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ऐसे थे कवि अटलः 'रार नहीं मानूंगा' कहने वाले की जब 'मौत से ठन गई'

ऐसे थे कवि अटलः 'रार नहीं मानूंगा' कहने वाले की जब 'मौत से ठन गई' नई दिल्लीः अटल जी बेहद जिंदादिल इनसान थे. ऊंचाई पर पहुंचकर भी गर्व ने उन्हें नहीं छुआ था. अटल बिहारी वाजपेयी अगर राजनेता और भारत के प्रधानमंत्री न भी होते तो भी एक कवि, पत्रकार और हिंदी सेवी के रूप में देश की अनन्य सेवा करने के लिए जाने-पहचाने जाते. अटल जी एक राजनेता के साथ ही बेहतरीन वक्ता और कवि के तौर पर पूरे देश में चर्चित रहे. अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25  दिसंबर, 1924 को हुआ था. वह 16 मई से 1 जून 1996, तथा फिर 19 मार्च 1998 से 22 मई 2004 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे. वह भारतीय जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी के संस्थापकों में से एक थे और उसके अध्यक्ष भी रहे. पर हम यहां उनके सियासी जीवनकाल पर नहीं बल्कि हिंदी सेवी अटल जी पर बात करेंगे. अटल जी ने लबे समय तक राष्ट्रधर्म, पाञ्चजन्य और वीर अर्जुन जैसी पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया. 'मेरी इक्यावन कविताएं' अटल जी का प्रसिद्ध काव्यसंग्रह है.

अटल बिहारी वाजपेयी को काव्य रचनाशीलता एवं रसास्वाद के गुण विरासत में मिले. उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी ग्वालियर रियासत में अपने समय के जाने-माने कवि थे. वे ब्रजभाषा और खड़ी बोली में काव्य रचना करते थे. पारिवारिक वातावरण साहित्यिक एवं काव्यमय होने के कारण उनकी रगों में काव्य रक्त-रस अनवरत घूमता रहा है. उनकी सर्व प्रथम कविता ताजमहल थी, जिसमें उन्होंने ताजमहल के कारीगरों के शोषण को उकेरा था. राजनीति के साथ-साथ समष्टि एवं राष्ट्र के प्रति उनकी वैयक्तिक संवेदनशीलता उनकी कविताओं में आद्योपान्त प्रकट होती ही रही है. उनकी कविताओं में उनका संघर्षमय जीवन, परिवर्तनशील परिस्थितियां, राष्ट्रव्यापी आन्दोलन, जेल-जीवन आदि अनेक आयामों का प्रभाव, संवेदना एवं अनुभूति सदैव अभिव्यक्ति पाते रहे. विख्यात गज़ल गायक जगजीत सिंह ने अटल जी की चुनिंदा कविताओं को संगीतबद्ध करके एक एलबम भी निकाला था.

अटल जी की प्रमुख प्रकाशित रचनाओं में, 'मृत्यु या हत्या', लोक सभा में अटल जी के वक्तव्यों का संग्रह 'अमर बलिदान', 'कैदी कविराय की कुण्डलियां', 'संसद में तीन दशक', 'अमर आग है', 'कुछ लेख: कुछ भाषण', 'सेक्युलर वाद', 'राजनीति की रपटीली राहें', 'बिन्दु बिन्दु विचार और 'मेरी इक्यावन कविताएं' प्रमुख हैं. अपनी कविताओं को लेकर उन्होंने कहा था, 'मेरी कविता जंग का ऐलान है, पराजय की प्रस्तावना नहीं. वह हारे हुए सिपाही का नैराश्य-निनाद नहीं, जूझते योद्धा का जय-संकल्प है. वह निराशा का स्वर नहीं, आत्मविश्वास का जयघोष है.' भारत रत्न से सम्मानित अटल जी आज हमारे बीच नहीं हैं, पर उनकी बेहतरीन रचनाओं ने उन्हें एक सफल प्रधानमंत्री के साथ-साथ जनमानस के बीच एक उम्दा कवि के रुप में भी स्थापित किया. वह सार्वजनिक मंचों पर भी अपनी कविताओं का पाठ करते थे.

उनकी दो कविताएं श्रद्धांजलि स्वरूप

गीत नया गाता हूं

टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर ,
पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर,
झरे सब पीले पात,
कोयल की कूक रात,
प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूं.
गीत नया गाता हूं.
टूटे हुए सपनों की सुने कौन सिसकी?
अंतर को चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी.
हार नहीं मानूंगा,
रार नहीं ठानूंगा,
काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं.
गीत नया गाता हूं.

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मौत से ठन गई

ठन गई!
मौत से ठन गई!

जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं,
लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?

तू दबे पांव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा।

मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।

बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।

प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला।

हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।

आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भंवरों की बांहों में मेहमान है।

पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफां का, तेवरी तन गई।

मौत से ठन गई।
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