डॉ शम्भुनाथ सिंह की 27वीं पुण्यतिथि पर गोष्ठी, सम्मान और काव्यांजलि

डॉ शम्भुनाथ सिंह की 27वीं पुण्यतिथि पर गोष्ठी, सम्मान और काव्यांजलि वाराणसीः हिंदी साहित्य में नवगीत को महत्त्वपूर्ण स्थान दिलाने में डॉक्टर शम्भुनाथ सिंह की बेहद खास भूमिका रही, इसीलिए उन्हें नवगीत का शिखर पुरूष माना जाता है. उन्होंने ही सर्वप्रथम 1954-55 में इलाहाबाद में परिमल की गोष्ठी में नवगीत शब्द का प्रयोग किया था जो आज एक विशाल वटवृक्ष का रूप ले चुका है. किन्तु दुर्भाग्य की बात है कि नवगीत के नाम पर आज कल काफी कुछ अधकचरी सामग्री परोसी जा रही है, जिसका नवगीतकारों को पुरजोर विरोध करना चाहिए. उक्त विचार प्रसिद्ध समीक्षक एवं नवगीतकार डॉ० इन्द्रीवर ने डॉ० शम्भुनाथ सिंह की 27वीं पुण्यतिथि के अवसर पर अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में व्यक्त किये. उन्होंने कहा कि यह सुखद बात है कि काशी के साहित्यकारों-गीत कवियों को उ०प्र० हिन्दी संस्थान द्वारा पुरस्कृत कर गीत कविता का मान किया गया है.

समारोह में उ०प्र० हिन्दी संस्थान द्वारा विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित लेखकों और कवियों क्रमशः प्रो० ओमप्रकाश सिंह, डा० ब्रजेन्द्र द्विवेदी 'शैलेश' एवं  अभिनव अरूण को मुख्य अतिथि ओम धीरज ने अंगवस्त्र एवं स्मृति-चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया। उन्होंने कहा कि कवियों और साहित्यकारों के सम्मान से किसी देश की दशा और दिशा तय होती है.

साहित्य, कला, संस्कृति एवं सभ्यता की उन्नति के लिए डा० शम्भुनाथ सिंह जी द्वारा किया गया प्रयास अविस्मरणीय हैं. उन्होंने कहा कि डा० शम्भुनाथ सिंह के समग्र साहित्य को 7 खण्डों में सबके सामने लाने का डॉ० इन्दीवर एवं राजीव सिंह का प्रयास अत्यन्त स्तुत्य है.

कार्यक्रम में सर्वसम्मति से उ०प्र० सरकार से यह माँग की गई कि तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ० महेन्द्रनाथ पाण्डेय द्वारा उद्घोषित “डॉ० शम्भुनाथ सिंह सृजन पीठ", जिसकी स्थापना महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ में होनी थी, को शीघ्र-अतिशीघ्र अमली जामा पहनाया जाय।

प्रारम्भ में अतिथियों का स्वागत संस्था के महासचिव श्री राजीव सिंह ने किया। वरिष्ठ कवि श्री नरोत्तम शिल्पी की अध्यक्षता एवं श्री अजीत श्रीवास्तव ‘चपाचप बनारसी‘ के संचालन में आयोजित काव्यांजलि में कवियों ने काव्यांजलि प्रस्तुत की -

डॉ विन्ध्याचल पाण्डेय “सगुन” ने पढ़ा -
ना तो इस पार सच्चे हैं, ना तो उस पार सच्चे हैं,  
रहनुमा भी नहीं सच्चे, ना ओहदेदार सच्चे हैं,
निजी हित की दुकानें हैं, माल हैं और बोली हैं,
किनारे पर लगे वो दोस्त जो किरदार सच्चे हैं।

कवि अशोक अज्ञान ने पढ़ा -

देश है महान मेरा करूँ गुणगान तेरा, नित नए नियमों के खन्जर चलाएंगे
वर्ग भेद करते हैं जुमलों से भरते हैं, धार्मिक आस्था से सबक सिंखाएंगे।

कवि डॉ० जयशंकर जय ने पढ़ा -
 
घर आँगन में चिड़िया आये आने दो, छम-छम करके गाती है तो गाने दो

डॉ० ब्रजेन्द्र द्विवेदी शैलेश ने पढ़ा -

आओ हम तुम सरिता तट पर, बैठे कुछ सुख दुख बतलाएँ

अभिनव अरूण ने पढ़ा-

ना समझो आसानी बोलता हूँ, मैं गालिब की निशानी बोलता हूँ
है हिन्दी और उर्दू से मोहब्बत, मैं जबान हिन्दुस्तानी बोलता हूँ।

काव्यांजलि कार्यक्रम में सर्वश्री हिमान्शु उपाध्याय, धूर्त बनारसी, देवेन्द्र सिंह, श्याम किशोर पाण्डेय, धर्मेन्द्र गुप्त ‘साहिल’, चन्द्रकान्त सिंह, सुखमंगल सिंह, बृजेश चन्द्र पाण्डेय, तथा अशोक कुमार सिंह भी मौजूद रहे।
अन्य साहित्य लेख
वोट दें

क्या आप कोरोना संकट में केंद्र व राज्य सरकारों की कोशिशों से संतुष्ट हैं?

हां
नहीं
बताना मुश्किल