आज की कविता ने पहचाना जो जितना ही है अनजान
शशिपाल शर्मा 'बालमित्र' ,
Sep 17, 2017, 9:50 am IST
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नई दिल्लीः भारतीय संस्कृति, अध्यात्म, काल खंड और सनातन परंपरा के अग्रणी सचेता प्रख्यात संस्कृत विद्वान पंडित शशिपाल शर्मा बालमित्र द्वारा संकलित दैनिक पंचांग, आज की वाणी, इतिहास में आज का दिन और उनकी सुमधुर आवाज में आज का सुभाषित आप प्रतिदिन सुनते हैं. जैसा कि हमने पहले ही लिखा था, पंडित जी अपनी सामाजिक और सृजनात्मक सक्रियता के लिए भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्यात हैं. उनके पाठकों शुभेच्छुओं का एक बड़ा समूह है. जनता जनार्दन ने भारतीय संस्कृति के प्रति अपने खास लगाव और उसकी उन्नति, सरंक्षा की दिशा में अपने प्रयासों के क्रम में अध्यात्म के साथ ही समाज और साहित्य के चर्चित लोगों के कृतित्व को लेखन के साथ-साथ ऑडियो रूप में प्रस्तुत करने का अभिनव प्रयोग शुरू कर ही रखा है, और पंडित जी उसके एक बड़े स्तंभ हैं. इसी क्रम में पंडित शशिपाल शर्मा बालमित्र ने एक स्वरचित कविता रची और अपने एक प्रशंसक के अनुरोध पर सस्वर पाठ भी किया. तो आप भी आनंद लीजिए. प्रस्तुत है पंडित शशिपाल शर्मा बालमित्र की कविता उनकी आवाज के ऑडियो के साथः आज की कविता आज की कविता ने पहचाना जो जितना ही है अनजान । उसके सिर पर नाच रहा है उतना ही भारी अभिमान ।। ऋषि-मुनियों को पागल कहना उसको बहुत सरल लगता है। अपने भाव बताता ऊँचे ग्रंथों को गाली बकता है ।। पर इसमें आश्चर्य नहीं कुछ दे विपरीत क्रिया अज्ञान। है विद्या से विनयशीलता विद्या बिन रहता अभिमान।। मैं कहता आँखिन की देखी सत्य मेरा ही ऊँचा ज्ञान। ऋषि-मुनियों ने जो बतलाया वह सब तो कागज़ का ज्ञान।। मेरा कहा सत्य तुम मानों झूठ कबीर मर गए कहकर। उन्हें निरक्षरता थी प्यारी था अभिमान बहुत ही उसपर।। पोथी पढ़ने वाले पागल मैं ही पंडित ज्ञानी हूँ। अरे नहीं पहचाना मुझको मैं कबीर की वाणी हूँ।। रहो निरक्षर, ग्रंथ पढ़ो मत फिर मानों सबको अंधा। कुछ लोगों को थमा गए हैं संत कबीर अनोखा धंधा।। वेद-उपनिषद् पढ़-पढ़कर जो सार लिख गए संत उदार। उन सबको पढ़ना-विचारना इन्हें नहीं होता स्वीकार ।। नए-नए ये पंथ चलाते बहका कर अनपढ़ जनता को पढ़े-लिखों को मूर्ख बनाते स्वेच्छा से ही है बनता जो।। सबकी निंदा करने वाला चमगादड़ बन जाता है। तुलसी बाबा सत्य कह गए सोच समझ में आता है।। अंतकाल बिधि बुधि हर लीनी काशी छोड़ जा बसा मगहर। क्यों वह शिव-नगरी टिक पाता शास्त्रों को मिथ्या कह-कहकर।। बालमित्र जो चमत्कार के किस्सों से बहकाते हैं। उनके चक्कर में जो पड़ते वे सर्वस्व गँवाते हैं।। सीखो अक्षर-ज्ञान निरंतर नित्य करो गीता का पाठ। या मानस-रस-पान कीजिए मगर न जीना बनकर काठ।। काठ का उल्लू तुम्हें बनाने दस कबीर मिल जाएँगे। तुम्हें डुबोकर भले स्वयं भी मगहर में मर जाएँगे।। -शशिपाल शर्मा ‛बालमित्र’* |