Wednesday, 30 April 2025  |   जनता जनार्दन को बुकमार्क बनाएं
आपका स्वागत [लॉग इन ] / [पंजीकरण]   
 

किशोर जैसा कोई नही दूजा

जनता जनार्दन संवाददाता , Oct 12, 2011, 13:19 pm IST
Keywords: Kishore Kumar   playback singer   Sachin Dev Burman   Kati Patang   RD Burman    किशोर कुमार   पार्श्व गायक   सचिन देव बर्मन   आराधना   आर.डी.बर्मन  
फ़ॉन्ट साइज :
 किशोर जैसा कोई नही दूजा मुम्बई:बीच राह में दिलबर बिछड़ जाए कहीं हम अगर
         और सूनी सी लगे तुम्हें जीवन की यह डगर
          हम लौट आएगें तुम यूंही बुलाते रहना
          कभी अलविदा ना कहना.....

जिंदगी के अनजाने सफर से बेहद प्यार करने वाले हिन्दी सिने जगत के महान पार्श्व गायक किशोर कुमार का नजरिया उनके गाए इन पंक्तियों में समाया हुआ है। मध्यप्रदेश के खंडवा में 4 अगस्त 1929 को मध्यवर्गीय बंगाली परिवार में अधिवक्ता कुंजी लाल गांगुली के घर जब सबसे छोटे बालक ने जन्म लिया तो कौन जानता था कि आगे चलकर यह बालक अपने देश और परिवार का नाम रौशन करेगा। भाई बहनो में सबसे छोटे नटखट आभास कुमार गांगुली उर्फ किशोर कुमार का रूझान बचपन से ही पिता के पेशे वकालत की तरफ न होकर संगीत की ओर था।

महान अभिनेता एवं गायक के.एल.सहगल के गानो से प्रभावित किशोर कुमार उनकी ही तरह के गायक बनना चाहते थे। सहगल से मिलने की चाह में किशोर कुमार 18 वर्ष की उम्र मे मुंबई पहुंचे, लेकिन उनकी इच्छा पूरी नहीं हो पाई। उस समय तक उनके बड़े भाई अशोक कुमार बतौर अभिनेता अपनी पहचान बना चुके थे। अशोक कुमार चाहते थे कि किशोर नायक के रूप मे अपनी पहचान बनाए लेकिन खुद किशोर कुमार को अदाकारी की बजाय पाश्र्व गायक बनने की चाह थी। जबकि उन्होंने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा कभी किसी से नहीं ली थी।

जबकि बॉलीवुड में अशोक कुमार की पहचान के कारण उन्हें बतौर अभिनेता काम मिल रहा था। अपनी इच्छा के विपरीत किशोर कुमार ने अभिनय करना जारी रखा। जिन फिल्मों में वह बतौर कलाकार काम किया करते थे उन्हे उस फिल्म में गाने का भी मौका मिल जाया करता था। किशोर कुमार की आवाज सहगल से काफी हद तक मेल खाती थी। बतौर गायक सबसे पहले उन्हें वर्ष 1948 में बॉम्बे टाकीज की फिल्म 'जिद्दी' में सहगल के अंदाज मे हीं अभिनेता देवानंद के लिए 'मरने की दुआएं क्यूं मांगू' गाने का मौका मिला।

किशोर कुमार ने वर्ष 1951 मे बतौर मुख्य अभिनेता फिल्म 'आन्दोलन' से अपने करियर की शुरूआत की लेकिन इस फिल्म से दर्शकों के बीच वह अपनी पहचान नहीं बना सके। वर्ष 1953 मे प्रदर्शित फिल्म 'लड़की' बतौर अभिनेता उनके करियर की पहली हिट फिल्म थी। इसके बाद बतौर अभिनेता भी किशोर कुमार ने अपनी फिल्मों के जरिए दर्शको का भरपूर मनोरंजन किया।

उनकी अभिनीत कुछ फिल्मों में 'नौकरी', 'बाप रे बाप', 'चलती का नाम गाड़ी', 'दिल्ली का ठग', 'बेवकूफ', 'कठपुतली', 'झुमरू', 'बॉम्बे का चोर मनमौजी', 'हाफ टिकट', 'बावरे नैन', 'मिस्टर एक्स इन बॉम्बे', 'दूर गगन की छांव मे', 'प्यार किए जा', 'पड़ोसन' और 'दो दूनी चार' जैसी कई सुपरहिट फिल्मे हैं जो आज भी किशोर कुमार के जीवंत अभिनय की याद दिलाती हैं।

किशोर कुमार ने 1964 मे फिल्म 'दूर गगन की छांव मे' के जरिए निर्देशन के क्षेत्र मे कदम रखने के बाद 'हम दो डाकू', 'दूर का राही', 'बढ़ती का नाम दाढ़ी', 'शाबास डैडी', 'दूर वादियो मे कहीं', 'चलती का नाम जिंदगी' और 'ममता की छांव में' जैसी कई फिल्मों का निर्देशन भी किया।
 
निर्देशन के अलावा उन्होनें कई फिल्मों मे संगीत भी दिया जिनमें 'झुमरू', 'दूर गगन की छांव में', 'दूर का राही', 'जमीन आसमान' और 'ममता की छांव में' जैसी फिल्मे शामिल है। बतौर निर्माता किशोर कुमार ने दूर गगन की छांव में और दूर का राही जैसी फिल्में भी बनाईं।

