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एससी-एसटी एक्ट: सुप्रीम कोर्ट का स्टे से इनकार, कही ये खास बातें
जनता जनार्दन संवाददाता ,
Apr 03, 2018, 17:54 pm IST
Keywords: SC/ST Act hearing Supreme Court Indian Penal Code SC/ST act SC/ST act judgment SC/ST verdict Review petition.
![]() शीर्ष अदालत ने कहा कि हमने ऐक्ट को कमजोर नहीं किया है बल्कि गिरफ्तारी और सीआरपीसी के प्रावधान को परिभाषित किया है. शीर्ष अदालत ने तत्काल गिरफ्तारी के प्रावधान को लेकर कहा कि हमारा मकसद निर्दोष लोगों को फंसाने से बचाना है. निर्दोषों के मौलिक अधिकारों की रक्षा होनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की खुली अदालत में सुनवाई करते हुए कहा है कि एससी-एसटी एक्ट के प्रॉविजन से कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है. सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने कहा है कि वह इस एक्ट के खिलाफ नहीं है, लेकिन निर्दोषों को सजा नहीं मिलनी चाहिए. शीर्ष अदालत ने कहा कि कोर्ट से बाहर क्या हो रहा है, उससे उन्हें लेना-देना नहीं है. उन्होंने कहा कि हमारा काम कानूनी बिंदुओं पर बात करना और संविधान के तहत कानून का आकलन करना है. एससी/एसटी एक्ट में गिरफ्तारी से पहले जांच अनिवार्य करने के मामले में केंद्र की पुनर्विचार याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की. सुनवाई के दौरान एजी की दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम एक्ट के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन बेगुनाह को सजा न मिले, यह देखा जाना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि एससी-एसटी एक्ट में पीड़ित को मुआवाजा देने में देरी नहीं होगी. उसके लिए एफआईआर के इंतजार की जरूरत नहीं है. केंद्र सरकार की ओर से बार-बार 20 मार्च के फैसले पर स्टे लगाने के आदेश को कोर्ट ने ठुकरा दिया. यही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने प्रदर्शनकारियों पर तंज कसते हुए कहा है कि जो लोग सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं उन्होंने हमारा जजमेंट पढ़ा भी नहीं है. हमें उन निर्दोष लोगों की चिंता है जो जेलों में बंद हैं. आपको बता दें कि एससी-एसटी ऐक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के संदर्भ में केंद्र सरकार ने पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी. सरकार ने इस फैसले के खिलाफ आयोजित भारत बंद में हुई हिंसा का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट से स्टे की दरख्वास्त की थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा हम फिलहाल तुरंत गिरफ्तारी पर रोक के निर्देश पर रोक नहीं लगाएंगे. एससी/एसटी एक्ट में केस दर्ज दर्ज करने के लिए प्रारंभिक जांच जरूरी कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पीडित को मुआवजे का भुगतान तुरंत किया जा सकता है चाहे शिकायत आने के बाद एफआईआर दर्ज ना हुई हो कोर्ट ने ये भी स्पष्ट किया कि एफआईआर आईपीसी के अन्य प्रावधानों पर दर्ज हो सकती है. सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी - कोर्ट ने जो सुरक्षा उपाय किये है ताकि किसी निर्दोष को सजा न मिले. ये अकेला ऐसा कानून है कि जिसमें किसी व्यक्ति को कोई कानूनी उपचार नहीं मिलता. अगर एक बार मामला दर्ज हुआ तो व्यक्ति गिरफ़्तार हो जाता है. इस मामले में अग्रिम जमानत का प्रावधान नहीं है. जबकि दूसरे मामलों में संरक्षण के लिए फ़ोरम है, कोर्ट हैं जो झूठे मामलों में सरंक्षण दे सकता है. कोर्ट ने कहा कि अगर कोई दोषी है तो उसे सजा मिलनी चाहिए लेकिन बेगुनाह को सजा न मिले. कोर्ट ने कहा कि प्रेरित, दुर्भावना और झूठे आरोप लगाकर उनकी स्वतंत्रता का हनन नहीं कर सकते. जस्टिस आदर्श कुमार गोयल ने ये भी कहा