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सचिन, भारत नाम के सपने का एहसास कराने के लिए शुक्रिया
जनता जनार्दन संवाददाता ,
Mar 20, 2012, 17:20 pm IST
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![]() सचिन तेंदुलकर के सौवें शतक ने पूरे देश को संतोष और खुशी का वैसा ही भाव दिया है, जैसा वर्ल्ड कप जीतने के बाद हुआ था। सचिन ने 1989 में जब पहली बार पाकिस्तान के खिलाफ मैच खेला था, तब उनकी उम्र महज 16 साल थी। एक मैच में, जब उन्होंने अब्दुल कादिर के ओवर में 27 रन बनाए थे, तभी लगा था कि महान बल्लेबाज आ गया है, जिसकी आने वाले दिनों में चर्चा होगी। यह चर्चा एक राष्ट्रीय उत्सव या राष्ट्रीय गम में बदल जाएगी, यह तो खुद सचिन ने भी नहीं सोचा था। सचिन दरअसल क्रिकेट खेलते-खेलते एक उभरते हुए देश की आत्मा और उसके विश्वास का प्रतीक बन गए। बहुत कम लोगों को याद होगा कि 1989 में देश की हालत क्या थी। तब भारत की चर्चा दुनिया के नक्शे पर यदा-कदा ही होती थी। तब अंतरराष्ट्रीय अखबारों में भारत का जिक्र हादसों की वजह से होता था या फिर दंगों के कारण। भारत को लोग एक पुराना देश जरूर मानते थे। इसकी सभ्यता की इज्जत भी करते थे, लेकिन इसकी चर्चा में 'मिस्ड-अपॉरच्युनिटी' का भाव ज्यादा होता था। ऐसा देश, जो अपनी महान गौरवशाली परंपरा के बाद भी गरीबी में जीने के लिए अभिशप्त था। वह देश, जो सदियों की गुलामी से 1947 में निकला जरूर, लेकिन फिर कहीं भटक गया। कहने को लोकतंत्र था, लेकिन अराजकतावादी था। कहने को संसद थी, पर वह विचारधारा के ऐसे भंवर मे फंसी थी कि जितना बाहर निकलने की कोशिश करती, उतना ही दलदल में धसती जाती। भारत में हिंदुत्ववादी ताकतें हिलोरें ले रही थीं। केंद्र की राजनीतिक सत्ता और देश की सांस्कृतिक अस्मिता को इतनी गंभीर चुनौती कभी नहीं मिली थी। कुछ लोगों को यह भी लगने लगा था कि आरएसएस की आक्रामकता देश को खंड-खंड कर देगी। राजीव गांधी के मासूम, लेकिन कमजोर नेतृत्व ने इस संकट को और गहरा कर दिया था। कभी उनके विश्वासपात्र रहे वीपी सिंह ने भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को ऐसी हवा दी थी कि राजीव गांधी सरकार को अपनी हार दीवार पर लिखी इबारत की तरह सच होती हुई दिख रही थी। भारतीय टीम तब तक एक वर्ल्ड कप जरूर जीत चुकी थी, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसकी चुनौती को कोई गंभीरता से नहीं लेता था। वेस्ट इंडीज की तूती बोलती थी। ऑस्ट्रेलिया एक बार फिर से मजबूत टीम के तौर पर अपने को खड़ा करने की कोशिश कर रहा था। इस सबके बीच सचिन का टेस्ट में उतरना कोई बड़ी घटना नहीं थी। सचिन के खेल को देखकर तब किसी ने नहीं कहा था कि एक दिन इस लड़के की तुलना डॉन ब्रेडमैन से की जाएगी, नासिर हुसैन जैसा खिलाड़ी उन्हें ब्रेडमैन से भी महान बल्लेबाज बताने की हिमाकत करेगा और भारत में उसे क्रिकेट के भगवान का दर्जा दिया जाएगा।
आशुतोष
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