पत्रकार राधेश्याम तिवारी का न होना, सच तो नहीं

पत्रकार राधेश्याम तिवारी का न होना, सच तो नहीं नई दिल्ली: पता नहीं था कि कभी इस रूप में लिखना होगा, राधेश्याम भाई साहब के बारे में. यहां आशय राधेश्याम तिवारी जी से है. राजस्थान के जयपुर निवासी पत्रकार, संपादक, लेखक, कलाकार, कलाप्रेमी. समीक्षक....हमारे दौर के सर्वाधिक पढ़ने-लिखने वाले पत्रकारों में से एक....

ठीक से याद नहीं कि श्री राधेश्याम तिवारी से पहली मुलाक़ात कब हुई थी. दिल्ली प्रेस में संपादकीय प्रभारी वाले दौर में संभवत: लेखन के सिलसिले में बातचीत शुरू हुई थी, और जब वहां व्यवस्थित कार्यालय खुला और प्रतीक कुमार को संपादकीय जिम्मेदारी दी गयी, संभवत: तभी हमारी मुलाक़ात हुई. यह मुलाक़ात कब संपादकीय चर्चाओं से इतर देश, समाज , साहित्य, कला, राजनीति और देश-विदेश से होते हुए अंतरंगता में बदल गयी पता ही नहीं चला. उम्र में बहुत बड़ा होने के बावजूद उन्होंने अपने संबोधन में बेहद प्यार करने के बावजूद 'आप' का दामन नहीं छोड़ा.
 
इस दौरान अपनी दर्जनभर हुई जयपुर यात्राओं के दौरान कुछेक बार उनके साथ रहने का मौक़ा भी मिला. कोई व्यक्ति जयपुर में रहकर भी इस कदर  जागरूक और अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं का प्रेमी, घटनाओं  का पारखी हो सकता है, कम से कम मेरे लिए यह अचरज की बात थी. अप्रैल 2010 में जब मैंने दिल्ली प्रेस के प्रकाशकीय संपादक के पद से इस्तीफा दिया तो मेरे तमाम मित्रों, शुभेच्छुओं के साथ वे भी स्तब्ध थे. परन्तु उनकी सद्इच्छा और साथ हमेशा बना रहा. संघर्ष के दिनों में जब भी फोन करते हमेशा साहस बंधाते. बातचीत की शुरुआत में उनका पहला वाक्य होता, 'जेपी आपकी जय हो!'

फेस एन फैक्ट्स और जनता जनार्दन के लिए उन्होंने खूब लिखा, वह भी बिना पारिश्रमिक के. मैं उन्हें दे भी क्या सकता था. यहां तक कि मुझे मदद मिल सके इसके लिए उन्होंने जयपुर में फेस एन फैक्ट्स के प्रतिनिधि के तौर पर हमारा प्रतिनिधित्व किया. बौद्धिकता और संघर्षों के बीच उनकी निर्मल हंसी उन्हें एक अलग इनसान बनाती थी.

पिछली बार अपनी बातचीत में उन्होंने उलाहना दिया था, जेपी आप भूल गए. मैंने कहा भैया आपको कैसे भूल सकता हूं....गौरी लंकेश की ह्त्या पर उनकी फेसबुक पोस्ट पर उनके विचारों और उनपर चली बहस के बीच सोचा था कि फोन कर बातचीत करूंगा, पर व्यस्तता और दुर्भाग्य से उससे पहले ही कल खबर मिली की वह नहीं रहे.उनके न रहने की सूचना इतनी घातक थी कि चाह कर भी कल कुछ लिख नहीं सका. पर कलम के मसीहा, अपने भाई को श्रद्धांजलि तो देनी ही थी.

