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वो भूली दास्ताँ... यूपी को पहला 'नमक सत्याग्रही' देने वाला गांव बकुलिहा
गौरव अवस्थी ,
Aug 13, 2025, 9:56 am IST
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![]() उत्तर प्रदेश में नमक सत्याग्रह के लिए पहला 'सत्याग्रही' देने का श्रेय लालगंज से 12 किलोमीटर दूर स्थित इसी गांव के नाम दर्ज है। दांडी में 7 अप्रैल 1930 को समुद्र के खारे जल से नमक बनाकर ब्रिटिश हुकूमत के 'नमक कर' के आदेश का उल्लंघन करने के बाद महात्मा गांधी ने सारे देश में नमक सत्याग्रह का आग्रह किया। उत्तर प्रदेश में नमक सत्याग्रह की सफलता के लिए कानपुर से प्रकाशित होने वाले प्रताप अखबार के 'प्रतापी' पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी की अध्यक्षता में समिति गठित की गई। इस समिति में पंडित जवाहरलाल नेहरू रफी अहमद किदवई और मोहनलाल सक्सेना सदस्य के रूप में शामिल किए गए। इसी समिति ने उत्तर प्रदेश में नमक सत्याग्रह के शुभारंभ के लिए रायबरेली को चुना। तब यह सवाल उठा था कि आखिर रायबरेली ही क्यों? इस सवाल का जवाब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इन शब्दों में दिया-' रायबरेली में अंगद, हनुमान, सुग्रीव जैसे कार्यकर्ता घड़ी भर की सूचना मिलते ही जान हथेली पर रखकर निकल पड़ते हैं।' इसकी दूसरी वजह रायबरेली का 1921 का किसान आंदोलन भी था। रायबरेली का 'मुंशीगंज गोलीकांड' भारतीय स्वाधीनता इतिहास में मिनी जलियांवाला बाग कांड के रूप में याद किया जाता है। सई नदी के तट पर ब्रिटिश हुकूमत और जमींदार सरदार वीरपाल सिंह के कारिंदों द्वारा बरसाई गई गोलियों से सैकड़ो किसान शहीद हुए। किसानों के खून से नदी का पानी लाल हो गया था। इस गोली कांड की सूचना पर रायबरेली आए पंडित जवाहरलाल नेहरू को नजर बंद कर दिया गया था। अपनी 'आत्मकथा' में उन्होंने इस कांड का जिक्र भी किया है। गणेश शंकर विद्यार्थी को इस कांड की विस्तार से रिपोर्ट छापने के लिए दंडित भी किया गया था। बाराबंकी में जन्मे रफी अहमद किदवई की कर्मभूमि रायबरेली ही रही। यह तीनों उत्तर प्रदेश में नमक सत्याग्रह के शुभारंभ के लिए गठित की गई समिति के सदस्य थे। रायबरेली को नमक सत्याग्रह के शुभारंभ के लिए चुने जाने की एक वजह यह भी हो सकती है। समिति ने अपने इस निर्णय की सूचना महात्मा गांधी को भी भेजी। महात्मा गांधी भी मुंशीगंज गोलीकांड भूल नहीं थे। इसलिए उन्होंने फैसले पर तुरंत मोहर लगाते हुए अपने साबरमती आश्रम में रहने वाले रायबरेली के शिवगढ़ के बाबू शीतला सहाय को एक पत्र देकर रायबरेली भी भेजा। यह पत्र था, राजा अवधेश सिंह और उनके भाई कुंवर सुरेश सिंह के नाम। पत्र में इन दोनों को रायबरेली के आंदोलन को नेतृत्व देने का निर्देश दिया गया था। जिला स्तर पर रफी अहमद किदवई मोहनलाल सक्सेना और कुंवर सुरेश सिंह की समिति ने 8 अप्रैल 1930 को डलमऊ के गंगा तट पर नमक बनाने का ऐलान किया