राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति-2017 के लक्ष्यों को हासिल करना मुश्किल: पूर्व स्वास्थ्य सचिव के सुजाता राव
स्वागत यादवार ,
Apr 18, 2017, 9:06 am IST
Keywords: National Health Policy 2017 Indias Health System India Health Policy 2017 National Health Policy K Sujatha Rao K Sujatha Rao interview K Sujatha Rao book Do We Care? Indias Health System के. सुजाता राव 'डू वी केयर? इंडियाज हेल्थ सिस्टम स्वास्थ्य नीति राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति-2017
नई दिल्लीः पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव के. सुजाता राव ने देश की स्वास्थ्य प्रणाली पर लिखी अपनी पुस्तक 'डू वी केयर? इंडियाज हेल्थ सिस्टम' में देश की स्वास्थ्य नीतियों पर गंभीर सवाल उठाए हैं।
सुजाता राव के मुताबिक स्वास्थ्य कभी भी राष्ट्रीय प्राथमिकता का विषय नहीं रहा और यही कारण है कि भारत में प्रसव के दौरान सर्वाधिक महिलाओं की मौत होती है। इसके अलावा भारत मृत्यु दर के मामले में दुनिया में शीर्ष-5 देशों में है। दो दशक तक सार्वजनिक स्वास्थ्य का कामकाज संभालने वाली सुजाता राव स्वास्थ्य के लिए बजट बढ़ाए जाने, प्रौद्योगिकी के अधिक से अधिक इस्तेमाल और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए बेहतर नेतृत्व और प्रशासन की हिमायत करती हैं। इंडियास्पेंड को ईमेल के जरिए दिए साक्षात्कार में सुजाता राव ने कहा कि स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए जरूरत से कम बजट के प्रावधान और बेहद महत्वाकांक्षी लक्ष्यों के निर्धारण के कारण भारत राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति-2017 के लक्ष्यों को हासिल नहीं कर सकेगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा निर्धारित पांच फीसदी की बजाय सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का सिर्फ 1.16 फीसदी बजट आवंटन के मद्देनजर पूछे गए सवाल के जवाब में सुजाता ने कहा, "इसके पीछे तीन अहम कारण हैं- पहला तो राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और राजनीतिकों द्वारा स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी मूलभूत जरूरतों को विकास के लिए अहम मानना। हम अभी भी विकास के बारे में सोचते हैं तो बड़े-बड़े पुलों और तेज गति वाली ट्रेनों का खयाल आता है। दूसरी कारण है विकेंद्रीकरण की दिशा में सुधार की कमी और आवंटित राशि के बेहतर उपयोग के लिए जवाबदेही का सुनिश्चित न होना। तीसरी वजह यह है कि हम पर्याप्त धनराशि कर के रूप में उगाह नहीं पा रहे, जिससे हमें मांग और उत्तरदायित्व से जूझना पड़ रहा है।" 2017 के लिए तैयार राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में निर्धारित अधिकतर लक्ष्य 2002 वाले ही हैं, जिन्हें हमें 2010 में ही हासिल कर लेना चाहिए था। लेकिन उन्हीं लक्ष्यों को नई-नई योजनाओं के तहत दिखाकर क्या इसे हासिल किया जा सकता है? इस पर सुजाता का कहना है, "हम इन लक्ष्यों को हासिल नहीं कर सकेंगे, क्योंकि इनके लिए न तो पर्याप्त धनराशि का अवंटन किया गया है और लक्ष्य कुछ ज्यादा ही महत्वाकांक्षी बनाए गए हैं, जो हमारी प्राथमिकता की कमी को दर्शाते हैं। मुझे स्वास्थ्य नीति में रणनीतिक तौर पर ऐसा कोई बदलाव नजर नहीं आ रहा, जिससे लक्ष्यों को निर्धारित समयावधि में हासिल किया जा सके।" देश की स्वास्थ्य सेवाओं में 75 फीसदी योगदान देने वाले निजी स्वास्थ्य क्षेत्र का उपयोग कैसे किया जा सकता है, पूछे जाने पर सुजाता ने कहा, "80 के दशक में आर्थिक मंदी के उभार के कारण भारत के पास व्यावसायिक निजी क्षेत्र को प्रवेश करने की इजाजत देने के सिवा कोई चारा नहीं था। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से 1993 में कर्ज लेने के बाद संगठनात्मक समझौता करने और स्वास्थ्य बजट में कटौती करने के कारण यह प्रक्रिया और तेज हुई।" सुजाता ने सार्वजनिक स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च कम करना और सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल पर जोर देने को 'खतरनाक मिश्रण' बताया। जब उनसे पूछा गया कि क्या भारत को पीपीपी मॉडल पर आगे बढ़ने की बजाय निजी स्वास्थ्य क्षेत्र को मजबूत करने पर ध्यान देना चाहिए, तो सुजाता ने कहा, "पीपीपी उसी दशा में सफल होता है जब जोखिम दोनों पक्ष उठाते हैं। लेकिन जब मामला एकपक्षीय हो और सारा लाभ सिर्फ एक पक्ष के खाते में जाए तो यह मॉडल असफल साबित होता है।" सुजाता ने कहा, "सार्वजनिक एवं निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के बीच भारी अंतर पैदा हो चुका है। निजी क्षेत्र अब सार्वजनिक क्षेत्र पर हावी हो चुका है। ऐसे में अगर सभी पक्षों के समान स्तर के पीपीपी मॉडल को लागू करना है तो सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र को मजबूत करना होगा।" # आंकड़ा आधारित, गैरलाभकारी, लोकहित पत्रकारिता मंच इंडियास्पेंड के साथ एक व्यवस्था के तहत। यह इंडियास्पेंड का निजी विचार है. |
क्या आप कोरोना संकट में केंद्र व राज्य सरकारों की कोशिशों से संतुष्ट हैं? |
|
हां
|
|
नहीं
|
|
बताना मुश्किल
|
|
|