खतरे और लापरवाहियों के बीच हो रही भारत में हवाई-यात्रा
जनता जनार्दन डेस्क ,
Jan 04, 2017, 7:31 am IST
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नई दिल्लीः भारत विमान यात्रा के क्षेत्र में आज भी दूसरे देशों से काफी पीछे है. नए विमानन नियम, नई सहूलियतें, आधुनिक तामझाम, यात्रा में सुगमता की गारंटी और भी कई तमाम हवाई कागजी बातें उस समय धरी की धरी रह जाती हैं, जब प्लेन उड़ने से पहले अपनी अव्यवस्था बयां कर देता है.
उदाहरण दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट के सपाट रनवे पर आमने-सामने एक साथ दो विमानों का आ जाना. इसे एटीएस का गलती कहें या विमानन कंपनियों की तकनीकी नाकामी, या फिर पायलटों की लापरवाही, इससे यात्रियों की जिंदगी दांव पर जरूर लग जाती है। 28 दिसंबर को देश में दो बड़े विमान हादसे होते-होते बचे। एक दिल्ली और दूसरा गोवा में। दोनों घटनाओं ने हवाई यात्रा सुरक्षाओं की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा कर दिया है दरअसल, विमानन कंपनियां इस समय सवालों के घेरे में हैं, और होनी भी चाहिए। गोवा और दिल्ली में एक ही दिन दो बड़ी विमान घटनाएं हो सकती थीं। गोवा में जिस तरह से विमान लैंडिंग के दौरान अपना संतुलन खोकर धरती पर गिरा और हादसा होने से बचा उसे कुदरत का करिश्मा ही कहेंगे। अंदर बैठे यात्रियों ने बाहर निकलकर बताया कि जब विमान रनवे पर फिसल रहा था, तो धडा़म-धड़ाम की तेज आवाजें उन्हें सुनाई दे रही थीं। विमान तेजी से अचानक मुड़ा और आगे की तरफ तेज आवाज करता हुआ एकदम झुक गया। थोड़ी देर के लिए सभी यात्रियों की सांसे थम सी गईं। विमान का लैंडिंग गियर जिस तरह से क्षतिग्रस्त हुआ है, उससे हादसा होने की परिकल्पना की जा सकती है। लैंडिंग गियर पूरी तरह से चकनाचूर हो गया। जेट एयरवेज के इस विमान में 161 यात्री यात्रा कर रहे थे। घटना के वक्त थोड़ी देर के लिए अफरा-तफरी का माहौल बन गया। विमान में सवार क्रू मेंबर, यात्रियों को छोड़ खुद की जान बचाने के लिए तेजी से उतरते दिखाई दिए। इसी के चलते हुई आपा-धापी में 12 यात्री जख्मी हो गए। बहरहाल, सवाल उठता है कि यात्रियों की सुरक्षा आखिर कौन करेगा? दोनों घटनाओं में विमानन कंपनियों की नाकामी प्रत्यक्ष रूप से सामने आ रही है। उनकी तकनीक में अव्यवस्था की तस्वीर सामने आई है। हालांकि यह गलती न विमानन कंपनी स्वीकार करेंगी और न ही सरकारी तंत्र, जिस तरह से विमान का अगला हिस्सा रनवे को पार करता हुआ दूसरी तरफ जाकर जमीन को छूने लगा, उससे प्रतीत हो रहा है कि इसमें सिर्फ पायलट की गलती रही होगी। विमान के अंदर लोग दहशत में आ गए क्योंकि उस वक्त जोरदार झटका लगा। घटना की प्रारंभिक जांच करते हुए प्रशासन ने फिलहाल दोनों पायलटों के लाइसेंस अस्थायी रूप रद्द कर दिए हैं। सवाल उठता है कि क्या यह सब करने से हादसों को राकने का हल निकल जाएगा। शायद