धोनी धुन की वजह
जनता जनार्दन संवाददाता ,
Jan 16, 2012, 15:58 pm IST
Keywords: Mahendra Singh Dhoni Team India Sehwag Lakshman Dravid Sachin BCCI Sourav Ganguly महेन्द्र सिंह धौनी टीम इंडिया सहवाग लक्षमण द्रविड़ सचिन बीसीसीआई सौरभ गांगुली
विदेशी धरती पर पिछले सात टेस्ट में लगातार हार से भारतीय क्रिकेट में भूचाल आया हुआ है । एक दो लोगों को छोड़कर तमाम पूर्व क्रिकेटर और दिग्गज भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेन्द्र सिंह धौनी को इस शर्मनाक हार का जिम्मेदार मानते हैं । धौनी के सर हार का ठीकरा फोड़ने के बाद अब उनके आलोचकों ने धौनी को हटाने का एक अभियान सा छेड़ दिया है । जिस महेन्द्र सिंह धौनी ने अब से नौ महीने पहले ही देश को क्रिकेट विश्व कप का तोहफा दिया था वही धौनी अब क्रिकेट के सबसे बड़े खलनायक करार दिए जा रहे हैं । हमें धौनी की आलोचना के पीछे के मनोविज्ञान और मानसिकता को समझने की जरूरत है । जब से भारत ने क्रिकेट खेलना शुरू किया तब से लेकर अबतक भारत में भी यह खेल अभिजात वर्ग के हाथ में ही रहा । क्रिकेट और क्रिकेट से जुड़े अहम संस्थाओं पर भी उसी इलीट वर्ग का वर्चस्व रहा । बड़े शहरों के बड़े लोगों का खेल क्रिकेट । दिल्ली और मुंबई का इस खेल पर लंब समय तक आधिपत्य रहा । लेकिन धौनी ने भारतीय क्रिकेट के उस मिथ को तोड़ा । झारखंड के एक छोटे से शहर रांची से आकर धौनी विश्व क्रिकेट के आकाश पर धूमकेतु की तरह चमके और छा गए । भारतीय क्रिकेट में धौनी युग की शुरूआत के बाद क्रिकेट दिल्ली मुंबई से निकलकर अमेठी-मेरठ हापुड-मेवात तक पहुंचा और वहां के खिलाड़ी सामने आने लगे और उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा भी मनवाया। जब धौनी भारत के लिए तमाम सफलता हासिल कर रहे थे तब भी कई पूर्व क्रिकेटर उसको धौनी की मेहनत नहीं बल्कि किस्मत से जोड़कर देख रहे थे । उनको धौनी की सफलता रास नहीं आ रही थी । दिल्ली और मुंबई महानगरों की मानसिकता में जी रहे इन क्रिकेटरों को धौनी की सफलता से रश्क होने लगा था और वो उसको पचा नहीं पा रहे थे । इसलिए जैसे ही धौनी की कप्तानी में टीम इंडिया की हार होने लगी है तो महानगरीय मानसिकता वाले पूर्व क्रिकेटरों को भारतीय कप्तान पर हमला करने का मौका मिल गया ।धौनी की कप्तानी कौशल पर भी सवाल खड़े होने लगे और कुछ लोग तो उनको हटाने की मांग भी करने लगे हैं । लेकिन धौनी को हटाने की मांग करनेवाले या टीम इंडिया की हार के लिए अकेले धौनी को जिम्मेदार ठहरानेवाले इन विशेषज्ञों की टीम के दिग्गज और बुढा़ते बल्लेबाजों पर चुप्पी आश्चर्यजनक है। आज भारतीय टीम में जितने खिलाड़ी खेल रहे हैं अगर उनके शतकों को जोड़ दिया जाए तो वह पर्थ टेस्ट की पहली पारी में टीम इंडिया के स्कोर के करीब करीब बराबर होगी । लेकिन इतने दिग्गज बल्लेबाजों के रहते भी टीम इंडिया लगातार हार रही है तो सिर्फ कप्तान पर सवाल खड़े करने की वजह से क्रिकेट से अलहदा नजर आती है । टीम इंडिया के चार बड़े और दिग्गज बल्लेबाज- सचिन तेंदुलकर, विरेन्द्र सहवाग, राहुल द्रविड़ और वी वी एस लक्ष्मण का बल्ला विदेशी पिचों पर चल ही नहीं पा रहा है । क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर पिछले कई मैचों से एक शतक नहीं लगा पाने की वजह से भारी दबाव में हैं और अपने प्राकृतिक खेल से दूर होते जा रहे हैं । सचिन पर अपने सौंवे शतक का दबाव इतना ज्यादा है कि उसका खामियाजा टीम को उठाना पड़ रहा है । सवाल यह उठता है कि सचिन तेंदुलकर को और कितना मौका दिया जाएगा । क्या अब वक्त