लिव इन रिलेशन एक सनक, जो शहरों में दिखती है
जनता जनार्दन संवाददाता ,
Jan 18, 2012, 13:06 pm IST
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नई दिल्ली: एक छत के नीचे दो बालिग रजामंदी से रहें तो कानून उसे नाजायज कैसे ठहरा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने भी दो वयस्कों के इस रिश्ते को जायज माना। लेकिन मंगलवार को दिल्ली की एक अदालत ने कहा कि कानूनी मान्यता मिलने के बावजूद अनैतिक है। अदालत के मुताबिक लिव इन रिलेशन एक सनक है जो सिर्फ शहरी इलाकों में ही देखा जाता है। अदालत ने लिव-इन को एक अलोकप्रिय पश्चिमी सांस्कृतिक उत्पाद करार दिया।
अदालत ने कहा कि काफी समय से लिव-इन हमारे देश के लिए विदेशी चीज थी। आज ये सनक केवल शहरों में दिखाई पड़ती है। जज ने ये टिप्पणी एक केस में फैसला सुनाते हुए की जिसमें तीन साल पहले दिल्ली में मिजोरम की रहने वाली एक लड़की ने अपने लिव-इन पार्टनर की हत्या कर दी थी। साल 2008 में दिल्ली यूनिवर्सिटी के पास रह रही 28 साल की जारजोलियानी ने अपने नाईजीरियाई लिव-इन पार्टनर विक्टर ओकोन की चाकुओं से गोदकर हत्या कर दी थी। महिला के लिव पार्टनर ने बिना बताए उसके खाते से करीब 49,000 रुपए निकाल लिए थे। इस बात को लेकर दोनों में विवाद हुआ और जारजोलियानी ने अपने लिव-इन-पार्टनर पर चाकुओं से हमला कर मौत के घाट उतार दिया। इसी मामले में जज ने मिजोरम की इस महिला को अपने लिव-इन-पार्टनर की हत्या करने के जुर्म में सात साल की सजा और 7 लाख रुपए का जुर्माना लगाने का फैसला दिया। जारजोलियानी दिल्ली आने से पहले मिजोरम में एक अनाथालय में काम करती थी। वो दिल्ली आई और उसकी दोस्ती नाईजीरिया के नौजवान ओकोन से हुई। कुछ दिनों बाद जारजोलियानी दिल्ली यूनिवर्सिटी के करीब ओकोन के किराए के फ्लैट में उसके साथ रहने लगी थी। भारतीय समाज में ज्यादातर लिविंग रिलेशन उन नौजवानों में पाए गए हैं जो घर से दूर रह रहे हैं। उनके परिवार वालों को इस रिश्ते की कोई खबर नहीं होती। लिविंग रिलेशन में रह रहे लड़के-लड़कियां अपने मां-बाप या घरवालों से अपने रिश्ते को छुपाकर रखते हैं, उन्हें अंधेरे में रखते हैं। यही वजह है कि ये अनाम रिश्ता सिर्फ दो इंसानों के बीच रिश्ता बनकर रह जाता है। इसमें समाज के दूसरे लोगों की भागीदारी नहीं होती शायद इसीलिए वजह से अदालत ने कहा कि ऐसा कोई रिकॉर्ड मौजूद नहीं है जिससे पता चलता हो कि जारजोलियानी के लिव-इन रिलेशन को उसके परिवार की सहमति मिली थी या उन्हें इस रिश्ते के बारे में पता भी हो। निचली अदालत ने लिव-इन पर अपनी टिप्पणी करते हुए कहा कि न सिर्फ सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिमी संस्कृति के उत्पाद को कानूनी वैधता दी है बल्कि संसद ने भी लिव-इन-रिलेशन को घरेलू हिंसा कानून के दायरे में लाकर कुछ हद तक सुरक्षा प्रदान की है। इन टिप्पणियों के साथ अदालत ने जारजोलियानी को अपने लिव-इन-पार्टनर के कत्ल का दोषी ठहराया और उसे 7 साल कैद की सजा सुनाई। लेकिन इस मामले ने और अदालत की टिप्पणी ने लिव-इन-रिलेशन पर गंभीर सवाल जरूर खड़ा कर दिया है। अदालत की टिप्पणी ने एक बार फिर बहस छेड़ दी है कि लिव-इन-रिलेशन कितना सही है या कितना गलत। सवाल उठने लगे हैं कि समाज की नैतिकता की कसौटी पर क्या इसका आंकलन किया जाना चाहिए। लिव इन को नैतिकता और अनैतिकता के विवाद से अलग भी कर दें तो भी एक सवाल तो पैदा होता ही है कि क्या लिव-इन-रिलेशन में रह रहे लड़के या लड़की के जहन में वही विश्वास, वही भरोसा, वही प्यार और जिम्मेदारी का एहसास होता है जैसा कि एक पति-पत्नी के बीच होता है। अगर ऐसा नहीं है तो फिर सिर्फ खाते से पैसा निकाल लेने पर उस लड़की ने अपने लिव-इन पार्टनर का कत्ल क्यों किया। उसे अपने लिविंग पार्टनर पर भरोसा नहीं था। लिव-इन रिलेशन जायज है या नाजायज? 