आज की कविता करे विवेचन सरकारी भाषा-नीति का
शशिपाल शर्मा 'बालमित्र' ,
Aug 12, 2017, 6:58 am IST
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नई दिल्लीः भारतीय संस्कृति, अध्यात्म, काल खंड और सनातन परंपरा के अग्रणी सचेता प्रख्यात संस्कृत विद्वान पंडित शशिपाल शर्मा बालमित्र द्वारा संकलित दैनिक पंचांग, आज की वाणी, इतिहास में आज का दिन और उनकी सुमधुर आवाज में आज का सुभाषित आप प्रतिदिन सुनते हैं. जैसा कि हमने पहले ही लिखा था, पंडित जी अपनी सामाजिक और सृजनात्मक सक्रियता के लिए भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्यात हैं. उनके पाठकों शुभेच्छुओं का एक बड़ा समूह है. जनता जनार्दन ने भारतीय संस्कृति के प्रति अपने खास लगाव और उसकी उन्नति, सरंक्षा की दिशा में अपने प्रयासों के क्रम में अध्यात्म के साथ ही समाज और साहित्य के चर्चित लोगों के कृतित्व को लेखन के साथ-साथ ऑडियो रूप में प्रस्तुत करने का अभिनव प्रयोग शुरू कर ही रखा है, और पंडित जी उसके एक बड़े स्तंभ हैं. इसी क्रम में पंडित शशिपाल शर्मा बालमित्र ने एक स्वरचित कविता रची और अपने एक प्रशंसक के अनुरोध पर सस्वर पाठ भी किया. तो आप भी आनंद लीजिए. प्रस्तुत है पंडित शशिपाल शर्मा बालमित्र की कविता उनकी आवाज के ऑडियो के साथः आज की कविता आज की कविता करे विवेचन सरकारी भाषा-नीति का। संस्कृति और संस्कृत की वैरी साज़िश भरी कूटनीति का।। मैकाले के चेलों की झोली में आकर जब सरकार गिरी। शिक्षा में विकार लाने को थी उनकी नीयत बिगड़ी।। भारत की ही भाषाओँ को नीचा दिखलाने की ठानी। हिंदी-संस्कृत बन गईं दासी इंग्लिश बन बैठी महारानी।। सूत्र त्रिभाषा के त्रिशूल से शासक खूब डराते थे। इंग्लिश का वर्चस्व बढ़ाकर जनता को मूर्ख बनाते थे।। फिर विदेश में पली-बढ़ी इंदिरा गाँधी के शासन में। नया कपट का जाल बिछ गया शिक्षा के नव आयोजन में।। दस में दो को जमा कीजिए दो में जमा कीजिए तीन। शिक्षा नीति बनी मदारी लगी बजाने कपटी बीन।। हिंदी संस्कृत पढ़ लो दस तक आगे बस इंग्लिश महारानी। जमा तीन कॉलेज में जाकर भारत की भाषा बेगानी।। वही कपट का खेल चल रहा संस्कृत-संस्कृति से हम दूर। उछलें मैकाले के चेले हैं सत्ता के मद में चूर।। बालमित्र जागो नव शासन रोको-रोको अत्याचार। दस-दो-जमा तीन का चक्कर कर दो इसका बंटाधार।। ऐसी शिक्षानीति बनाओ जिससे पनपें भारत-भाषा। मोदी के शासन से ही है अंतिम भाषाओं की आशा।। -शशिपाल शर्मा 'बालमित्र' |