नहीं आ गया है कि सचिन को खुद से संन्यास लेकर नए लोगों को खेलने का मौका देना चाहिए । अगर सौंवा शतक नहीं बन पा रहा है तो कब तक भारत उसका इंतजार करते रहेगा । धौनी पर आलोचना का तीर चलानेवाले विशेषज्ञों को यह कहने का साहस क्यों नहीं है कि सचिन को संन्यास ले लेना चाहिए । सहवाग के अलावा एक जमाने में टीम इंडिया की दीवार कहे जानेवाले राहुल द्रविड़ के खेल को देखें तो वहां तो हालात और भी खराब है । मेलवर्न से लेकर पर्थ तक की पांच पारियों में द्रविड़ ने 24 रनों की औसत से 121 रन बनाए हैं और चार बार बोल्ड आउट हुए हैं । टीम इंडिया की दीवार अब ढहती नजर आने लगी है । तकनीक के मास्टर माने जानेवाले द्रविड़ जब पांच में चार पारियों में बोल्ड आउट होते हैं तो चयनकर्ताओं के लिए सोचने का वक्त आ गया है । उसी तरह अगर लक्ष्मण की बल्लेबाजी का आकलन करें तो वहां भी निराशा ही हाथ लगती है । ऐसे में सिर्फ धौनी को जिम्मेदार मानना उस शख्स के साथ अन्याय है जिसने देश को वनडे और टी-20 विश्वकप का तोहफा दिया । धौनी की कप्तानी पर सवाल खड़े करनेवालों को विश्व कप का फाइनल याद करना चाहिए जहां सहवाग के शून्य और सचिन के अठारह रन पर आउट होने के बाद धौनी ने जबरदस्त फॉर्म में चल रहे युवराज सिंह की बजाए खुद को बल्लेबाजी क्रम में उपर किया और फाइनल में नाबाद 97 रन बनाकर भारत को शानदार जीत दिलाई । हाई वोल्टेज मैच में शानदार छक्का लगाकर मैच जिताने का जिगरा बहुत ही कम बल्लेबाजों को होता है । उसी तरह टी-20 विश्व कप के फाइनल में जोगिंदर शर्मा को आखिरी ओवर देकर धौनी ने जीत हासिल की थी । तब सभी लोग धौनी की कप्तानी और उनकी रणनीति के गुणगान करने में जुटे थे । सौरभ गांगुली और सचिन ने भी अगल अलग वक्त पर धौनी को महानतमन कप्तान कहा है । टीम इंडिया के कोच गैरी कर्स्टन ने भी रिटायरमेंट के बाद कहा था कि अगर उन्हें युद्ध के मैदान में जाना होगा तो धौनी को अपना सेनापति रखना पसंद करेंगे । दरअसल क्रिकेट एक टीम गेम है और वो महान अनिश्चतिताओं का भी खेल है । इसमें किसी एक वयक्ति के प्रदर्शन पर हार या जीत का फैसला कम ही होता है । चयनकर्ताओं ने टीम इंडिया के बुढ़ाते खिलाड़ियों के विकल्प के लिए कोई नीति नहीं बनाई, युवा खिलाड़ियों को तैयार नहीं किया । आज सचिन, सहवाग,द्रविड़ और लक्ष्मण का विकल्प दूर दूर तक दिखाई नहीं देता । चयनकर्ताओं में दूरदर्शिता का अभाव साफ तौर पर दिखता है जिसका खामियाजा टीम इंडिया को उठाना पड़ रहा है । उसके अलावा अगर हम टीम इंडिया के कोच की बात करें तो एक कोच के तौर पर डंकन फ्लेचर बुरी तरह से फ्लॉप साबित हुए हैं । गुरु गैरी की विदाई के बाद डंकन फ्लैचर पर यह जिम्मेदारी थी कि वो टीम इंडिया की सफलताओं के सिलसिला को बरकरार रखें लेकिन चार सीरिज बीत जाने के बाद भी ऐसा हो न सका । डंकन फ्लैचर को हर महीने तकरीबन 23-24 लाख पगार के तौर पर मिलते हैं । वक्त आ गया है कि बीसीसीआई इस बाबत भी सोचे । अंत में सिर्फ इतना कहा जा सकता है कि धौनी को कप्तानी छोड़ने की सलाह देनेवालों को अपनी इलीट मानसिकता से बाहर निकलकर वस्तुनिष्ठता के साथ उनके नेतृत्व पर विचार करना होगा । अगर वह अपनी अभिजात मानसिकता से बाहर निकलकर विश्लेषण करेंगे तो हार के जिम्मेदार सचिन, सहवाग, द्रविड़ और लक्षम्ण होंगे न कि धौनी ।
अनंत विजय
लेखक अनंत विजय वरिष्ठ समालोचक, स्तंभकार व पत्रकार हैं, और देश भर की तमाम पत्र-पत्रिकाओं में अनवरत छपते रहते हैं। फिलहाल समाचार चैनल आई बी एन 7 से जुड़े हैं।
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