पेंशन से मिलती सामाजिक-माली सुरक्षा
नई दिल्ली: कोई व्यक्ति जब रोजगार से मुक्त या कार्य करने में अक्षम हो जाता है तब वैसी स्थिति में पेंशन उसके लिए वित्तीय प्रबंध सुनिश्चित करती है। भारत में जीवन प्रत्याशा बढ़ने के कारण आज पेंशन योजनाएं अधिक लाभप्रद बन गई हैं। भारत के निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र में कई पेंशन योजनाएं प्रचलन में हैं।
प्रत्येक पेंशन योजना में यद्यपि अलग-अलग लाभों का प्रावधान देखने को मिलता है, लेकिन सभी योजनाओं का उद्देश्य सामाजिक सुरक्षा ही होता है। भारत सरकार ने अपने नागरिकों की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न पेंशन योजनाएं लागू की हैं, जिनमें स्वतंत्र सैनिक सम्मान पेंशन योजना 1980, सेवारत सरकारी कर्मचारी की मृत्यु होने पर पारिवारिक पेंशन, आतंकवादी या असामाजिक तत्वों द्वारा किए गए हमले में मृत व्यक्ति के परिवार के लिए पेंशन योजना, प्राधिकृत बैंकों के माध्यम से सरकारी कर्मियों को पेंशन, ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा संचालित राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एनएसएपी) आदि प्रमुख हैं।
पेंशन फंड विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) ने मई 2009 में 18 से 55 वर्ष आयु वर्ग के भारतीय नागरिकों के लिए राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) की शुरुआत की थी। इस योजना के अंतर्गत निवेशक द्वारा अपनी सेवावधि के दौरान पेंशन फंड में निवेश की गई राशि में से आधी राशि का एकमुश्त भुगतान और आधी राशि का वार्षिक अथवा पेंशन के रूप में भुगतान किया जाता है।
सरकार ने पेंशन कोष और नियामक विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) विधेयक, 2011 पर संसद की मंजूरी ले ली है। लम्बे समय से अधर में लटका यह विधेयक पेंशन विनियामक को अधिकार देने के साथ ही पेंशन फंडों के शेयर बाजार में निवेश का रास्ता भी खोल देगा। पीएफआरडीए विधेयक के पास हो जाने के बाद केंद्र सरकार के सभी विभागों में फंड मैनेजरों की नियुक्ति का रास्ता साफ हो गया है। ये फंड मैनेजर पीएफआरडीए के अधीन काम करेंगे और इनके पास कर्मचारियों की ग्रेच्युटी, फंड और पेंशन सम्बंधी जानकारी उपलब्ध होंगी।
सामाजिक सुरक्षा पर जोर: अगर हम भारत की कामकाजी आबादी का विश्लेषण करें तो पाएंगे कि कुल जनसंख्या के अनुपात में काम करने की उम्र बढ़ती जा रही है। इसीलिए भारत को एक मजबूत पेंशन प्रणाली की जरूरत थी। भारत को युवाओं का देश कहा जा रहा है लेकिन आने वाले 10 से 20 वर्षो के बाद बुजुर्गो की संख्या बढ़ेगी और पेंशन एवं स्वास्थ्य सेवा पर जीडीपी का ज्यादा हिस्सा खर्च होगा।
इस समय हमारे नीति-निर्माताओं के सामने बड़ी चुनौती उच्च विकास दर को बनाए रखने की है, ताकि आर्थिक सुरक्षा न बिगड़े। ऐसे हालात में जीडीपी के ज्यादा से ज्यादा हिस्से को एक बड़ी आबादी में समान और सक्षम तौर पर बांटना होगा। बजट में इस बार स्वावलम्बन योजना से बाहर जाने की उम्र घटा कर 50 वर्ष कर दी गई है जो अब तक 60 वर्ष थी। संभवत: इस योजना में मार्च 2012 तक 20 लाख लोग और जुड़ जाएंगे।