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हंसो, कि हंसने के अलावा कुछ कर नहीं सकते

जनता जनार्दन संवाददाता , May 18, 2017, 19:09 pm IST
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हंसो, कि हंसने के अलावा कुछ कर नहीं सकते नई दिल्लीः कुछ लड़कों ने सेना पर पत्थर बरसाए। कुछ लोग हंसे और कुछ चुप बैठे रहे। कई  दफ़ा अपने ही ही जवानों के हाथों अपने लोगों की रक्ताचमन हुआ। कुछ लोगों ने दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री पर पत्थर बरसाए। अब तक चुप बैठे हुए लोग अब खिलखिला उठे।

बिहार में कुछ लोगों ने लालू पर पत्थर फेंके तो दिल्ली से नागपुर तक हंसी बिखरती रही। लोग हंसते रहे। हंसी देश भर में वाट्स ऐप कर दी गई और पूरा देश हंसता रहा। कुछ देर बाद लालू समर्थकों ने अब तक हंसने वालों पर पत्थर और डंडे बरसाए। अब हंसने वाले रोने लगे और सारे लालू समर्थक और केंद्र विरोधी हंसने में व्यस्त हो गए।

राजस्थान के कुछ कोनों में आंधी आई। कुछ कोनों सांप्रदायिक हवाएं चलीं। कुछ लोगों ने उन लोगों को पीटा और ये लोग हंसते रहे। कुछ लोगों ने इन लोगों को पीटा और वे लोग हंसते रहे। फिर भी कुछ लोग चुपचाप देखते रहे। हंसने वाले हंसते रहे और देखने वाले देखते रहे। हंसते-हंसते मध्यप्रदेश हंसने लगा और फिर धीरे-धीरे उत्तरप्रदेश हंसता रहा। उत्तरप्रदेश हंसा तो उत्तराखंड कैसे चुप रहता। सब दूसरों को पीटते रहे और हंसते रहे।

दक्षिण में चिदंबरम पिटा और उत्तर भारत हंसता रहा। उत्तर भारत में सोनिया गांधी और उसका बेटा-बेटी पिटते रहे। चारों दिशाओं में कुछ लोग हंसते रहे। कुछ लोग दिल्ली में मारे गए और कुछ गुजरात में। कुछ भुवनेश्वर में भूने गए और कुछ लुंबिनी में मारे गए। कुछ कोलकाता के पास और कुछ ढाका पीटे गए। कुछ को काबुल में और कुछ को वॉशिंगटन में बंदूक से भून दिया गया।

जिन्हें भूना गया, जिन्हें पीटा गया, वे गुमसुम और उदास रहे और जो पीटते रहे, वे हंसते भी रहे। जो हंसते रहे, वे अपनी सारी हस्ती गुमान में डुबोते चले। कहीं इस रंग का गुमान, कहीं उस रंग का गुमान।

कहीं नक्सलवादी हंसते रहे उन जवानों को मारकर, जो गांवों से आए लड़के थे उन जैसे ही। कहीं कुछ अपने ही जीवन के संघर्षों में उतरे अपने ही पसीने को पीकर प्यास बुझा रहे अपने ही जैसे लड़कों को नक्सलवादी बताकर मार देने के बाद अपने ही भाई हंस रहे थे।

ऐसी दास्तान दुनिया के किसी देश में नहीं दिख रही थी कि अपने ही नागरिकों को अपने ही देश में गुस्ताख़ निगाही से देखा जा रहा था और अपने ही स्वर में स्वर साधने वाले आपराधिक वैताल परमप्रिय हो रहे थे। इसके भी, उसके भी। अब तक देश की जिंदगी एक आन में गुजरी थी, लेकिन अब हंसने में गुजर रही थी। हम सब एक दूसरे को पीट-पीटकर हंस रहे थे।

कुछ किसी को सलवार पहनाकर हंस रहे थे और कुछ किसी के वस्त्र उतारकर ठहाके लगा रहे थे। कुछ ने किसी को चाय बेचने वाला बताकर ठहाके लगाए तो कुछ ने अपने मौन से अपनी हंस उड़ाई। किसी ने गुजरात से हंसने की शुरुआत की और दिल्ली में आकर हंसते-हंसते लोटपोट हो गया। कोई रायबरेली से हंसने लगी तो दिल्ली तक हंसती ही रही। हंसते रहे सभी।