किशोर कुमार को अपने करियर में वह दौर भी देखना पड़ा जब उन्हें फिल्मों में काम ही नहीं मिलता था। तब वह स्टेज पर कार्यक्रम पेश करके अपना जीवन यापन करने को मजबूर थे। बंबई में आयोजित एक ऐसे ही एक स्टेज कार्यक्रम के दौरान संगीतकार ओ.पी.नैय्यर ने जब उनका गाना सुना तो उन्होंने वह भावविह्लल होकर कहा कि महान प्रतिभाए तो अक्सर जन्म लेती रहती हैं लेकिन किशोर कुमार जैसा पाश्र्वगायक हजार वर्ष में केवल एक ही बार जन्म लेता है। उनके इस कथन का उनके साथ बैठी पाश्र्वगायिका आशा भोंसले ने भी सर्मथन किया।
 
वर्ष 1969 मे निर्माता निर्देशक शक्ति सामंत की फिल्म 'आराधना' के जरिए किशोर कुमार गायकी के दुनिया के बेताज बादशाह बने लेकिन दिलचस्प बात यह है कि फिल्म के आरंभ के समय संगीतकार सचिन देव बर्मन चाहते थे सभी गाने किसी एक गायक से न गवाकर दो गायकों से गवाएं जाएं।
 
बाद में सचिन देव बर्मन की बीमारी के कारण फिल्म 'आराधना' में उनके पुत्र आर.डी.बर्मन ने संगीत दिया। 'मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू' और 'रूप तेरा मस्ताना' गाना किशोर कुमार ने गाया, जो बेहद पसंद किया गया। 'रूप तेरा मस्ताना' गाने के लिए किशोर कुमार को बतौर गायक पहला फिल्म फेयर पुरस्कार मिला। इसके साथ ही फिल्म 'आराधना' के जरिए वह उन ऊंचाइयों पर पहुंच गए, जिसके लिए वह सपनों के शहर मुंबई आए थे।
 
हर दिल अजीज कलाकार किशोर कुमार कई बार विवादों का भी शिकार हुए। सन 1975 में देश में लगाए गए आपातकाल के दौरान दिल्ली में एक सांस्कृतिक आयोजन में उन्हें गाने का न्यौता मिला। किशोर कुमार ने पारिश्रमिक मांगा तो आकाशवाणी और दूरदर्शन पर उनके गायन को प्रतिबंधित कर दिया गया। आपातकाल हटने के बाद पांच जनवरी 1977 को उनका पहला गाना बजा 'दुखी मन मेरा सुनो मेरा कहना', 'जहां नहीं चैना वहां नहीं रहना'।

किशोर कुमार को उनके गाए गीतों के लिए 8 बार फिल्म फेयर पुरस्कार मिला। सबसे पहले उन्हे वर्ष 1969 में 'आराधना' फिल्म के 'रूप तेरा मस्ताना' गाने के लिए सर्वश्रेष्ठ गायक का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया। इसके बाद 1975 मे फिल्म 'अमानुष' के गाने 'दिल ऐसा किसी ने मेरा तोड़ा', 1978 मे 'डॉन' के गाने 'खइके पान बनारस वाला', 1980 मे 'हजार राहें मुड़ के देखीं' फिल्म 'थोड़ी सी बेवफाई', 1982 मे फिल्म 'नमक हलाल' के 'पग घुंघरू बांध मीरा नाची थी' 1983 मे फिल्म 'अगर तुम न होते' के 'अगर तुम न होते', 1984 मे फिल्म 'शराबी' के 'मंजिलें अपनी जगह हैं' और 1985 मे फिल्म 'सागर' के 'सागर किनारे दिल ये पुकारे' गाने के लिए भी किशोर कुमार सर्वश्रेष्ठ गायक के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गए।
 
किशोर कुमार ने अपने सम्पूर्ण फिल्मी करियर मे 600 से भी अधिक हिन्दी फिल्मों के लिए अपना स्वर दिया। उन्होंने बंगला, मराठी, आसामी, गुजराती, कन्नड, भोजपुरी और उडिया फिल्मों में भी अपनी दिलकश आवाज के जरिए श्रोताओं को भाव विभोर किया।
 
किशोर कुमार ने कई अभिनेताओ को अपनी आवाज दी लेकिन कुछ मौकों पर मोहम्मद रफी ने उनके लिए गीत गाए थे। इन गीतो में 'हमें कोई गम है तुम्हें कोई गम है मोहब्बत कर जरा नहीं डर', 'चले हो कहां कर के जी बेकरार, 'भागमभाग', 'मन बाबरा निस दिन जाए', 'रागिनी', 'है दास्तां तेरी ए जिंदगी', 'शरारत' और 'आदत हैं सबको सलाम करना', 'प्यार दीवाना' 1972 शामिल है। दिलचस्प बात यह है कि मोहम्मद रफी किशोर कुमार के लिए गाए गीतों के लिए महज एक रूपया पारिश्रमिक लिया करते थे।
 
वर्ष 1987 मे किशोर कुमार ने निर्णय लिया कि वह फिल्मों से संन्यास लेने के बाद वापस अपने गांव खंडवा लौट जायेंगे। वह अक्सर कहा करते थें कि 'दूध जलेबी खाएंगे खंडवा में बस जाएंगे', लेकिन उनका यह सपना अधूरा ही रह गया। 13 अक्टूबर 1987 को किशोर कुमार को दिल का दौरा पड़ा और वह इस दुनिया से विदा हो गए।
वोट दें

क्या आप कोरोना संकट में केंद्र व राज्य सरकारों की कोशिशों से संतुष्ट हैं?

हां
नहीं
बताना मुश्किल