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन स्कीम के तहत गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले बुजुर्गो के लिए बजट मुहैया कराया जाता है। बजट में इस योजना का लाभ 65 साल की बजाय 60 साल में देने का प्रावधान किया गया है। अस्सी साल से ज्यादा की उम्र के लोगों के लिए केंद्र का योगदान 200 रुपये से बढ़ा कर 500 रुपये कर दिया गया है। राज्य केंद्र के योगदान में पूरक योगदान करने के लिए स्वतंत्र हैं। राज्यों में पेंशन के लिए मानक उम्र अलग-अलग है, लेकिन इस बात में गलती की आशंका बनी रहती है कि योजना में किसे शामिल किया जाए और किसे नहीं।
इस गलती को सुधारा जाना जरूरी है। इसलिए इस सम्बंध में समीक्षा करने की जरूरत है। साथ इस दिशा में ट्रांजेक्शन लागत भी कम करना जरूरी हो गया है। वर्ष 2010 में पेंशन फंड रेग्यूलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी विधेयक की अवधि खत्म हो गई थी। बजट में इसे दोबारा लाने की बात कही गई। एक मजबूत पेंशन नियामक नई पेंशन स्कीम जैसी योजनाओं के प्रति विश्वसनीयता पैदा करेगा और वह आम निवेशकों को अपनी दक्षता का फायदा भी दिलाएगा।
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वर्ष 2010-11 के आर्थिक सर्वेक्षण में नीतिगत मुद्दों पर काफी कुछ कहा गया है। बिहार और मध्य प्रदेश में सेवा का अधिकार कानून लागू हो चुका है। यह सही दिशा में उठाया गया माकूल कदम है। इसमें सिविल सेवा और राजनीतिक प्राधिकरणों की जिम्मेदारी को स्पष्ट कर दिया गया है। भविष्य निधि संगठन और कर्मचारी राज्य बीमा निगम को इन प्रावधानों का लाभ उठाकर उसे अपनी कार्यप्रणाली में सुधार का मौका बनाना चाहिए।
बहरहाल, भारत के सामने इस समय बड़ी चुनौती है। देश की ज्यादातर कामकाजी आबादी के पास सामाजिक सुरक्षा की कोई स्कीम नहीं है। संगठित क्षेत्रों में कुछ जगहों पर पेंशन योजनाएं हैं, लेकिन बड़ी आबादी को पेंशन योजना के तहत लाने के लिए व्यापक अभियान चलाने की जरूरत है। अब सरकार को एक मजबूत पेंशन प्रणाली बनाने के लिए अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
इस प्रणाली में भले ही अलग-अलग हिस्से हों लेकिन वे आपस में अच्छी तरह जुड़ी रहे। इसका पेशेवाराना तरीके से प्रबंधन होना चाहिए। साथ ही सरकारी प्रक्रिया भी सुस्पष्ट होना चाहिए। बेहतर गवर्नेस, नियमन और प्रबंधन के बगैर ऐसी योजनाओं का लाभ मिलना मुश्किल है। पेंशन सुधारों की दिशा में देश को एक लंबा सफर तय करना है।
यह ठीक है कि आने वाले सालों में सरकारी खजाने पर इसका बोझ बढ़ेगा, लेकिन विकसित देशों की तुलना में यह बहुत कम होगा। भारत में औसत आयु बढ़ती जा रही है। आने वाले वर्षो में एक बड़ी आबादी को सेवानिवृत्ति के बाद भी लंबे समय तक जीवन-यापन करना होगा, इसलिए सामाजिक सुरक्षा की योजनाएं लाना सरकार की अहम प्राथमिकताओं में से एक होनी चाहिए।
विशाल आबादी वाले हमारे देश में पेंशन और बीमा का दायरा केवल चुनिंदा हिस्से तक सीमित है और अधिकांश लोग सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के दायरे से बाहर हैं। मौजूदा पेंशन प्रणाली से केवल संगठित क्षेत्रों के कर्मचारियों को फायदा मिलता है, जो देश की कार्यरत आबादी का महज 12 फीसदी है।
