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जम्मू एवं कश्मीर में आतंकवाद से अधिक घातक हैं सड़कें

जम्मू एवं कश्मीर में आतंकवाद से अधिक घातक हैं सड़कें श्रीनगर: जम्मू एवं कश्मीर में आतंकवाद से कहीं अधिक जानें सड़कें लेती हैं। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि तेज या फिर लापरवाही से वाहन चलाने के कारण बीते दो साल में सड़क दुर्घटना में मारे गए लोगों की संख्या आतंकवादियों द्वारा मारे गए लोगों की संख्या से पांच गुना अधिक है.

हाल ही में जम्मू एवं कश्मीर पुलिस द्वारा जारी वार्षिक अपराध रिपोर्ट के मुताबिक साल 2015 में राज्य में 6000 सड़क दुर्घटनाओं में करीब 1000 लोगों की जानें गई हैं जबकि 8400 लोग घायल हुए हैं। इसके उलट, बीते साल 291 आतंकवादी घटनाओं में 176 लोगों की जान गई है। मारे गए लोगों में 28 नागरिक, 45 सुरक्षाकर्मी तथा 103 विदेशी और स्थानीय आतंकवादी शामिल हैं।
साल 2014 में भी यही हाल रहा.

राज्य में 5900 सड़क दुर्घटनाओं में 1055 लोग मारे गए जबकि 8000 से अधिक लोग घायल हुए।दूसरी ओर, 2014 में आतंकवाद से जुड़ी घटनाओं में 187 लोगों की जान गई। इनमें 37 नागरिक, 46 सुरक्षाकर्मी तथा 104 आतंकवादी शामिल हैं। बीते साल राज्य में घटित 300 आतंकवादी घटनाओं में 75 अन्य लोग घायल भी हुए हैं। इस साल के शुरुआती दो महीने सबसे घातक रहे.

ट्रैफिक पुलिस के रिकार्ड्स के मुताबिक इस दौरान हुई 862 सड़क दुर्घटनाओं में 116 लोग मारे गए जबकि 1100 लोग घायल हुए हैं। कश्मीर में ट्रैफिक पुलिस के प्रमुख शफकत अली वताली ने कहा कि तेज और लापरवाही से वाहन चलाने के कारण अधिकांश सड़क दुर्घटनाएं होती हैं.

वताली ने यह भी कहा कि इन सब कारकों के अलावा राज्य की सड़कों की बदहाली भी दुर्घटनाओं का बड़ा कारण हैं. वताली ने कहा कि राज्य में जब तक अच्छी और चौड़ी सड़कें नहीं बन जातीं तब तक ट्रैफिक प्रबंधन प्रणाली को बेहतर नहीं बनाया जा सकता है.

जम्मू एवं कश्मीर में पिछली और मौजूदा सरकारों ने बेहतर सड़क सम्पर्क के लिए महत्वाकांक्षी परियोजना बनाई है. यहां के बुजुर्ग लोगों का कहना है कि वे बीते 50 साल से सड़कों की यही हालत देख रहे हैं जबकि इन सालों में ट्रैफिक काफी बढ़ा है.

राज्य में बीते पांच साल में 5 लाख नए वाहनों का पंजीकरण हुआ है। अब राज्य में कुल वाहनों की संख्या 12 लाख हो गई है लेकिन सड़क प्रबंधन प्रणाली की रफ्तार बढ़ते वाहनों की संख्या के साथ कदम नहीं मिला सकी.

अभी हाल तक ट्रैफिक विभाग में कार्यरत एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी शैलेंद्र मिश्रा ने कहा कि बेहतर प्रबंधन और नियमों को कड़ाई से लागू करने से सड़क दुर्घटनाओं में कमी ला सकती है.

राज्य में सड़क दुर्घटनाओं से मरने वालों की संख्या में लगातार इजाफे का कारण यह भी है कि यहां कोई ट्रामा सेंटर नहीं है, जहां आपात स्थिति में मरीजों को लाया जा सके और उनकी जान बचाई जा सके.

पुलिस सड़क दुर्घटनाओं के कई कारण गिना रही है लेकिन यहां के कार्यकर्ता मानते हैं कि जब तक राज्य में चौड़ी सड़कें नहीं बन जातीं और नियमों का कड़ाई से पालन नहीं होता, तब तक पुलिस अपनी जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ सकती। उसका काम दुर्घटनाओं को कम करना है.

वकील और सामाजिक कार्यकर्ता साजाद शेख ने संवाददाता से कहा, “पुलिस की क्या प्राथमिकता है, यह सालों से साफ नहीं रहा है. पुलिस को सिर्फ अशांति के समय ही काम नहीं करना है.”

एक अन्य कार्यकर्ता जावेद काकरू कहते हैं कि सरकारें परिवहन व्यवस्था दुरुस्त करने को लेकर मुस्तैद नहीं हैं. उदाहरण के तौर पर उनका कहना है कि श्रीनगर में सड़कें अभी से काफी पतली लगने लगी हैं.

दुकानदार पैदल पथ को अवरुद्ध किए रहते हैं, जिससे कि सड़क पर चलना मुश्किल हो गया है. जावेद कहते हैं कि पहले तो सरकार को सड़क पर दुकान लगाए व्यापारियों को हटाना चाहिए और उसके बाद सड़कों को चौड़ी करने के बारे में सोचना चाहिए.
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