्सक्यूज नहीं हो सकती, बल्कि हम सभी को यह ध्यान रखना चाहिए कि जब एक महिला के सम्मान को चुनौती दी जाती है तो हम दलगत राजनीति से ऊपर उठकर एक सुर में उसकी आलोचना करते हैं.' स्मृति ने निरुपम के 2012 के बयान को लेकर उनके खिलाफ मानहानि का मुकदमा किया था. इससे पहले विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने ट्वीट कर कहा था कि नरेश अग्रवाल ने बीजेपी ज्वाइन किया है, उनका स्वागत है. लेकिन जया बच्चन जी के बारे में उनके बयान अनुचित और अस्वीकार्य हैं. इस पर पहले ही फजीहत झेल चुके अग्रवाल ने अब अपनी विवादास्पद टिप्पणी के लिए खेद जताया है. उन्होंने मंगलवार को सफाई देते हुए कहा कि उनकी मंशा अपने बयान से किसी को चोट पहुंचाने की नहीं थी. भाजपा में शामिल होते ही नरेश अग्रवाल ने कहा था कि सपा में उनकी हैसियत की तुलना डांस करने वाली और फिल्मों में काम करने वाली से की गई. उनका इशारा दिग्गज अभिनेत्री जया बच्चन की तरफ था, जिन्हें सपा ने राज्यसभा चुनाव के लिए अपना उम्मीदवार बनाया है. अग्रवाल के बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए जया ने कहा कि उन्हें गर्व है कि वह फिल्म जगत से ताल्लुक रखती हैं. नरेश अग्रवाल एक ऐसे नेता हैं, जो अपनी जाति में तो मशहूर हैं, पर जिन्होंने हमेशा सत्ता की बागडोर थामे रखी. अब उनके समाजवादी पार्टी से भारतीय जनता पार्टी का दामन थामने के बाद पार्टी में क्लेश बढ़ना तय माना जा रहा है. वजह यह है कि बीजेपी में नरेश के जितने चाहने वाले हैं, उससे कहीं ज्यादा नापसंद करने वाले हैं. नरेश अकेले ऐसे नेता हैं, जिन्होंने न केवल हिंदू धर्म पर टिप्पणी की, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए भी कई बार अपमानजनक, जातिसूचक शब्द का इस्तेमाल किया. वह बीजेपी में शामिल भी हुए तो जया बच्चन पर टिप्पणी करने के साथ. जिसका विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और रूपा गांगुली ने न केवल विरोध किया, बल्कि उन्हें हिदायत देते हुए कहा कि इस तरह की टिप्पणी न केवल अनुचित और अस्वीकार्य है, बल्कि समस्त महिलाएं ऐसे मसलों पर एक हैं. केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह, नरेश अग्रवाल को तब से पसंद नहीं करते जब वे 2001 में उनकी सरकार में ऊर्जा मंत्री थे. राजनाथ ने उनकी कार्यशैली से तंग आकर उन्हें 2001 में मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया था. नरेश ने तब लोकतांत्रिक कांग्रेस बनाई थी और वह राजनाथ सरकार को समर्थन दे रहे थे. नरेश पर भ्रष्टाचार के भी तमाम आरोप लगे थे और जब मामला सिर से ऊपर निकल गया तब राजनाथ को उन्हें बाहर का रास्ता दिखाना पड़ा. नरेश ने 19 विधायकों का समर्थन वापस लेने की धमकी दी, पर उसी वक्त नरेश के साथ के 13 विधायकों ने राज्यपाल को यह लिखकर दे दिया कि वे राजनाथ सिंह के साथ हैं. इसके बाद नरेश अग्रवाल को मुंह की खानी पड़ी. तब से उनके और राजनाथ के रिश्ते सामान्य नहीं रहे. बीजेपी के राज्यसभा उम्मीदवार अशोक वाजपेयी और नरेश अग्रवाल के बीच हरदोई की सियासत में छत्तीस का आंकड़ा काफी पुराना है. एसपी के भीतर भले अशोक वाजपेयी मुलायम के करीबी और वरिष्ठ नेता माने जाते हों, लेकिन एसपी सरकार में नरेश ने हरदोई को अपने मनमुताबिक ही चलाया. पिछली सरकार में हरदोई में जो भी अफसर पोस्ट हुआ, वह नरेश के हिसाब से ही रहा. सरल और शांत स्वभाव के पूर्व शिक्षा मंत्री अशोक वाजपेयी और नरेश अग्रवाल के बीच छत्तीस का आंकड़ा समाजवादी परिवार के झगड़े तक सामने दिखा. जब नरेश के कहने पर अशोक वाजपेयी को अखिलेश यादव ने तवज्जो नहीं दी, तब वह शिवपाल के साथ जा खड़े हुए, इसी वजह से अशोक वाजपेयी एमएलसी पद से इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हो गए. अब वह राज्यसभा के उम्मीदवार हुए तो नरेश भी उनके साथ बीजेपी में आ गए. ऐसे में हरदोई में दोनों के बीच फिर घमासान होना तय माना जा रहा है. हरदोई के बीजेपी नेता शुरुआत से नरेश का विरोध करते रहे हैं. नरेश बीजेपी से अपने भाई के लिए नगर पालिका अध्यक्ष का टिकट चाह रहे थे, पर स्थानीय नेताओं के विरोध के कारण टिकट नहीं मिल सका. बीजेपी में आने से पहले नरेश अपने चार दशक के राजनीतिक करियर में 'दलबदलू' के तौर पर पहचाने जाते रहे हैं. 