हमारे देश के 90 फीसदी बुजुर्ग पेंशन योजना से बाहर हैं। वहीं विकसित देशों में यह आंकड़ा पांच फीसदी से भी कम है। सरकार ज्यादा-से-ज्यादा लोगों तक पेंशन योजनाओं का लाभ पहुंचाने का अलग-अलग योजनाओं के माध्यम से प्रचार-प्रसार कर रही है, निकट भविष्य में इसके अच्छे परिणाम मिलेंगे।
कर्मचारियों और सरकार के योगदान से जमा रकम के रिटर्न से पेंशन दी जाएगी। पहले सरकार यह योगदान नहीं देती थी और इसकी एवज में पेंशन का भुगतान किया जाता था। अब एनपीएस योजना में निजी क्षेत्र के कर्मचारियों को भी शामिल कर लिया गया है। इस क्षेत्र के नियमन और समुचित विकास के लिए सरकार ने पेंशन फंड रेग्युलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी यानी पीएफआरडीए का गठन किया है।
असल में यह पेंशन योजना न होकर एक निवेश योजना है। कर्मचारियों की जमा रकम का 50 फीसदी धन इक्विटी निवेश में लगाया जाएगा। इस निवेश का रिटर्न एनपीएस को नियंत्रित करने वाले एसबीआई व यूटीआई समेत छह म्युचुअल फंडों के गैर-परिसम्पत्ति मूल्य यानी एनएवी के आधार पर मिलेगा।
पेंशन योजनाओं में भागीदारी:
भारत में अपनाए गए आर्थिक उदारीकरण के वर्तमान समय में सरकार ने भारत में पेंशन योजना लागू करने के लिए विदेशी बीमा कम्पनियों और पेंशन फंडों को भागीदारी करने की अनुमति प्रदान की है। ये विदेशी कम्पनियां अपने भारतीय प्रतिपक्षियों के सहयोग से ही बीमा एवं पेंशन फंडों का कारोबार करने में समर्थ होंगी।
निजी क्षेत्र की वित्तीय कम्पनियों ने विदेशी साझ्झेदारों के साथ लोकप्रिय पेंशन योजनाएं पेश की हैं। इन कम्पनियों में बजाज अलियांज, टाटा-एआईजी, बिड़ला सन, भारतीय एएक्सए, आईएनजीवैश्य, फ्यूचर जनरली, एजियान रेलिग एवं आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल प्रमुख हैं, जो भारत में अपनी पेंशन योजनाएं चला रही हैं। भारतीय जीवन बीमा निगम एवं भारतीय स्टेट बैंक जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के निगम तथा कोटक लाइफ एवं सहारा लाइफ जैसी निजी क्षेत्र की कम्पनियां भी भारतीय नागरिकों के लिए पेंशन योजनाएं प्रदान कर रही हैं।
भारतीय जीवन बीमा निगम भारत में जीवन निधि, जीवन अक्षय, जीवन धारा एवं जीवन सुरक्षा नामक चार पेंशन योजनाएं चला रहा है। इन योजनाओं के माध्यम से पॉलिसी धारक चुनी गई समयावधि के लिए नियमित आय की व्यवस्था कर लेता है। कामकाजी लोगों का इन पेंशन योजनाओं में निवेश करने का उद्देश्य अपना भविष्य सुरक्षित करने का है।
सार्वजनिक क्षेत्र, सरकारी क्षेत्र अथवा निजी क्षेत्र के कर्मचारी जब देखते हैं कि भविष्य में उनके पास पेंशन के अलावा आय का कोई स्रोत नहीं है तो वे अपनी वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पेंशन योजनाओं को चुनते हैं।
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पेंशन विनियामक का विचार
सरकार और निजी क्षेत्र के पेंशन फंडों के लिए अर्जित राशि का संरचनात्मक विकास अथवा इक्विटी बॉण्ड आदि में निवेश किया जाता है। इस बात को ध्यान में रखते हुए पेंशन नियामक ने राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) के अंतर्गत संरचनात्मक विकास में निवेश के किसी भी स्वरूप पर आपत्ति जताई है।
