पुलिस हिरासत में हर साल औसतन 98 मौतें

पुलिस हिरासत में हर साल औसतन 98 मौतें राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े देश में पुलिस हिरासत में होने वाली मौतों के बारे में स्तब्ध कर देने वाली जानकारी दे रहे हैं. इन आंकड़ों के मुताबिक देश में साल 2001 से 2013 के बीच पुलिस हिरासत में 1275 लोगों की मौत हुई है. चौंकाने वाली बात यह है कि इन मौतों के आधे से भी कम मामले ही दर्ज किए गए.

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने जेल या न्यायिक हिरासत में मौतों का जो आंकड़ा दिया है, वह और भी अधिक है. साल 2001 से 2010 के बीच न्यायिक हिरासत में 12 हजार 727 लोगों की मौत हुई. लोकसभा में एक सवाल के जवाब में गृह मंत्रालय ने कहा था कि 2013 के बाद के वर्षो के आंकड़ों को एकत्रित किया जा रहा है.

इस सदी की शुरुआत के बाद से सबसे कम मौतें (70) साल 2010 में दर्ज की गई थीं, जबकि सर्वाधिक मौतें (128) साल 2005 में दर्ज की गईं. भारत में हर साल औसतन 98 लोगों की पुलिस हिरासत में मौत हुई. साल 2001-2013 के बीच महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और गुजरात में पुलिस हिरासत में सर्वाधिक मौतें हुईं, जबकि बिहार में सबसे कम.

बड़े राज्यों में हरियाणा ने इस अवधि के दौरान हिरासत में हुई मौत के हर मामले को दर्ज किया. मणिपुर, झारखंड और बिहार जैसे राज्यों ने हिरासत में हुई मौत के सौ फीसदी मामलों को दर्ज किया, लेकिन ये आंकड़े क्रमश: दो, तीन और छह हैं. तुलनात्मक रूप से महाराष्ट्र में हिरासत में मौत के केवल 11.4 फीसदी मामले दर्ज किए गए.

राष्ट्रीय स्तर पर पुलिस हिरासत में हर 100 लोगों की मौत पर केवल दो पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराया गया. हिरासत में मौतों के लिए केवल 26 पुलिस अधिकारियों को दोषी ठहराया गया. हर दर्ज 100 मामलों में से औसतन केवल 34 पुलिसकर्मियों पर आरोप पत्र दाखिल किया गया. इसमें केवल 12 फीसदी पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराया गया.
वोट दें

क्या आप कोरोना संकट में केंद्र व राज्य सरकारों की कोशिशों से संतुष्ट हैं?

हां
नहीं
बताना मुश्किल