दिल्ली हंसी, यूपी हंसा, हरियाणा और पंजाब एक दूसरे को पीटकर हंसे। केरल ने कर्नाटक को चिढाकर खिलखिलाने की कोशिश की तो तमिलनाडु अपनी तरह हंसने की कोशिश की। कोई न्यायपीठ को दगा देकर हंसा तो कोई संसद की मर्यादा भंगकर हंसता रहा। कोई अपने बुजुर्गों को रनिवासे में कैद करके कुटिल हंसी हंसा तो कोई मौन में वाचाल होकर मन ही मन हंसता रहा।

दिल्ली में मणिपुर में आंख खोली तो उत्तरभारत ने उसकी मिचमिची आंखों में मिर्ची डालने की कोशिश की और असम दिखा तो उस पर धूल फेंक दी। केरल के कुछ विद्वान और विदुषियों को देखा तो मुंह से निकला: साले काले मद्रासी और पंजाब कहीं नजर आया तो बारह बज गए। और लोग हंसने लगे। भारत हंसने लगा। यह लम्हा उस लम्हे पर हंसा और वह लम्हा उस लम्हे पर हसंता रहा। पत्थर फेंक-फेंककर।

हम पत्थर फेंकते रहे, एक दूसरे को पीटते रहे और ऐश करते रहे। हमने इम्तिहानों की परवाह नहीं की और न कामयाबी की। हम समुद्र की लहरों में नाविक को पीटकर हंसते हैं और कमान में कोई तीर जुंबिश भरने लगें किसी के हाथ तो हम पीटकर मजा लेने लगते हैं।

पीटना और हंसना हमारी आन-बान-शान हैं और हम जब आपस में ही पीटने लगते हैं और हंसने लगते हैं तो पूरी दुनिया हम पर हंसती है, लेकिन हम कमीनों को यह कभी नहीं दिखता कि यह भारत देश एक है और इसमें हिन्दू-मुसलमान-सिख-ईसाई-बौद्ध अथवा ब्राह्मण-दलित-वैश्य-जाट-राजपूत-गुर्जर-लुहार-सुनार नहीं, भारत देश के नागरिक बसते हैं।

यों तो हम 741 साल तक अंगरेज़ों, मुगलों, सुरों, लोधियों, सैयदों, तुगलकों, खिलजियों और गुलामों की लातें खाते रहे, क्योंकि तब भी हम आज ही तरह एक दूसरे को पीट-पीटकर हंस रहे थे। कुछ दिन पहले हमारे शासकों ने अमेरिका को अपने गर्वीले देश के सैनिक अड्‌डों का इस्तेमाल करने का अधिकार सौंप दिया और अब जिस समय वह देश स्वयं अपने पागल राष्ट्रपति से डर हुआ है, हमारे सैन्य ठिकानों के दुरुपयोग की किसी को चिंता नहीं है।

कोई नहीं कह रहा कि उस समझौते की समीक्षा करो। हम एक-दूसरे को पीट-पीटकर हंस रहे हैं और दुनिया हम पर हंस रही है। लेकिन हमारी इस हंसी के पीछे समुद्र से ज्यादा आंसुओं का डर छुपा हुआ है। हम अगर एक दूसरे को पीट-पीटकर हंसते रहे और अपने ही अपने को स्वयंभू सुदर्शनचक्र वाले श्रीकृष्ण घोषित करते रहे तो कंस भी कोई और नहीं, हम स्वयं ही होंगे। हंसो, हंसो और हंसो। भारत की बर्बादी की फिक्र से ऊपर उठकर हंसो कमीनो!

# छपाई की दुनिया के धांसू पत्रकार त्रिभुवन अपनी बेबाक मारक टिप्पणियों की बदौलत, सोशल मीडिया पर भी खासे सक्रिय हैं. यह टिप्पणी उनकी फेसबुक वॉल से ली गई है.
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