सामाजिक और सार्वजनिक जीवन में सहजता के हिमायती श्री राधेश्याम तिवारी की लोकप्रियता का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि जब रविवार तड़के संतोकबा दुर्लभजी अस्पताल में अंतिम सांस ली, तब जयपुर, राजस्थान सहित समूचे देश का कला और मीडिया जगत उदास हो गया. भले ही पिछले कुछ समय से वह अस्पताल में भर्ती थे, पर उनके शुभेच्छु मानते थे कि पिछली बार की तरह वे फिर अस्पताल से लौटेंगे और दिल के दौरे को मात दे देंगे. दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ. राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे सिंधिया ने श्री तिवारी के निधन पर शोक जताते हुये अपने संदेश में कहा कि प्रतिबद्ध पत्रकार के रूप में उन्होंने अपने लेखन से अपनी एक खास जगह बनाई और उनके निधन से पत्रकारिता जगत में एक रिक्तता आई है.  विधानसभा के पास लालकोठी श्मशान घाट में जब उनका अंतिम संस्कार किया गया, तब जयपुर सहित प्रदेश के तमाम पत्रकारों, साहित्यकारों, रंगकर्मियों के बीच जी क्षेत्रीय चैनल के सीईओ जगदीश चंद्रा भी मौजूद थे .

मृदभाषी और हंसमुख प्रवृत्ति के धनी तिवारी का जन्म 25 जुलाई, 1944 को बिहार में हुआ था. तिवारी लंबे समय तक दिल्ली और मुम्बई में अखबार, टीवी और फिल्मों के लिए लिखते रहे. लगभग दो दशक पहले उन्होंने दूरदर्शन से स्वैच्छिक सेवा अवकाश लेकर जयपुर को अपनी कर्मस्थली बना लिया. बिहारी होने के बावजूद राजस्थान के मीडिया जगत में उन्होंने अपनी खास पहचान बनाई. सारिका, दिनमान, टाइम्स ऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स, सरिता, दैनिक भास्कर में वह खूब छपे. पिछले दो दशक में शायद ही देश का कोई ऐसा प्रमुख अखबार या मेगजीन हो जिसमें उनका लेख प्रकाशित नहीं हुआ हो. उन्होंने देश के तमाम नामचीन अखबारों और मेगजीनों में चर्चित कॉलम भी लिखे. राजस्थान पत्रिका में कला और रंगकर्म पर उनका कॉलम लगातार तेरह साल प्रकाशित हुआ. उनकी कहानियां हंस, नया ज्ञानोदय और सारिका जैसी पत्रिकाओं में भी प्रकाशित होती रहीं.

उन्होंने अपने रंगकर्म से पटना और बिहार को रंगमंच की आधुनिकता से परिचित करवाया था. उन्होंने सन् 1970 में ‘‘अरंग’’ नामक संस्था बनाई और ‘तीन अपाहिज’, ‘कूड़े का पीपा’ तथा ‘वह एक कुरूप ईश्वर’ जैसे असंगत नाटकों का भी मंचन किया. तिवारी ने कुछ फिल्मों में भी अभिनय किया था. कुछ समय पहले उन्हें दिल का दौरा पड़ा था, ठीक होने के बाद उन्होंने जवाहर कला केंद्र में जाने और वहां अपने युवा मित्रों से मिलने-जुलने का सिलसिला फिर से शुरू कर दिया था. उन्हें युवाओं से मिलना अच्छा लगता था या युवाओं को उनसे. वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. उन्हें फोटो खिंचवाना बहुत पसंद था. वे अक्सर जवाहर कला केंद्र में फोटो शूट करवाते रहते थे.

उनकी कहानियां केरल और महाराष्ट्र में स्कूल पाठ्यक्रम में भी शामिल की गयी हैं. वह फिल्म राइटर्स एसोसिएशन और राजस्थान ललित कला अकादमी के सदस्य भी रहे. गांधीवादी उपन्यास के लिये उन्हें आलोचना का शिकार भी होना पड़ा. बावजूद इसके उनके लिखे नाटक " अफीम के फूल", " आदरणीय डैडी" और " अपने बच्चे में" नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा सहित देश भर के थियेटरों में रंगमंच का हिस्सा बने.

उनकी कुछ फेसबुक पोस्ट उन्हें न जानने वालों के लिए दे रहा हूं.