1980 में उन्होंने कांग्रेस से अपना करियर शुरू किया और सात बार विधायक रहे. 1997 में जब कल्याण सिंह सरकार विश्वास मत साबित करने के लिए जूझ रही थी, तब नरेश ने बीजेपी का साथ दिया. नरेश ने तब लोकतांत्रिक कांग्रेस बनाई. इसके बाद वह कल्याण सिंह, रामप्रकाश गुप्ता और राजनाथ सिंह की सरकार में ऊर्जा मंत्री के पद पर रहे. 2003 में जब मायावती को सत्ता से हटाकर मुलायम सिंह सीएम बने, तो नरेश एसपी में शामिल होकर पर्यटन मंत्री बन गए. 2004 से 2007 तक उन्होंने परिवहन मंत्री का प्रभार संभाला. बाद में वह राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए और संसद की कई कमिटियों में रहे. मई 2008 में एक बार फिर नरेश का एसपी से मोहभंग हुआ और बीएसपी का हाथ थाम लिया. बीएसपी ने नरेश को पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव और फर्रुखाबाद लोकसभा सीट से उम्मीदवार घोषित किया. तब नरेश ने मायावती को देश की भावी प्रधानमंत्री बताया था. 2012 के विधानसभा चुनाव से पहले वह एसपी में आ गए और अपने बेटे को टिकट दिलवाने और मंत्री बनवाने में सफल रहे. एसपी से ही वह राज्यसभा सदस्य भी रहे. बीजेपी में शामिल होने के बाद नरेश अग्रवाल राज्यसभा चुनाव में एसपी-बीएसपी गठबंधन का गणित बिगाड़ सकते हैं. बीजेपी में नरेश को सबसे पहली जिम्मेदारी राज्यसभा चुनाव में पार्टी उम्मीदवार को जिताने की होगी. वह कांग्रेस, बीएसपी और एसपी में रह चुके हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि उन दलों में अपने पुराने रिश्तों को भुनाने में वह सफल होंगे. * राज्यसभा में एसपी तो अपने 47 विधायकों के साथ जया बच्चन को जिता ले जाएगी, लेकिन बचे दस वोटों में वह बेटे नितिन का एक वोट बीजेपी को दिलवाने के साथ नौ वोटों में भी सेंधमारी की कोशिश करेंगे. इसका नुकसान बीएसपी उम्मीदवार भीमराव आंबेडकर को होगा. बीएसपी अपने उम्मीदवार के लिए अपने 19, एसपी के 10, कांग्रेस के 7 और रालोद के एक वोट को का गणित बिठा रही है, जिसमें नितिन अग्रवाल का एक वोट कम हो सकता है. *बीजेपी के पूर्व प्रवक्ता आईपी सिंह ने कहा कि 2001 में घोर भ्रष्टाचार के आरोप में तत्कालीन सीएम राजनाथ सिंह ने नरेश अग्रवाल को बर्खास्त किया था. अब वह बीएसपी, एसपी से होते हुए फिर बीजेपी में हैं. यह व्यक्ति राजनीतिक रूप से खत्म हो जाता और एक सुचितापूर्ण राजनीति होती, लेकिन पार्टी ने सहारा देकर एक राक्षस को फिर से जीवित कर दिया. लखनऊ में अखिल भारतीय वैश्य महासम्मेलन में नरेश अग्रवाल के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तेली कह दिया था. नरेश ने कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो तेली है. वह बनिया नहीं है, सिर्फ बनिया यानी वैश्य ही व्यापार कर सकता है. * सदन में नरेश अग्रवाल ने कुलभूषण जाधव पर टिप्पणी की थी. कहा था कि- अगर उन्होंने (पाकिस्तान) कुलभूषण जाधव को आतंकवादी अपने देश में माना है, तो वो उस हिसाब से जाधव के साथ व्यवहार करेंगे. हमारे देश में भी आतंकवादियों के साथ ऐसा ही व्यवहार करना चाहिए. * नरेश ने सीमाओं की रखवाली कर रहे सैनिकों के बारे में कहा था कि अगर आतंकवादी ये हाल कर रहे हैं तो पाकिस्तानी फौज आएगी तो क्या हालत होगी। * हिंदू धर्म पर टिप्पणी की थी कि कुछ लोग हिंदू धर्म के ठेकेदार बन गए हैं, बीजेपी और वीएचपी जैसे लोग कहते थे कि जो हमारा सर्टिफिकेट नहीं लेकर आएगा, वो हिंदू नहीं है। उन्होंने आगे कहा था कि 'व्हिस्की में विष्णु बसे, रम में बसे श्रीराम, जिन में माता जानकी और ठर्रे में हनुमान, सिया पत रामचंद्र की जय'। सियासी करियर * 1980 में पहली बार कांग्रेस से विधायक बने। *1989 से 2008 तक यूपी विधानसभा के सदस्य। *1997 में लोकतांत्रिक पार्टी का गठन किया। *1997-2001 तक यूपी सरकार में ऊर्जा मंत्री रहे। *2003-2004 तक पर्यटन मंत्री रहे। *2004-2007 तक यूपी के परिवहन मंत्री रहे। *2012 में एसपी से राज्यसभा के सांसद बने। |
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