पटना उच्च न्यायालय का इतिहास गौरवशाली
जनता जनार्दन डेस्क ,
Mar 06, 2016, 12:14 pm IST
Keywords: Patna High Court 100 years Prime Minister Modi पटना उच्च न्यायालय 100 वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
पटना: पटना उच्च न्यायालय के 100 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में घोषित शताब्दी वर्ष के समापन समारोह में भाग लेने के लिए 12 मार्च को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पटना पहुंच रहे हैं।
पटना उच्च न्यायालय अपने अतीत और विरासत के कारण चर्चित रहा है। पटना उच्च न्यायालय के गौरवशाली इतिहास का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस अदालत में देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद और संविधान सभा के प्रथम अध्यक्ष डॉ़ सच्चिदानंद सिन्हा सहित कई चर्चित हस्तियां ने भी यहां वकालत की थीं। पटना उच्च न्यायालय के शताब्दी समारोह का उद्घाटन पिछले वर्ष अप्रैल में जहां देश के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने किया था, वहीं इस शताब्दी वर्ष के समापन समारोह में भाग लेने के लिए 12 मार्च को देश के प्रधानमंत्री मोदी पटना पहुंच रहे हैं। यह न्यायालय अपने कई फैसले, न्यायाधीश और यहां वकालत कर चुके कई विद्वान वकीलों के कारण भी चर्चित रहा है। पटना उच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील दीपक सिंह कहते हैं कि पटना उच्च न्यायालय का एक गौरवशाली इतिहास रहा है। वे कहते हैं कि पटना उच्च न्यायालय की ख्याति अन्य राज्यों के उच्च न्यायालय से बेहतर है। वे कहते हैं कि बाहर से आए वकील और न्यायाधीश इस न्यायालय के काम करने के ढंग की प्रशंसा करते हैं। शताब्दी समारोह के उद्घाटन के मौके पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा था कि जब 1 दिसंबर 1913 को पटना उच्च न्यायालय के भवन की आधारशिला रखी गई तो भारत के तत्कालीन वायसराय और गवर्नर जनरल ने कहा था, “मुझे पूर्ण विश्वास है कि आने वाले दिनों में दुर्जनों के आतंक से निपटने के लिए न्याय को साहस और निष्पक्षता के साथ प्रशासित करेगा।” राष्ट्रपति ने कहा था कि यदि कोई भी पटना उच्च न्यायालय के इतिहास पर नजर डालता है तो यह स्पष्ट नजर आएगा कि न्यायालय ने लॉर्ड हार्डिग की उम्मीदों से ज्यादा कार्य किया है। इस न्यायालय के द्वारा ऐतिहासिक कई फैसले सुनाए गए हैं। इस न्यायालय में देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने भी कई वर्षो तक वकालत की थी। डॉ़ राजेंद्र प्रसाद ने वकालत प्रारंभ करने के लिए 25 जून 1911 को पोर्ट विलियम बंगाल (कोलकाता उच्च न्यायालय) के मुख्य न्यायाधीश के नाम से आवेदन दिया था। उस समय बगैर मुख्य न्यायाधीश एवं रजिस्टार की अनुमति के वकालत प्रारंभ करने की प्रथा नहीं थी। पटना उच्च न्यायालय में आज भी उनके हाथ से लिखा वह आवेदन मौजूद है। यही नहीं इस उच्च न्यायालय के लिए गर्व की बात है कि संविधान सभा के प्रथम अध्यक्ष डॉ़ सच्चिदानंद सिन्हा भी यहां वकालत की थी। एक मार्च 1916 से पटना उच्च न्यायालय ने विधिवत कार्य करना प्रारंभ किया था। पटना उच्च न्यायालय के प्रथम मुख्य न्यायाधीश सर एडवर्ड मेर्नड डेस चैम्पस चैरियर बने थे। प्रारंभ में यहां कुल सात जज होते थे जबकि आज यह संख्या 30 से ज्यादा हो चुकी है। पटना उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति हेमंत कुमार गुप्ता ने बताया कि 11 दिसंबर 1977 को न्यायालय का डायमंड जुबली मनाया गया था, जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी भाई देसाई शामिल हुए थे। यह उच्च न्यायालय आजादी के बाद कई ऐतिहासिक फैसलों का तो गवाह बना ही है, आजादी के पूर्व अमर क्रांतिकारियों की शहादत का भी यह उच्च न्यायालय गवाह रहा है। महान क्रांतिकारी खुदीराम बोस के फांसी दिए जाने की सजा भी पटना उच्च न्यायालय द्वारा ही दिया गया था। खुदीराम बोस को अंग्रेज जज के काफिले पर बम से हमला करने और इस घटना में दो महिलाओं की मौत के आरोप में मुजफ्फरपुर के जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने खुदीराम बोस को सजा सुनाई थी। खुदीराम बोस की ओर से एक अपील पटना उच्च न्यायालय में दायर की गई थी। जुलाई, 1908 को हस्तलिखित 105 पन्ने के आदेश में निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए बोस को फांसी की सजा पर मुहर लगा दी थी। पटना उच्च न्यायालय के इतिहास पर गौर करें तो पटना उच्च न्यायालय के तीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बी़ पी़ सिन्हा, जस्टिस ललित मोहन शर्मा और जस्टिस आऱ एम़ लोढ़ा उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायधीश बने। पटना उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता दिनू कुमार कहते हैं कि पटना उच्च न्यायालय बिहार के स्वर्णिम इतिहास को दिखाता है। यह न्यायालय यहां के उन लोगों के गौरव के समान है जो न्याय प्रणाली पर विश्वास करते हैं। वे कहते हैं कि इस न्यायालय की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहां के बहुत कम फैसलों को सर्वोच्च न्यायालय ने पलटा है। |
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