Radheyshyam Tewari
September 11 at 8:06am ·

तलाश नहीं पाए जीवन की असीम संभावनाएं
बैठे रहे जाने कब कहाँ क्या मिल जाये ?
देख नहीं पाए अपने अमूल्य जीवन को कभी
झांकते रहे बाहर जाने कब क्या दिख जाय ?
था तो अपने कुएं का जल ही बहुत मीठा
स्वाद नहीं ले कर,खारा समुद्र उठा लाये

Radheyshyam Tewari
September 8, 2016 ·

जब मैं सुंदर महकते फूलों की मालाओं को नेताओं के गले में देखता हूँ तो एक ही भाव आता है इतने फूलों की हत्या कर उनकी लाशों की एक माला तैयार कर ली गयी है देवताओं के ऊपर जो फूल चढाये जाते है वे सब तो उनकी लाशें हैं. यानि हम जीवित पवित्र फूलों की माला बना ही नहीं सकते। अपने से कमजोर वस्तुओं या किसी जीव पर आदमी इसी तरह से जुल्म करता उसको जस्टिफाई करता रहा है. जो उसके पास है वही नहीं दे पाता विशुद्ध प्रेम भरा समर्पण.

Radheyshyam Tewari
September 6 at 1:21pm ·

बंगलुरु की निर्भीक महिला पत्रकार स्व. गौरी लंकेश को गोली मार कर हत्या करने की नृशंस कोशिश पत्रकारिता के इतिहास में पहली घटना नहीं है. आगे भी सच कहनेवाले/कहनेवाली पत्रकार मारे जाते रहेंगे. यही इसकी शोभा है/कुछ सालों पहले रूस में भी पुतिन के शासन काल में ऐसी निर्भीक महिला पत्रकार की हत्या लिफ्ट में करवाई गयी थी वह राष्ट्रपति पुतिन की भी आलोचना कर देती थी। और स्त्री होते हुए भी युद्ध के मैदान से लड़ते हुए सैनिको के साथ रिपोर्टिंग करती थी। सच कहोगे। किसी का थूक नहीं चाटोगे तो मारे तो जाओगे। नेताओं के बदबूदार पाद को सुगंधित नहीं कहोगे तो मारे जाओगे यदि पत्रकार हो तो...आप जिस रूप में भी होंगी आप को मेरा प्रणाम गौरी जी.
****

यह सच है कि भौतिक रूप से वह हमारे बीच नहीं हैं, पर  उनका अपनापा, उनकी बातें, उनका प्यार और स्नेह हमारी, हम जैसे न जानें कितनों की थाती हैं. फेसबुक पर  उनके बारे में मेरे जैसे अनगिन लोगों की श्रद्धांजलि स्वरुप लिखी गयी बातों को यहाँ रखने से पहले, अश्रुपूरित यही कहूंगा - भईया ! आप जैसे लोग कहीं जाते नहीं .

प्रख्यात पत्रकार श्री राधेश्याम तिवारी के निधन पर फेसबुक पर चस्पां श्रद्धांजलि के कुछ अंश :

डॉ जगमोहन माथोडिया ( किरायेदार )

"साहित्यकार और कला समीक्षक श्रीमान राधेश्याम तिवारी नहीं रहे। " श्रीमान राधेश्याम तिवारी जी नवोदित तथा वरिष्ठ कलाकारों और साहित्यकारों का संबल थे। कला के हर विषय पर चर्चा-परिचर्चा, बहस, तर्क ,वितर्क तथा बेबाक़ सवांद के धनी थे । वो आवाज़ दिनांक ०१.१०.२०१७ की सुबह ०१ बजे खामोश हो गयी।

श्रद्धेय को शत शत नमन और विनम्र श्रदाँजलि ।

Vikas Singh-  Lucknow ·
"किसी के जाने का दुःख व्यक्त नहीं करना चाहिए" ये आपके शब्द शायद मेरे समझ से परे है......आप हमेशा याद आएंगे सर..

