अयोध्या के बाद काशी-मथुरा पर चुप्‍पी?

अयोध्या के बाद काशी-मथुरा पर चुप्‍पी?

अभी तो केवल झांकी है, काशी-मथुरा बाकी है... यह नारा राम जन्मभूमि आंदोलन के समय से लगाया जाता रहा है. अब ज्ञानवापी-काशी विश्वनाथ मंदिर विवाद से जुड़ी मुस्लिम पक्ष की याचिकाएं इलाहाबाद हाई कोर्ट ने खारिज कर दी हैं. साफ है कि 2024 के लोकसभा चुनाव पर इसका असर पड़ेगा. ऐसे में संघ का वो वादा भी लोगों को याद आ रहा होगा जो उसने 2019 में अयोध्या केस में फैसला आने पर किया था. संघ परिवार ने कहा था कि वह आगे काशी में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि केस में आंदोलन शुरू नहीं करेगा. हालांकि राजनीति को समझने वाला हर शख्स अंदाजा लगा सकता है कि चुनाव में ऐसे मुद्दे कैसे भुनाए जाते हैं. 

वाराणसी कोर्ट में 1991 में हिंदुओं ने वाद दायर कर काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी ज्ञानवापी मस्जिद में पूजा का अधिकार मांगा था. अदालत में लंबित इस वाद में उस जगह पर मंदिर बहाल करने की मांग की गई है जहां इस समय ज्ञानवापी मस्जिद है. याचिकाकर्ताओं की दलील है कि वह मस्जिद वास्तव में मंदिर का हिस्सा है. 

फिलहाल काशी-मथुरा दोनों दोनों मामलों में संघ परिवार चुप है. वैसे अभी की स्थिति को समझें तो स्थितियां उसके अनुकूल ही दिखाई दे रही हैं. एक्सपर्ट कह रहे हैं कि 80 के दशक में अयोध्या, काशी और मथुरा विवादास्पद मुद्दे थे और यही आगे चलकर भगवा ब्रिगेड के कैंपेन का आधार बने. तब के नारे बताते थे कि संघ ने आगे के लिए क्या प्लान बना रखा है. अब चीजें अपने आप आगे बढ़ रही हैं.  

कैंपेन का असर ही था कि 1991 में यूपी में भाजपा ने बहुमत हासिल कर कल्‍याण सिंह की अगुआई में सरकार बनाई. भगवा दल का आधार बढ़ता रहा और केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी. मौजूदा हालात में संघ को पता है कि बिना कुछ किए इन मुकदमों का राजनीति पर प्रभाव जरूर पड़ेगा और इससे कहीं न कहीं चुनाव में भाजपा को फायदा मिलेगा.

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