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आज की कविता ने व्रत रखा पहला-पहला नवरातों का
शशिपाल शर्मा 'बालमित्र' ,
Sep 22, 2017, 7:38 am IST
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![]() जैसा कि हमने पहले ही लिखा था, पंडित जी अपनी सामाजिक और सृजनात्मक सक्रियता के लिए भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्यात हैं. उनके पाठकों शुभेच्छुओं का एक बड़ा समूह है. जनता जनार्दन ने भारतीय संस्कृति के प्रति अपने खास लगाव और उसकी उन्नति, सरंक्षा की दिशा में अपने प्रयासों के क्रम में अध्यात्म के साथ ही समाज और साहित्य के चर्चित लोगों के कृतित्व को लेखन के साथ-साथ ऑडियो रूप में प्रस्तुत करने का अभिनव प्रयोग शुरू कर ही रखा है, और पंडित जी उसके एक बड़े स्तंभ हैं. इसी क्रम में पंडित शशिपाल शर्मा बालमित्र ने एक स्वरचित कविता रची और अपने एक प्रशंसक के अनुरोध पर सस्वर पाठ भी किया. तो आप भी आनंद लीजिए. प्रस्तुत है पंडित शशिपाल शर्मा बालमित्र की कविता उनकी आवाज के ऑडियो के साथः आज की कविता आज की कविता ने व्रत रक्खा पहला-पहला नवरातों का। फलाहार का स्वाद साथ में मना नहीं चस्का बातों का।। क्या-क्या खा सकती यदि पूछें खा सकती आलू की टिक्की। सिंघाड़े के आटे में भी बनी हुई कुछ कच्ची-पक्की।। साबूदाने के पापड़ हों चिप्स करारे आलू के। इमली की खट्टी चटनी हो चटकारे हों तालू के ।। केला चीकू सेब मौसमी या अनार के दाने हों। रोक नहीं है उसपर कोई चाहे जब भी खाने हों।। पति से पूछा क्या खाती है उत्तर सुन पाई हैरानी। माँसाहार उसे प्यारा है पिए बिना दो घंटे पानी।। ऐसा कैसे हो सकता है व्रत में करती माँसाहार। सच्ची बात हमें बतलाएँ सोचें समझें करें विचार।। पति ने तब यह राज़ बताया चिपका रहता कान से फ़ोन। किस-किसका सिर खाती रहती भला समझ सकता है कौन ।। बालमित्र यह सिर का भोजन शायद शाकाहारी हो। जिनके सिर में भरा है भूसा उनको बातें प्यारी हों।। भूसा खाना शाकाहारी भोजन ही कहलाता है। खाली भले खोपड़ी हो ले सिर फिर भी बच जाता है।। खाओ-खाओ कविता रानी सिर आलू टिक्की के साथ। भूसे का यदि मज़ा आ रहा मत रोको तुम अपने हाथ।। -शशिपाल शर्मा 'बालमित्र'* |