नहीं। घटना की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए, दोषी कर्मचारियों को सख्त सजा देनी चाहिए। ऐसे ही हरियाणा का चरखी विमान हादसा शायद ही कोई भूल पाए। उस हादसे को भारत में अब तक के सबसे बड़े हवाई हादसे में गिना जाता है। घटना को याद करते रूह कांप उठती है। एटीसी से जुड़ा हुआ भारत में अब तक का सबसे बड़ा हवाई हादसा है। दिल्ली में चरखी हादसे की पुनरावृति होते-होते बची। दो विमान आमन-सामने टक्कर खाने से बच गए। बताने की जरूरत नहीं है कि अगर टक्कर हो जाती तो क्या होता? दिल्ली की तरह 12 नवंबर, 1996 में चरखी दादरी में दो विमानों में मिड एयर कॉलिजन हुआ। एक विमान सऊदी अरब का था, तो दूसरा कजाखिस्तान का। उस हादसे में दोनों विमानों में सवार सभी 349 यात्रियों में से कोई जिंदा नहीं बचा। यकीनन, चरखी विमान घटना में रूसी जहाज के पायलट की गलती सामने आई थी। वजह उसे एटीसी के दिशा-निर्देश ठीक से समझ नहीं आ रहे थे। एटीसी उसे बता रहा था कि वह गलत रूट पर जा रहा है। दरअसल, रूसी पायलट को अंग्रेजी नहीं आती थी। वह रशियन भाषा ही जानता था। भाषा नहीं समझ पाने के लिए पायलट ने सामने आ रहे दूसरे जहाज में टक्कर मार दी। उस हादसे में दोनों जहाजों में यात्रा कर रहे यात्रियों की जाने चली गईं। उस घटना के बाद एयर मैनुअल नियम में एक संशोधन किया गया कि हर देश में एटीसी और पायलट के लिए अंग्रेजी जरूरी आनी चाहिए। इस हादसे के बाद एटीसी के लोग अंग्रेजी तो सीख गए, लेकिन हादसे नहीं थमे। विमान हादसों में अधिकत खराब मौसम होने की दुहाई दी जाती है, लेकिन ऐसे हादसों में मानवीय चूक भी बहुत बड़ा रोल अदा करती है, जिस पर किसी का ध्यान नहीं जाता। दरअसल, विमानन क्षेत्र में अक्सर कहा जाता है कि भारत का एविएशन सेक्टर अभी भी विश्वस्तरीय नहीं है। हिंदुस्तान में महज दिल्ली, मुंबई जैसे दो-तीन ही इंटरनेशनल स्टैंडर्ड के एयरपोर्ट हैं, जबकि देश में एविएशन सेक्टर में भारी संभावनाएं हैं। यह क्षेत्र सालाना 14 फीसदी की दर से ग्रोथ कर रहा है। दुनिया के टॉप-5 कंट्री में शुमार भारतीय एविएशन सेक्टर का अभी तक उचित दोहन नहीं किया गया है। टियर दो और टियर तीन श्रेणी के शहरों को तो हवाई रूट से जोड़ा ही नहीं गया है, जबकि आर्थिक तरक्की के साथ इन शहरों में हवाई यात्री बढ़े हैं। एविएशन क्षेत्र में पिछले दो दशकों से ईमानदारी से काम नहीं किया गया। यही कारण है की इस क्षेत्र का स्तर पिछले बीस सालों में काफी गिरा है। इधर, दिल्ली-गोवा की इन दोनों घटनाओं ने विमान यात्रियों की आशंकाओं में बढ़ोतरी की, क्योंकि हाल ही में विमान संबंधी की भयावह घटनाएं घटी हैं। पिछले सप्ताह ही रूस का एक विमान समुद्र में समा गया था। यात्रियों में हवाई सफर को लेकर डर है। इन ताजा घटनाओं ने डर में और बढ़ोतरी कर दी है। तकनीकी नाकामी से विमान दुर्घटनाएं होती रही हैं। अब विमानन कंपनियों