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शराबबंदी व बूचड़खानों पर रोक से रोजगार, कारोबार पर ग्रहण
अमुल्य गांगुली ,
Apr 10, 2017, 16:03 pm IST
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![]() केंद्र सरकार के बाद देश के विभिन्न राज्यों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसके सहयोगी सरकारों के प्रसार के साथ न्याय एवं कानून व्यवस्था में भगवाधारी स्वयंसेवकों की सम्मिलित गतिविधियों में भी बढ़ोतरी दर्ज हुई है, जिसके कारण देश में रोजगार की समस्या के और गंभीर होने का खतरा भी पैदा हुआ है। बेरोजगार दर में हो रही बढ़ोतरी देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकती है। नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय के राजमार्गो के किनारे शराब की दुकानें बंद करने के आदेश के चलते पर्यटन बुरी तरह प्रभावित होगा, जिससे कम से कम 10 लाख नौकरियां जाएंगी। शीर्ष अदालत के आदेश के अनुसार किसी भी शहर में राजमार्ग के किनारे स्थित पांच सितारा होटलों में भी शराब नहीं परोसी जा सकेगी। भाजपा सांसद किरन खेर तक ने इस अव्यावहारिक प्रतिबंध पर सवालिया निशान खड़े करते हुए कह दिया, “यह कौन सा तर्क है कि आप पांच सितारा होटल तक में शराब नहीं परोस सकते? होटल उद्योग बड़ी संख्या में रोजगार देता है, इसलिए यह 10 लाख से अधिक लोगों के रोजगार का सवाल है।” लेकिन ऐसा नहीं है कि रोजगार पर सिर्फ शराबबंदी के प्रसार से ही बुरा असर पड़ रहा है। उत्तर और भाजपा शासित अन्य प्रदेशों में अवैध बूचड़खानों और मांस की दुकानों के खिलाफ कार्रवाई से भी रोजगार पर प्रतिकूल असर पड़ा है। उत्तर प्रदेश में वैध एवं अवैध बूचड़खानों को बंद करवाए जाने से तीन उद्योग प्रभावित हुए हैं, डिब्बाबंद मांस, पशुपालन और चमड़ा उद्योग। डिब्बाबंद मांस और चमड़े के उत्पाद देश से निर्यात होने वाले प्रमुख उत्पादों में शामिल हैं। उत्तर प्रदेश बेरोजगारी दर के मामले में झारखंड के बाद देश में दूसरे स्थान पर है और इससे ज्यादा बेरोजगारों का भार उठाने में असक्षम है। बेरोजगारी दर का राष्ट्रीय स्तर जहां प्रति 1,000 व्यक्ति पर 37 का है, वहीं उत्तर प्रदेश में यह दर 58 का है। बूचड़खानों का आधुनिकीकरण या मशीनीकरण करने के बजाय उत्तर प्रदेश के नवनियुक्त मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और भाजपा शासित अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री इन्हें सीधे बंद करवा रहे हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश में मिले भारी बहुमत से मुख्यमंत्री आदित्यनाथ इतने उत्साह में हैं, कि राज्य की जनता पर शाकाहार थोपने को वह आतुर नजर आ रहे हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपानी ने राज्य में गोवध के लिए उम्रकैद की सजा देने वाला कानून पारित करने के बाद कहा भी है कि वह गुजरात को शाकाहारी बना देंगे। मांस कारोबारियों की याचिका पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय सुनवाई के लिए तैयार हो गया है, लेकिन राज्य में 22,000 करोड़ रुपये का मांस कारोबार और 50,000 करोड़ रुपये का चमड़ा कारोबार संकट में आ चुका है और इनसे जुड़ी हजारों नौकरियां खतरे में हैं। इस तरह की कार्रवाई से पता चलता है कि न्याय व्यवस्था और राजनीतिक प्रणाली द्वारा हमेशा परिणामों को सोचकर फैसले नहीं लिए जाते। इस तरह के औचक, सख्त और अव्यावहारिक फैसले न सिर्फ हजारों लोगों की रोजी-रोटी छीन लेते हैं, बल्कि पर्यटकों और निवेशकों के लिए भारत आकर्षण का केंद्र नहीं रह जाएगा। ऐसे समय में जब देश कारोबार करने के लिए सहज केंद्र बनना चाहता है, इस तरह के प्रतिबंध अनुकूल साबित नहीं होंगे। निश्चित तौर पर शराब पीकर गाड़ी चलाने से होने वाली दुर्घटनाओं में शराब की बिक्री प्रतिबंधित कर रोक नहीं लगाई जा सकती। इसकी बजाय सड़कों पर पर्याप्त उपकरणों के साथ पुलिस की गश्त में इजाफा करना ही इसका उपाय है। इसके अलावा सड़क यातायात चिह्नों का स्पष्ट प्रदर्शन, जुर्माना और एक निश्चित अवधि के लिए ड्राइविंग लाइसेंस रद्द करना अन्य उपाय हो सकते हैं। किसी भी मामले में – खाने, पीने, किताबें या फिल्में- कुछ भी हों, प्रतिबंध लगाने की दो कमियां हैं। पहला तो यह किसी की निजता में हस्तक्षेप है, दूसरे इसमें तानाशाही नजर आती है, जो लोकतंत्र के खिलाफ है। |
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