'लिव-इन रिलेशन जायज है या नाजायज' लंबे समय से इस पर बहस चल रही है। लिव-इन रिलेशन को लेकर भारत में अलग से कोई कानून नहीं। इसलिए आपसी समझ से बने बालिग स्त्री-पुरुष के बीच लिव-इन रिलेशन को नाजायज नहीं ठहराया जा सकता। ये बात कई बार देश की अदालतें साफ कर चुकी हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 4 मार्च 2002 को ऐतिहासिक फैसला देते हुए कहा कि कोई भी स्त्री और पुरुष अपनी मर्जी से बिना शादी किए एक दूसरे के साथ रह सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी 15 जनवरी 2008 को 30 साल से बिना शादी किए एक-दूसरे के साथ रह रहे युगल जोड़े के रिश्ते को पूरी तरह से कानूनी करार दिया था। समाज में तेजी से आए बदलाव के कारण लिव-इन रिलेशन अब आम हो रहा है। यंग जेनरेशन को ये इसलिए भी पसंद है क्योंकि इसमें बिना एक-दूसरे की जिम्मेदारी उठाए वो जब तक मन चाहे, तब तक साथ रह सकते हैं। लेकिन इस सोच को अब झटका लगा है। प्रोटेक्शन ऑफ वूमेन फ्रॉम डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट, 2005 के तहत लिव-इन रिलेशन को भी घरेलू रिश्तों के दायरे में रखा गया है। अब सवाल उठता है लिव-इन रिलेशन के कारण पैदा हुए बच्चे के कानूनी अधिकारों का। सुप्रीम कोर्ट साफ कर चुका है कि लिव-इन रिलेशन के दौरान पैदा होने वाला बच्चा पूरी तरह से कानूनी है। उसे हर वो अधिकार मिलेगा, जो वैवाहिक संबंधों के कारण पैदा हुए बच्चे को मिलते हैं। कोर्ट ने लिव इन रिलेशन में रहने वाली महिलाओं को भी वही अधिकार दिए हैं जो पत्नी को मिलता है। सेक्स को लेकर पुरानी मान्यताएं किस तरह से बेमानी साबित हो रही हैं, इसका एक बड़ा उदाहरण हाल ही में गे संबंधों पर आया दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला भी है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा कि अगर एक ही सेक्स के दो बालिग अपनी मर्जी से शारीरिक संबंध बनाते हैं, तो वो गैर-कानूनी नहीं। हालांकि अब भी हमारे देश में गे और लेस्बियन की शादी को कानूनी मान्यता नहीं मिली है। जबकि कुछ देशों में इस तरह की शादी पूरी तरह से कानूनी है। लिव इन रिलेशनशिप बहस का एक बड़ा मुद्दा रिश्ते की इस नई परिभाषा पर हमेशा सवाल उठते रहे हैं। उनके तर्कों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने इस रिश्ते को वैधता जरूर दी है लेकिन परंपरावादी लोग इसे नैतिकता की कसौटी पर कसकर देखते हैं। लिव इन रिलेशनशिप में दो वयस्क पति पत्नी की तरह तो रहते हैं लेकिन उनके बीच जीवनभर साथ निभाने का कोई वादा नहीं होता। परंपरावादियों के मुताबिक ऐसे में - दोनों एक-दूसरे का भावनात्मक और दैहिक शोषण कर सकते हैं। - मां-बाप और परिवार की जिम्मेदारी की कोई जगह नहीं होती। - बच्चे पैदा होने पर उसकी परवरिश से दोनों पल्ला झाड़ सकते हैं। - आने वाली संतान को किसका नाम मिलेगा ये तय नही होता। - भोगवाद के झोंके में इस रिश्ते को टूटने में ज्यादा वक्त नहीं लगता। - पति अगर तलाक देता है तो पत्नि गुजारा भत्ते की मांग कर सकती है। लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला को अब तक ऐसा कानूनन हक नहीं। हालांकि मुंबई की बोरीवली कोर्ट ने 10 मार्च को एक ऐसे ही मामले में एक कारोबारी को साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली गायक महिला को 10 हजार रुपए मासिक गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया है। लिव इन रिलेशनशिप सामाजिक मान्यता बहस का एक बड़ा मुद्दा है। हालांकि अदालत ने ये साफ कर दिया है कि शादी से पहले दो बालिगों के बीच सेक्स जीने के अधिकार में शामिल है और इसे कानूनी नजरिए से अवैध नहीं ठहराया जा सकता |
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