Jan 26, 2016, 2:07 am by :
जय प्रकाश पाण्डेय
हर साल छब्बीस जनवरी आती है, और इसके साथ ही देश को अवसर मिलता है, उन लोगों को, स्वतंत्रता सेनानियों को, कर्णधारों को याद करने का, जिनकी बदौलत न केवल हमें आजादी मिली, बल्कि जिनके चलते हमें दुनिया का
Jan 26, 2015, 2:04 am by :
जय प्रकाश पाण्डेय
हम और हमारी मीडिया चाहे जितना मुगालता पाल लें, यह तय है कि अमेरिका की दोस्ती किसी व्यक्ति विशेष से नहीं, बल्कि भारत में कार्यपालिका के उस मुखिया से है, जो उसके लिए मौकों और बाजार के नए द्वार खोल
Jun 22, 2011, 5:28 am by :
जय प्रकाश पांडेय
आजकल टेलीविजन के समाचार चैनलों पर सरकारी एड का बोलबाला है, जिसमें देश और देशवासी लहलहाते, खुशहाल और प्रसन्नचित्त दिखाई देते हैं. यहां केवल टेलीविज़न की बात इसलिए कर रहा हूं क्योंकि इनमें गीत-
Jun 01, 2011, 1:52 am by :
जय प्रकाश पांडेय
यह देश, यहां का माहौल, सब कुछ जल्दी से पा लेने और जल्दी से भूल जाने की मानसिकता, और नहीं तो जैसा है वैसा स्वीकार कर लेने की हमारी प्रवृत्ति से ही हर्षद मेहता, तेलगी, बलवा, राजा, रादिया और स्पीक एशिय
May 14, 2011, 4:43 am by :
जय प्रकाश पांडेय
'ये जो पब्लिक है, ये सब जानती है, ये जो पब्लिक है...' संभवत: 70 के दशक में लोगों की जबान पर चढ़ चुके इस गाने की आगे की लाइनें हैं- 'हीरे-मोती तुमने छिपाए, कुछ हम लोग न बोले, पर आटा-चावल भी छिपा तो भूखो
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