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तो राष्ट्रवादी सरकार ने घुटने टेक ही दिए, कहा केंद्र का हिंदी थोपने का कोई विचार नहीं

तो राष्ट्रवादी सरकार ने घुटने टेक ही दिए, कहा केंद्र का हिंदी थोपने का कोई विचार नहीं नई दिल्लीः राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय संस्कृति की सरंक्षा का ढिंढोरा पीटने और हर दम हिन्दी - हिन्दी चिल्लाने वाली सरकार ने अंततः अंगरेजी प्रभुत्त्ववर्ग के दबाव में घुटने टेक ही दिए. सरकार ने बाकायदा बयान जारी कर हिन्दी को तरजीह देने वाली राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी की कोशिशों से किनारा कर लिया है.

कैसे? इस सरकारी विज्ञप्ति को पढ़िएः

मीडिया के एक वर्ग में यह खबर आई थी कि केंद्र सरकार हिंदी थोपने की कोशिश कर रही है। इस संबंध में गृह मंत्रालय के आधिकारिक भाषा विभाग द्वारा जारी प्रस्ताव का उल्लेख करते हुए यह दावा किया गया था कि हिंदी जानने वाले संसद सदस्यों और मंत्रियों के लिए यह अनिवार्य कर दिया गया है कि वे हिंदी में ही अपने भाषण और बयान जारी करें।

उल्लेखनीय है कि 1976 में आधिकारिक भाषा पर संसद समिति का गठन किया गया था और वह तभी से काम कर रही है। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट के 9 भाग सौंप दिए हैं। समिति की रिपोर्ट के 9वें भाग को 2 जून, 2011 में राष्ट्रपति को सौंपा गया था।

समिति के तत्कालीन अध्यक्ष और उपाध्यक्ष ने 117 अनुमोदन किये थे। चूंकि समिति के सुझावों पर राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के मंत्रालयों/विभागों की राय आमंत्रित की जानी थी, इसलिए राष्ट्रपति द्वारा सुझावों पर विचार करने और उन्हें स्वीकार करने के पूर्व समय लगा था।

अनुमोदन नम्बर 105 इस प्रकार है – ‘माननीय राष्ट्रपति और सभी मंत्रियों सहित समस्त विशिष्टजनों, खासतौर से जो हिंदी पढ़ने और बोलने में सक्षम हैं, उनसे आग्रह किया जाता है कि वे अपने भाषण/बयान केवल हिंदी में ही दें।’

केंद्र सरकार ने उपरोक्त अनुमोदन को स्वीकार करते हुए 31 मार्च, 2017 को एक प्रस्ताव जारी किया था। समिति का अनुमोदन बिलकुल स्पष्ट है। वह आग्रह के रूप में है, न की आदेश/निर्देश के रूप में।

उपरोक्त अनुमोदन आधिकारिक भाषा हिंदी के संबंध में संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों के अनुरूप है। इसके अलावा अनुमोदन प्रोत्साहन एवं प्रेरणा के जरिये आधिकारिक भाषा के उन्नयन पर आधारित है जो सरकार की नीति के अनुपालन में है।

स्पष्ट किया जाता है कि मीडिया की संबंधित खबरें आधारहीन और तथ्य से परे हैं।
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