पेंशन फण्ड एवं विनियामक विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष योगेश अग्रवाल का कहना है कि संरचना कोष तैयार किया जा रहा है और इसकी रूपात्मकता का निर्धारण वित्त मंत्रालय द्वारा किया जा रहा है। जहां तक निवेश का सम्बंध है, पेंशन उत्पाद पूरी तरह बाजार जोखिम से जुड़े हुए हैं और ये सारे जोखिम पेंशन पालिसीधारक को ही वहन करने होंगे। इनका यह भी कहना है कि पेंशन फंडों के नियमन के लिए नियुक्त किए जाने वाले पेंशन फंड मैनेजर अपने विवेक के अनुसार निवेश करेंगे तथा किसी भी क्षेत्र का निर्धारण पीएफआरडीए नहीं करेगा।
पेंशन विनियम में किसी भी प्रकार की प्रतिस्पर्धा नहीं है। बीमा कम्पनियों के पेंशन उत्पादों का नियमन इरडा करेगा, जबिक पीएफआरडीए राष्ट्रीय पेंशन योजना का प्रबंधन करेगा। इसिलए इस क्षेत्र में कोई टकराव होने की संभावना ही नहीं है। वित्तीय विश्लेषक पहले से ही कहते आ रहे हैं कि राष्ट्रीय पेंशन योजना के बहुआयामी स्वरूप को देखते हुए लोगों का झुकाव बीमा कम्पनियों के पेंशन उत्पादों की बजाय राष्ट्रीय पेंशन योजना की तरफ हो जाएगा। इसके लक्षण अभी से दिखाई भी देने लगे हैं।
पेंशन फंड एवं विनियामक विकास प्राधिकरण का कहना है कि बीमा एवं म्युचुअल फंडों की तुलना में पेंशन उत्पाद अच्छा रिटर्न दे रहे हैं। अगर इसके ट्रैक रिकार्ड को देखें तो स्पष्ट होता है कि पेंशन उत्पादों ने 12 से 14 प्रतिशत तक रिटर्न दिया है। इस समय राष्ट्रीय पेंशन योजना के 20 लाख ग्राहक हैं जिनमें से छह लाख गैर-सरकारी हैं। अत: यह नहीं कहा जा सकता कि राष्ट्रीय पेंशन योजना केवल केंद्र सरकार अथवा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के कर्मियों में ही लोकप्रिय है। इस योजना में गैर-सरकारी कर्मी भी सक्रिय रूप से भागीदारी कर रहे हैं।
पेंशन योजना की लोकप्रयिता का मूल कारण:
समय बदलने के साथ-साथ सामाजिक संरचना में भी बहुत तेजी के साथ बदलाव आ रहा है। पहले एक कामकाजी व्यक्ति पूरे परिवार का पालन-पोषण कर लेता था, उसका एक कारण संयुक्त परिवार प्रथा भी रहा है, लेकिन आज आधुनिकतावादी सोच और कैरियर के प्रति युवाओं के मोह के कारण एकल परिवार प्रथा ने जन्म ले लिया।
युवा वर्ग आत्मनिर्भर होने के कुछ ही समय के बाद अपनी पत्नी और बच्चों के साथ अलग रहने लगता है अथवा किसी सुदूरवर्ती कम्पनी में नौकरी करने के लिए काम करने में अक्षम माता-पिता को छोड़ जाता है। ऐसे वृद्धों के लिए सरकार ने वृद्धावस्था पेंशन योजना जैसे कई कार्यक्रम चलाए हैं। ऐसी सामाजिक योजनाओं का असर कभी-न-कभी अर्थव्यवस्था एवं आर्थिक विकास दर पर पड़ना लाजिमी है।
इन सामाजिक उत्तरदायित्वों को पूरा करते हुए आर्थिक विकास दर पर पड़ने वाले प्रभाव से बचाने के लिए सरकार द्वारा जारी राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) काफी कारगर सिद्ध हो सकती है। इस पेंशन योजना के लिए एक इंफ्रास्ट्रक्चर फंड बनाने की योजना है, जिसके लिए राशि इंफ्रास्ट्रक्चर फंड में जमा करानी होगी। इसी फंड से पेंशन योजना क्रियान्वित की जा रही है।
# साभार: पत्र सूचना कार्यालय, भारत सरकार। लेखक केंद्र सरकार में उप प्रबंधक हैं। लेख में व्यक्त विचार उन के अपने हैं.