Vishal Shiv-Nand Kasera

आलोचक होने बाद कभी जब सर तारीफ कर देते थे तो लगता था कुछ सही किया है ठीक किया है . .

Soni Jai Shree feeling sad 

Sir meri Pahli art exhibition mein aap aaye bhut khush thi mein..chahti thi Ki jab mein kabhi solo show karungi to aap meri art exhibition ka innogration karo...lekin aap achanak hi hum sabko bich me chodke chale gye...behad dukhad hai ye sabke liye... jawahar kala kendra ka ek kona suna karke chale gye.

Ankur Azad, Begusarai

दुःखद- RIP
अभी मात्र तीन-चार महीने ही हुए होंगे Radheyshyam Tewari सर और हमारी मित्रता की ।फेसबुक के माध्यम से इनके गुजर जाने की सुचना मिली, जिसपर एकाएक विश्वास नहीं हुआ। ऐसा कैसे हो सकता है? सर से एक -दो बार ही बात हुई थी ,जिसपर लघु फिल्मो के विषय में चर्चा हुई।इन्होंने मेरी लघु फिल्म' मुक्ति' की तारीफ़ भी किये । श्रद्धांजलि

Prashant Sharma

अभी थोड़ी देर पहले सूचना मिली है कि हमारे आदरणीय और कर्मठ वरिष्ठ पत्रकार श्री राधेश्याम जी तिवारी ( Radheyshyam Tewari ) का आज देहांत हो गया है। पत्रकारिता जगत के लिए ये एक बहुत बड़ी व अपूरणीय क्षति है। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति व परिवार को इस दुख की घड़ी में अपार सम्बल प्रदान करें। आम तौर पर उनका मेरे प्रति बहुत स्नेह था और वो अपनी फेसबुक प्रोफाइल पर मेरी क्लिक की हुई फ़ोटो को प्रोफ़ाइल पिक बनाया करते थे। सर, बहुत याद आएगी आपकी...

Tarachand Sharma

अब स्मृतियाँ शेष है । श्रधेय राधेश्याम जी तिवारी सर आपके सानिध्य में जवाहर कला केंद्र में बैठना एक अलग अनुभूति रहता रहा है । आज हमने एक मित्र, एक मार्गदर्शक, एक समालोचक खो दिया है । आपका सहज अंदाज अपनेआप में एक प्रेरणा रहता है । ब्लैक कॉफी, लेमन टी के घूट और इसके बहाने आपके साथ चर्चा करना, हास-परिहास साझा करना एक अविस्मरणीय अनुभव रहे है । आप हमेशा याद आओगे सर ।

Viplav Singh Lilac

RIP Radheyshyam Tewari ji, aapka jana khal rha hai.

Kamlesh Kumar

my beloved babuji senior journalist, writer, film director, actor, doordarshan producer, acclaimed critic finally in hevan.

Gopal Sharma

अब तो चलते हैं बुतकदे से ऐ मीर,
फिर मिलेंगे गर खुदा लाया।
श्री राधेश्याम तिवारी जी का जाना
तिवारी साहब , ऐसे भी जाते हैं क्या !! तबियत ठीक नहीं थी , यह आपके जाने के बाद पता चला . आप अपनी तरह के अकेले थे . अभी धोती - कुर्ते में आपकी फोटो देखी ... जैसे आपने जाने की पहले से तैयारी की हुई थी . साहित्य - पत्रकारिता की हर विधा में दखल ... और , इससे ज्यादा कहीं अच्छे इंसान , बेबाक और स्पष्ट ...आपके साथ बिताया महीनों का साथ और आपका अभिभावक स्वरुप .....बहुत याद आएंगे .... आखिरी चरण स्पर्श स्वीकार कीजिए .
श्रद्धांजलि आदरणीय तिवारी साहब .... !!!
अन्य खास लोग लेख
वोट दें

क्या आप कोरोना संकट में केंद्र व राज्य सरकारों की कोशिशों से संतुष्ट हैं?

हां
नहीं
बताना मुश्किल