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आज की कविता पलट रही है पन्ने कुछ इतिहास के

शशिपाल शर्मा 'बालमित्र' , Sep 20, 2017, 7:10 am IST
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आज की कविता पलट रही है पन्ने कुछ इतिहास के नई दिल्लीः भारतीय संस्कृति, अध्यात्म, काल खंड और सनातन परंपरा के अग्रणी सचेता प्रख्यात संस्कृत विद्वान पंडित शशिपाल शर्मा बालमित्र द्वारा संकलित दैनिक पंचांग, आज की वाणी, इतिहास में आज का दिन और उनकी सुमधुर आवाज में आज का सुभाषित आप प्रतिदिन सुनते हैं.

जैसा कि हमने पहले ही लिखा था, पंडित जी अपनी सामाजिक और सृजनात्मक सक्रियता के लिए भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्यात हैं. उनके पाठकों शुभेच्छुओं का एक बड़ा समूह है.

जनता जनार्दन ने भारतीय संस्कृति के प्रति अपने खास लगाव और उसकी उन्नति, सरंक्षा की दिशा में अपने प्रयासों के क्रम में अध्यात्म के साथ ही समाज और साहित्य के चर्चित लोगों के कृतित्व को लेखन के साथ-साथ ऑडियो रूप में प्रस्तुत करने का अभिनव प्रयोग शुरू कर ही रखा है, और पंडित जी उसके एक बड़े स्तंभ हैं.

इसी क्रम में पंडित शशिपाल शर्मा बालमित्र ने एक स्वरचित कविता रची और अपने एक प्रशंसक के अनुरोध पर सस्वर पाठ भी किया. तो आप भी आनंद लीजिए. प्रस्तुत है पंडित शशिपाल शर्मा बालमित्र की कविता उनकी आवाज के ऑडियो के साथः

आज की कविता

आज की कविता पलट रही है
      पन्ने कुछ इतिहास के ।
कुछ रहस्य के पर्दे ऐसे
      लगें न जो विश्वास के।।

नए-नए कुछ पंथ चलाते
     भीड़ लगाते चेलों की।
स्वयं समाप्त भले हो जाते
     हो न समाप्ति मेलों की।।

पड़ा हुआ शव किसी गुरु का
    शिष्य समाधि बताते हैं ।
आग नसीब उसे न होती
    नहीं उसे दफ़नाते हैं।

ऐसा ही कुछ-कुछ रहस्य है
     मर जाना कविवर कबीर का।
जिनके शव पर परदा छाया
     शिष्यों के करतब अजीब का।।

जीते जी करते कमाल थे
     चमत्कार दिखलाते थे।
शव ने भी जादू कर डाला
     चेले चंट बताते थे  ।।

मरे गुरूजी फूल बन गए
     हड्डी चमड़ी केश नहीं।
फूल बाँट लें चेले सारे
     छोड़ गए संदेश यही ।।

मारा कहीं डुबोकर उनको
     या पर्वत से दिया धकेल।
मठ पर कब्ज़ा करने वाले
   खेल गए क्या जाने खेल ।।

मठाधीश गुरु ही पाता है
    मठ-संपत्ति आय के साधन।
मरने पर भी चलते रहते
   मठ चेलों के सुख संवर्धन ।।

आशुतोष महाराज के चेले
    उनके शव को रहे सँभाल।
दुहते हैं मठ को वैसे ही
     पाएँ ख़ज़ाना मालामाल ।।

लगता है यों ही कबीर का
     शव चेलों ने दबा लिया।
शायद हत्या ही कर डाली
     पूरे मठ को चबा लिया।।

आँखों की देखी का तुमको
   हाय कबीर रहा अभिमान।
पोथी को मिथ्या कह-कहकर
  किया शास्त्र का ही अपमान।।

बालमित्र बतलाती गीता
    छोड़ शास्त्र पथ जो चलता है।
दुर्गति को ही वह पाता है
    सुख भी उसे नहीं मिलता है।।

(यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः।
न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम्‌॥16-23)

गुरुडम की दूकान चलाकर
      दुनिया को जो बहकाते।
सत्य सनातन पथ के पंथी
       कभी न उनको अपनाते।।

 -शशिपाल शर्मा ‛बालमित्र’*