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इंजीनियरिंग में 1992 के टॉपर को स्वर्ण पदक मिलेगा अब

इंजीनियरिंग में 1992 के टॉपर को स्वर्ण पदक मिलेगा अब चण्डीगढ़: अपने पाठ्यक्रम में वर्ष 1992 में शीर्ष स्थान पाने वाले इंजीनियरिंग के एक स्नातक को अब जाकर स्वर्ण पदक मिलने जा रहा है, वह भी तब जब पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने पंजाब विश्वविद्यालय को ऐसा करने का आदेश दिया।

चण्डीगढ़ के पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग में स्नातक रबींदरजीत सिंह बरार ने विश्वविद्यालय द्वारा 1992 में आयोजित इंजीनियरिंग (सिविल) की स्नातक परीक्षा में शीर्ष स्थान प्राप्त किया था। उन्होंने 8,000 में से 6,497 अंक हासिल किए थे और कॉलेज प्रशासन ने उन्हें पाठ्यक्रम का टॉपर घोषित किया था।

लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन ने उन्हें यह कहते हुए स्वर्ण पदक देने से इंकार कर दिया कि विश्वविद्यालय के नियमानुसार स्वर्ण पदक केवल उसी विद्यार्थी को दिया जा सकता है, जिसने पाठ्यक्रम की सभी परीक्षाएं पहले प्रयास में ही पास की हो।

बरार के मामले में, गम्भीर बीमारी के कारण वह मई 1990 में सैद्धांतिक प्रश्न पत्र की चतुर्थ सेमेस्टर की परीक्षा में फेल हो गए थे। लेकिन उन्होंने जनवरी 1991 में इस परीक्षा को पास कर लिया था।

ब्रार ने आईएएनएस को बताया, "मैंने विश्वविद्यालय से कहा कि वह मुझे स्वर्ण पदक प्रदान करे, क्योंकि सभी टॉपर्स को स्वर्ण पदक दिया जाता है। लेकिन विश्वविद्यालय ने इंकार कर दिया। विश्वविद्यालय ने कहा कि स्वर्ण पदक केवल उन्हीं विद्यार्थियों को दिए जाते हैं, जो अपनी सभी परीक्षाएं प्रथम प्रयास में पास किए हों। विश्वविद्यालय द्वारा इंकार किए जाने पर मैंने 1993 में उच्च न्यायालय में याचिका दायर की।"

पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की खण्डपीठ ने विश्वविद्यालय को निर्देश दिया कि वह बरार को स्वर्ण पदक सहित सभी उचित सम्मान छह सप्ताहों के भीतर प्रदान करे।

बरार, फिलहाल पंजाब के मोहाली शहर में उत्पाद शुल्क एवं कराधान अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं। उन्होंने 1988 में इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम में प्रवेश लिया था और 1992 में उन्होंने पाठ्यक्रम पास कर लिया था।

बरार के वकील धीरज जैन ने कहा, "विश्वविद्यालय के नियमानुसार परीक्षा में प्रथम आने वाला विद्यार्थी स्वर्ण पदक पाने का अधिकारी होता है। लेकिन बरार को इस आधार पर स्वर्ण पदक नहीं दिया गया, क्योंकि विश्वविद्यालय नियमानुसार पदक केवल उन्हीं उम्मीदवारों को प्रदान किया जाता है, जिन्होंने प्रथम प्रयास में ही सभी परीक्षाएं पास की हो।"

जैन ने न्यायालय में तर्क दिया कि जिस आधार पर याची को विश्वविद्यालय द्वारा पदक देने से इंकार किया गया वह अनुचित है और याची स्वर्ण पदक पाने का पूर्ण अधिकारी है। जैन ने कहा कि याची इसलिए सैद्धांतिक प्रश्न पत्र की परीक्षा नहीं दे सका था, क्योंकि वह बहुत बुरी तरह बीमार था और उसे उस दौरान पूर्ण आराम की सलाह दी गई थी।

जैन ने कहा, "चूंकि बरार सैद्धांतिक प्रश्न पत्र की परीक्षा में शामिल हुए ही नहीं थे, लिहाजा इसे उनका प्रथम प्रयास नहीं माना जा सकता। इस तरह उन्होंने अपनी सभी परीक्षाएं प्रथम प्रयास में ही पास की है।"
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