इस कानून में आरोपों को वैरीफाई करना मुश्किल है इसलिए इस तरह की गाइडलाइन जारी की गई. जबकि अन्य अपराध में आरोपों को वैरीफाई किया जा सकता है. जस्टिस गोयल ने कहा हम एक्ट के खिलाफ नहीं हैं, हमारा मकसद सिर्फ निर्दोष को बचाना है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा जो लोग सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं शायद उन्होंने हमारे फैसले को नहीं पढ़ा सरकार क्यों ये चाहती है कि जांच के बिना हीलोग गिरफ्तार हो अगर सरकारी कर्मी पर कोई आरोप लगाए तो वो कैसे काम करेगा हमने एक्ट को नहीं बल्कि सीआरपीसी की व्याख्या की है जस्टिस यू यू ललित ने कहा हमने जो गाइडलाइन जारी की हैं वो कानून में सेफगार्ड हैं ये जरूरी नहीं कि समुदाय के लोग ही इसका मिसयूज करें, पुलिस भी कर सकती है केंद्र की दलील - केंद्र सरकार ने कहा कि इस कानून के प्रावधान में किसी गाइडलाइन की जरूरत नहीं है. एडवोकेट जनरल ने जस्टिस करनन के मामले का हवाला दिया, जिसमें उन्होंने चीफ जस्टिस व सुप्रीम कोर्ट के जजों पर दलित होने की वजह से प्रताडित करने का आरोप लगाया था. एडवोकेट जनरल ने कहा कि वो आरोप सही नहीं थे तो कोई कार्रवाई नहीं की गई एडवोकेट जनरल ने कहा इस आदेश के बाद समाज में जबरदस्त रोष है और प्रदर्शन हो रहे हें जस्टिस गोयल ने कहा हम सिर्फ कानूनी बात करेंगे, बाहर क्या हो रहा है हमें नहीं पता हमने शिकायत की वैरिफिकेशन के लिए सात दिनों का वक्त रखा है अमिक्स क्यूरी अमरेंद्र शरण ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को देखे को सीआरपीसी भी यही कहता है कि गिरफ्तारी से पहले जांच हो. भले ही प्रावधान एक्ट के हों लेकिन प्रक्रिया सीआरपीसी की होती है ये गाइडलाइन जारी होने से केस की जांच, ट्रायल आदि प्रक्रिया पर कोई असर नहीं पड़ेगा. इससे पहले सुनवाई में एजी की ओर से खुली अदालत में इस संबंध में सुनवाई की अपील पर कोर्ट ने हामी भर दी थी. कोर्ट में एजी केके वेणुगोपाल ने कहा कि आज ही सुनवाई हो. इस पर जस्टिस आदर्श गोयल ने कहा कि वो खुली अदालत में सुनवाई को तैयार हैं, कोई परेशानी नहीं है लेकिन वही बेंच होनी चाहिए जिसका फैसला था. जस्टिस गोयल ने कहा कि बेंच के गठन के लिए चीफ जस्टिस के सामने मेंशन करें. केंद्र की ओर से एडवोकेट जनरल ने आज ही दो बजे सुनवाई की मांग की. एडवोकेट जनरल केके वेणुगोपाल ने सीजेआई कोर्ट में कहा, देश में कानून व्यवस्था खराब हो रही है. ऐसे में मामले की आज ही सुनवाई की जानी चाहिए. कोर्ट ने मांग मान ली. अमिक्स क्यूरी अमरेंद्र शरण ने इसका विरोध किया. सुनवाई के बाद CJI ने कहा - वही बेंच आज दो बजे सुनवाई करेगी जिसने फैसला दिया. फैसले पर रोक लगे या नहीं वहीं बेंच तय करेगी. शरण ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सिर्फ इसलिए रोक नहीं लगाई जा सकती क्योंकि कानून व्यवस्था खराब हो रही है. बता दें कि 20 मार्च के फैसले के खिलाफ केंद्र ने पुनर्विचार याचिका दाखिल की है. मामले पर जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और जस्टिस यू यू ललित की बेंच ने आदेश दिया था. एससी/एसटी एक्ट मामले में केंद्र सरकार की पुनर्विचार याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट का 20 मार्च का फैसला एससी/एसटी समुदाय के संविधान के तहत दिए गए अनुच्छेद 21 के तहत जीने के मौलिक अधिकार से वंचित करेगा. एससी/एसटी के खिलाफ अपराध लगातार जारी है तथ्य बताते हैं कि कानून के लागू करने में कमजोरी है ना कि इसका दुरुपयोग हो रहा है. अगर आरोपी को अग्रिम जमानत दी गई तो वो पीडित को आतंकित करेगा और जांच को रोकेगा. अग्रिम जमानत का प्रावधान 1973 में अधिकार के तहत जोड़ा गया. कोर्ट ने गलत कहा है कि जमानत देने से इंकार करना जीने के अधिकार का उल्लंघन है. |
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