आज की कविता घर से निकली सीधा दफ़्तर जाना था

शशिपाल शर्मा 'बालमित्र' , Aug 20, 2017, 19:32 pm IST
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आज की कविता घर से निकली सीधा दफ़्तर जाना था नई दिल्लीः भारतीय संस्कृति, अध्यात्म, काल खंड और सनातन परंपरा के अग्रणी सचेता प्रख्यात संस्कृत विद्वान पंडित शशिपाल शर्मा बालमित्र द्वारा संकलित दैनिक पंचांग, आज की वाणी, इतिहास में आज का दिन और उनकी सुमधुर आवाज में आज का सुभाषित आप प्रतिदिन सुनते हैं.

जैसा कि हमने पहले ही लिखा था, पंडित जी अपनी सामाजिक और सृजनात्मक सक्रियता के लिए भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्यात हैं. उनके पाठकों शुभेच्छुओं का एक बड़ा समूह है.

जनता जनार्दन ने भारतीय संस्कृति के प्रति अपने खास लगाव और उसकी उन्नति, सरंक्षा की दिशा में अपने प्रयासों के क्रम में अध्यात्म के साथ ही समाज और साहित्य के चर्चित लोगों के कृतित्व को लेखन के साथ-साथ ऑडियो रूप में प्रस्तुत करने का अभिनव प्रयोग शुरू कर ही रखा है, और पंडित जी उसके एक बड़े स्तंभ हैं.

इसी क्रम में पंडित शशिपाल शर्मा बालमित्र ने एक स्वरचित कविता रची और अपने एक प्रशंसक के अनुरोध पर सस्वर पाठ भी किया. तो आप भी आनंद लीजिए. प्रस्तुत है पंडित शशिपाल शर्मा बालमित्र की कविता उनकी आवाज के ऑडियो के साथः

आज की कविता

आज की कविता घर से निकली
      सीधा दफ़्तर जाना था।
मगर राह में फोन आ गया
      स्वर जाना-पहचाना था।।

बोली कविता बोलो शाहिद
    कैसे मुझको याद किया।
तुमको कभी न भूला हूँ मैं
    सच्चा जानो मुझे पिया।।

हर पल याद तुम्हारी रहती
    साँस-साँस में रहती तुम।
मिलन हमारा कब होना है
    रहता हूँ सपनों में गुम।।

कविता बोली बाहर आओ
    सपनों की दुनिया को छोड़।
असली बात कहो झट से तुम
   बड़ी बात का कहो निचोड़।।

शाहिद बोला तो सुन पगली
    आज शाम को मिलते हैं।
नौ से बारह फ़िल्म देखने
    साथ सिनेमा चलते हैं।।

कविता बोली माफ़ करो तुम
        मैं कोई निर्भया नहीं।
ऐसी मुझे न समझो शाहिद
       जिसमें कोई हया नहीं।।

नौ बजने के बाद कभी भी
    रहती कभी न घर से बाहर।
यही रीत है मेरे घर की
     जहाँ न मुझको हो कोई डर।।


शाहिद बोला दिल मत तोड़ो
    क्या मुझ पर विश्वास नहीं।
जन्म दिवस है आज ही मेरा
     तुम ही मेरे पास नहीं ।।

जन्म दिवस हो बहुत मुबारक
    मिलकर पिज़ा पास्ता खाएँ।
आठ बजे तक चले पार्टी
   फिर अपने-अपने घर जाएँ।।

रही बात विश्वास की तुमपर
   अपने पर है तुम से बड़ कर।
अपनी सीमा में रहती हूँ
   नहीं किसी से रहती डरकर।।

जो चाहें मैं तोड़ूँ सीमा
    उनसे तोड़े हैं सब नाते।
नाम निर्भया भले न मेरा
    भय पर मेरे पास न आते।।

अरे नहीं आवाज़ आ रही
    लगता टॉवर से हूँ दूर।
कहकर शाहिद शांत हो गया
   सबक ले चुका था भरपूर।।


बालमित्र सच कहती कविता
   हुई निर्भया वह हर नारी।
बातें जिसे नहीं बहकाती
   जिसको अपनी सीमा प्यारी।।

अपने पर विश्वास जिसे हो
     कौन उसे बहका सकता है।
औरों पर विश्वास तभी सच
     जीवन को महका सकता है।।

    -शशिपाल शर्मा 'बालमित्र'