और प्रथम सत्याग्रही के रूप में बकुलिहा गांव में जन्मे बाबू सत्यनारायण श्रीवास्तव को चुना गया। डलमऊ के मेहंदी हसन ने सत्याग्रह के लिए शेख सखावत अली का मकान निश्चित किया लेकिन प्रशासन ने 7 अप्रैल को ही मेहंदी हसन को गिरफ्तार कर लिया। रफी अहमद किदवई की तलाश में छापे मारे जाने लगे। ब्रिटिश पुलिस की सक्रियता को देखते ही बाबू सत्यनारायण श्रीवास्तव अंग्रेज हुकूमत की आंखों में धूल झोंकते हुए रफी अहमद किदवई के साथ रायबरेली आ गए। 1921 के मुंशीगंज गोलीकांड को ध्यान रखते हुए पंडित मोतीलाल नेहरू भी प्रयाग से रायबरेली पहुंच गए। ब्रिटिश पुलिस और प्रशासन की सक्रियता के चलते डलमऊ में गंगा के किनारे नमक बनाने का प्लान फेल हो गया लेकिन पंडित मोतीलाल नेहरू की उपस्थिति में 8 अप्रैल 1930 को बाबू सत्यनारायण श्रीवास्तव ने लोनी मिट्टी से नमक बनाकर नमक कानून तोड़ कर प्रथम सत्याग्रही होने का गौरव प्राप्त किया। बाबू सत्यनारायण 1921 के असहयोग आंदोलन में नौकरी छोड़कर शामिल हुए। कई वर्षों तक जिला कांग्रेस कमेटी के मंत्री रहे। नमक एवं व्यक्तिगत सत्याग्रह, लगान बंदी और भारत छोड़ो आंदोलन में करीब साढ़े 3 वर्ष से ज्यादा दिन जेल में बंद रहे। ₹200 जुर्माना भी हुआ। लगानबंदी आंदोलन के दौरान बकुलिहा को बारडोली जैसा बनाने का श्रेय भी बाबू सत्यनारायण श्रीवास्तव को ही है। रायबरेली के कांग्रेस कार्यालय तिलक भवन में 'नमक कर' के विरोध में नमक बनाकर उत्तर प्रदेश में नमक सत्याग्रह की शुरुआत 8 अप्रैल 1930 को हुई। इसके बाद रायबरेली समेत पूरे प्रांत में गांव-गांव नमक बनने का सिलसिला शुरू हो गया। नमक कर के खिलाफ सत्याग्रह प्रारंभ होने के बाद पंडित मोतीलाल नेहरू जैसे ही वापस गए रायबरेली में अंग्रेज पुलिस ने गिरफ्तारियां शुरू कर दी। बाबू सत्यनारायण श्रीवास्तव, महावीर, चतुर्थी तथा रामदुलारे को गिरफ्तार कर लिया गया। नमक कानून तोड़ने में बाबू सत्यनारायण श्रीवास्तव 6 महीने तक जेल में रहे। आजादी के आंदोलन में बकुलिया गांव स्वाधीनता संग्राम सेनानी के केंद्र में रहा। महात्मा गांधी पंडित जवाहरलाल नेहरू रफी अहमद किदवई से लेकर आजादी के राष्ट्रीय नायकों का गांव में आना-जाना रहा। गांव का कामामाई मंदिर आजादी के आंदोलन कार्यों के कार्यालय की तरह उपयोग में आता रहा। मंदिर से सटे बाग में सभाएं होती रही लेकिन सरकार और सरकारी अधिकारियों के लिए यह ऐतिहासिक गांव अब एक साधारण गांव की तरह ही है। हालांकि, ग्राम प्रधान सुरेश त्रिवेदी ने आजादी के आंदोलन की याद दिलाने और बाबू सत्यनारायण श्रीवास्तव की स्मृतियों को जीवंत रखने के लिए गांव के एक प्रवेश द्वार पर 'बाबू सत्यनारायण श्रीवास्तव द्वार' निर्मित कराया है। नमक सत्याग्रह के लिए प्रथम सत्याग्रही देने वाले बकुलिहा गांव के इतिहास से नई पीढ़ी अनजान है। अब नई पीढ़ी को आजादी के इतिहास से परिचित कराने की जरूरत है। |
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