द्वारा सुरक्षा संबंधी लापरवाही और अशांत क्षेत्रों के ऊपर से उड़ान भरने को लेकर नए सवाल खड़े होने लगे हैं। आखिर कैसे हो सुगम हवाई यात्रा। हालांकि उक्त घटनाओं पर केंद्र सरकार ने नाराजगी जाहिर की है। सख्त जांच के आदेश पारित किए हैं। अगर पायलटों की गलती सामने आती है, तो प्रशासन को ऐसे सभी पायलटों को अयोग्य कर देना चाहिए जो यात्रा के दौरान लापरवाही दिखाते हैं, क्योंकि उनकी थोड़ी सी चूक कई लोगों की जान ले सकती है। पूर्व की घटनाओं को देखे तो एयर इंडिया पहले भी कई बार विमान हादसों की शिकार हो चुकी है। खराब मौसम, पायलट की चूक या फिर कोई टेक्निकल समस्या से अब तक हवाई हादसों में अनगिनत यात्रियों ने अपनी जान गंवाई है। जनवरी 1978 में पहली बार एयर इंडिया का विमान अरब सागर में क्रैश हुआ था। उस विमान में 213 यात्री सफर कर रहे थे, जिनकी जिंदगी का आखिरी सफर साबित हुआ। विमान में सवार सभी लोग मारे गए। इसके बाद 21 जून 1982 को एयर इंडिया का एक और विमान मुंबई एयरपोर्ट पर क्रैश हुआ। विमान में सवार 111 लोगों में से 17 लोगों की मौत हो गई थी। इस घटना में प्रत्यक्ष रूप से पायलटों की गलती सामने आई। जांच में पाया गया कि पायलट की गलती से ये हादसा हुआ। 1988 में एक बार फिर अहमदाबाद में एयर इंडिया का एक विमान क्रैश हुआ। यह हादसा इतना भयंकर था कि प्लेन में सवार 124 लोग मारे गए थे, जबकि 5 यात्रियों को बचा लिया गया था। ठीक दो साल 1990 में बेंगलुरु में फिर एक विमान हादसा हुआ। विमान में 146 पैसेंजर थे, जिनमें 92 की मौत हो गई थी। 1991 में एयर इंडिया का विमान इंफाल में क्रैश हुआ, जिसमें 69 लोगों की मौत हो गई। साल 2000 में एलायंस एयर फ्लाइट सीडी-7412 पटना एयरपोर्ट पर हादसे का शिकार हो गया। इसमें 60 लोगों की मौत हो गई थी। इसके अलावा कई चार्टर प्लेन और हेलीकॉप्टर भी क्रैश हुए। उपरोक्त अधिकतर घटनाओं में देखने को मिला है कि खराब रख-रखाव व अन्य तकनीकी खराबियों की वजह से हादसे हुए। कुछ में पायलटों की नाकामी भी सामने आई थी। भारत के सभी रनवे और विमानों को आधुनिक करने की जरूरत है। दक्ष पायलटों को ही विमान उड़ाने की इजाजत होनी चाहिए। विमानों का रख-रखाव ठीक से हो और उसकी समय पर जांच करनी चाहिए, ताकि यात्री भयमुक्त होकर विमानों में सफर कर सकें। दरअसल, पूर्व में हुए कई विमान हादसों ने यात्रियों के दिलों में भय पैदा कर दिया है। दो साल पहले गायब हुआ एक विदेशी जहाज का आज तक पता नहीं चल सका। वहीं कुछ दिन पहले रूस का एक विमान समुद्र में समा गया। उस जहाज में सवार सभी यात्रियों की जलसमाधी बन गई। विमानन क्षेत्र को और मजबूत करने की जरूरत है। सिर्फ कागजी हवाई बातें नहीं होनी चाहिए। यात्रा के दौरान सभी यात्रियों की सुगतमा की गारंटी सुनिश्चित होनी चाहिए। ताकि लोग भयमुक्त होकर यात्रा कर सकें। |
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