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जॉन अब्राहम और इमरान हाशमी के फैन्स के लिए है फिल्म Mumbai Saga

जनता जनार्दन संवाददाता , Mar 22, 2021, 19:10 pm IST
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जॉन अब्राहम और इमरान हाशमी के फैन्स के लिए है फिल्म Mumbai Saga

मुंबई में दो तरह के लोग रहते हैं. हफ्ता वसूलने वाले और हफ्ता देने वाले. हफ्ता लेने-देने के इस खेल में महानगर को लूडो बना कर अपराधी, पुलिस, राजनेता और उद्योगपति पासे फेंकते और गोटियां चलते हैं. कब कौन किससे हाथ मिलाकर किसको मात दे देगा, कह नहीं सकते. मुकेश अंबानी के घर अंतिला के बाहर कुछ दिनों पहले मिली विस्फोटकों से भरी कार के बाद अपराधी, पुलिस, राजनेता और उद्योगपतियों के शह-मात के खेल की पहेली इन दिनों फिर सुर्खियों में है. साफ है कि देश के सबसे बड़े मैट्रो का नाम भले ही बीते दशकों में बंबई से मुंबई हो गया परंतु तासीर नहीं बदली. यही वजह है कि निर्माता-निर्देशक संजय गुप्ता की फिल्म भले 1980 के दशक वाले बंबई की कहानी कहे, लेकिन उन्होंने नाम रखा है मुंबई सागा.


संजय गुप्ता की आतिश (1994), कांटे (2002), शूट आउट एट लोखंडवाला (2007) तथा शूटआउट एट वडाला (2013) जैसी अंडरवर्ल्ड अपराध कथाओं को दर्शकों ने पसंद किया था. मुंबई सागा इसी की अगली कड़ी है. उनके सत्य घटनाओं पर आधारित दावे का विश्वास करें तो मुंबई सागा अंडरवर्ल्ड के चर्चित भाइयों अमर नाइक और अश्विन नाइक की जिंदगी से प्रेरित है. लेकिन वह यह भी कहते हैं कि पात्र काल्पनिक हैं. रेलवे स्टेशन पर सब्जी बेचने वाले परिवार के अमर्त्य राव (जॉन अब्राहम) और हफ्ता वसूली करने वाले गायतोंडे (अमोल गुप्ते) में तब ठन जाती है, जब गायतोंडे के गुंडे अमर्त्य के छोटे भाई अर्जुन की बुरी गत बना देते हैं. अमर्त्य ऐलान करता है कि आज से कोई गुंडों को हफ्ता नहीं देगा. वह अकेला पचास-पचास गुंडों को पीटता है, उठा-उठा कर पटकता है. उनके हाथ-पैर-चेहरे फोड़ता और जेल जाकर भी गायतोंडे की नाक के नीचे से बच निकलता है. मुंबई पर राज करने वाले लीडर भाऊ (महेश मांजरेकर) का हाथ अब अमर्त्य के सिर पर है और देखते-देखते वह अंडरवर्ल्ड के रंग-ढंग में ढल जाता है. इसके बाद अमर्त्य-गायतोंडे की प्रतिद्वंद्विता, भाऊ के इशारे पर मिल मालिक-उद्योगपति सुनील खेतान (समीर सोनी) की अमर्त्य द्वारा दिनदहाड़े हत्या और खेतान की पत्नी द्वारा हत्यारे को ठिकाने लगाने पर 10 करोड़ रुपये ईनाम की घोषणा के साथ इंस्पेक्टर विजय सावरकर (इमरान हाशमी) की एंट्री कहानी पर पूरा बॉलीवुड रंग चढ़ा देती है. फिल्म दो हिस्सों में बंट जाती है. विजय के आने से पहले और विजय के आने के बाद.

एक लिहाज से कहानी में नयापन नहीं है. तमाम बातें बॉलीवुड और संजय गुप्ता की फिल्मों में पहले देखी गई हैं. फिल्म का पीला-हरा कलर टोन भी यहां उनकी पुरानी ऐक्शन-अपराध कथाओं जैसा है. अपराधी-नायकों का अंदाज हमेशा की तरह स्टाइलिश है. उनके डायलॉग और ऐक्शन ध्यान खींचते हैं. ऐसे में अगर आप बगैर दिमाग खर्च किए देखें तो मुंबई सागा पसंद आएगी. संजय गुप्ता की फिल्मों का एक अलग खाका है और उनके फैन्स को यही पसंद आता है. संजय जब मुंबई-अपराध कथा के दायरे से बाहर निकले, तो फैन्स ने उनकी फिल्मों को नकार दिया. ऋतिक रोशन जैसे स्टार की मौजूदगी में उनकी पिछली फिल्म काबिल (2017) औसत साबित हुई. ऐसे में गुप्ता फिर पुराने मैदान में उतर गए. हालांकि उनकी पिछली अपराध-ऐक्शन फिल्मों के मुकाबले मुंबई सागा कमजोर है.

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