अमेरिका, रूस, फ्रांस... इजराइल-ईरान जंग में किसका साथ देंगे भारत के 5 पक्के दोस्त?

अमेरिका, रूस, फ्रांस... इजराइल-ईरान जंग में किसका साथ देंगे भारत के 5 पक्के दोस्त?

नई दिल्ली: ईरान और इजराइल के बीच जारी सैन्य संघर्ष अब बेहद संवेदनशील मोड़ पर पहुंच चुका है. दोनों देशों के बीच लगातार मिसाइल और ड्रोन हमले हो रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंता बढ़ रही है कि अगर यह युद्ध और आगे बढ़ा, तो इसका असर सिर्फ मिडिल ईस्ट तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि वैश्विक स्थिरता, ऊर्जा बाजार और कूटनीतिक समीकरणों पर भी गहरा प्रभाव डालेगा.

भारत ने इस संघर्ष में फिलहाल खुद को तटस्थ रखा है. विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने स्पष्ट किया है कि भारत किसी एक पक्ष का समर्थन नहीं करेगा और शांति की अपील करता रहेगा. लेकिन भारत के पांच बड़े रणनीतिक साझेदार - अमेरिका, रूस, सऊदी अरब, फ्रांस और कतर - इस संघर्ष में किस ओर झुक सकते हैं? आइये, इनके संभावित रुख को समझते हैं:

1. अमेरिका: इजराइल का मजबूत समर्थक

अमेरिका की विदेश नीति में इजराइल हमेशा प्राथमिक साझेदार रहा है. वर्तमान में अमेरिका इजराइल का खुला समर्थन कर रहा है, लेकिन वाशिंगटन फिलहाल सीधे युद्ध में शामिल होने से बच रहा है. अमेरिका ईरान के साथ न्यूक्लियर डील को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन मौजूदा हालात में यह वार्ता अधर में लटक गई है. हालांकि अमेरिका ने इजराइल को संयम बरतने की सलाह दी थी, लेकिन जानकारों का मानना है कि इजराइल की मौजूदा आक्रामकता में अमेरिका की अप्रत्यक्ष सहमति है.

2. सऊदी अरब: संतुलित प्रतिक्रिया

सऊदी अरब ने इस संघर्ष पर सार्वजनिक रूप से काफी संतुलित प्रतिक्रिया दी है. सऊदी ने ईरान के खिलाफ कोई सीधी टिप्पणी नहीं की, बल्कि दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील की है. भले ही ईरान और सऊदी अरब के हाल के वर्षों में रिश्ते बेहतर हुए हैं, लेकिन सऊदी अब भी इजराइल के साथ अपने गुप्त रणनीतिक संबंध बनाए हुए है. ऐसे में यदि यह संघर्ष और बढ़ता है, तो सऊदी की स्थिति कूटनीतिक रूप से काफी सतर्क और तटस्थ बनी रह सकती है.

3. रूस: शांति का पक्षधर

रूस इस संघर्ष में खुद को शांति का समर्थक दिखा रहा है, लेकिन वैश्विक शक्ति संतुलन में अमेरिका का विरोध करना रूस की रणनीति का अहम हिस्सा है. रूस और ईरान के आपसी सैन्य और ऊर्जा संबंध मजबूत हैं, और यूक्रेन युद्ध के कारण रूस अमेरिका और पश्चिम के खिलाफ लगातार मोर्चा ले रहा है. संभावना है कि रूस अप्रत्यक्ष रूप से ईरान का समर्थन करे, लेकिन खुले तौर पर वह खुद को मध्यस्थ और शांति-प्रेमी ताकत के रूप में पेश करता रहेगा.

4. फ्रांस: न्यूट्रल के साथ इजराइल की ओर झुकाव

फ्रांस ने अब तक दोनों पक्षों को जिम्मेदार ठहराते हुए संयम की अपील की है. हालांकि फ्रांस का कूटनीतिक झुकाव अमेरिका और इजराइल की रणनीतियों के करीब दिखाई देता है. फ्रांस ने ईरान से बातचीत बहाल करने का आग्रह किया है, लेकिन यदि संघर्ष और गंभीर होता है, तो फ्रांस का झुकाव संभवतः इजराइल के पक्ष में मजबूत हो सकता है.

5. कतर: इजराइल के विरोध में

कतर ने इस संघर्ष में इजराइल की नीतियों की आलोचना की है और इस टकराव के लिए इजराइल को जिम्मेदार बताया है. हालांकि कतर भी खुलकर ईरान का समर्थन करने से बच रहा है. कतर अक्सर शांति वार्ताओं का मंच बनता रहा है और वह इसी भूमिका में रहना पसंद करेगा. अगर युद्ध बढ़ता है, तो कतर का रुख भी सावधानी और मध्यस्थता की ओर ही रहेगा.

भारत के लिए चुनौती

भारत के इन पांचों रणनीतिक साझेदारों की अलग-अलग प्राथमिकताएं हैं. अमेरिका और फ्रांस इजराइल के करीब हैं, जबकि रूस और कतर ईरान के पक्ष में दिखते हैं. सऊदी अरब फिलहाल संतुलित भूमिका में है. भारत की रणनीति फिलहाल "तटस्थ सक्रियता" की है, जहां वह किसी पक्ष में खड़ा हुए बिना, क्षेत्रीय स्थिरता और ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है.

अगर यह युद्ध लंबा खिंचता है तो भारत को ऊर्जा सुरक्षा, खाड़ी देशों में प्रवासी भारतीयों की सुरक्षा और पश्चिमी देशों के साथ अपने कूटनीतिक संतुलन को और सावधानी से संभालना होगा.

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