बरेली की सरजमीं पर लिखी गई बच्चन की प्रेमकहानी

जनता जनार्दन संवाददाता , Dec 26, 2011, 12:35 pm IST
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बरेली की सरजमीं पर लिखी गई बच्चन की प्रेमकहानी बरेली: 70 साल पहले बड़े दिनों की छुट्टियों में घटित हुई यह प्रेम कहानी सहस्त्राब्दी के महानायक अमिताभ बच्चन की किसी भी हिट फिल्म की पटकथा से ज्यादा रोमांटिक और रोमांचक है।

सन 1941 में क्रिसमस की छुट्टियों में तेजी सूरी अगर बरेली न आती तो शायद उनकी हरिवंश राय बच्चन से भेंट न होती और न ही पिता और पहली पत्नी की मृत्यु से दुख के सागर में डूबे महाकवि के 'नीड का निर्माण फिर' संभव हो पाता। अमिताभ बच्चन भी तब न होते।

बच्चन जी ने 'नीड का निर्माण फिर' नाम से अपनी आत्मकथा में ऐसी ही कठोर सर्दियों में एकाएक घटित हुए तेजी सूरी से अपने पहले नजर में प्यार को सार्वजनिक किया है। बिल्कुल ग्रीक महिला का सा मुख बच्चन जी ने तेजी को देखा तो यही सोचा था।

पिता और पत्नी की मृत्यु औ एक असफल प्रेम के बाद इलाहाबाद में बच्चन जी के लिए यह भूलने की कोशिशों का दौर था जिसे उन्होंने 'क्या भूलूं और क्या याद करूं' का नाम दिया है उधर लाहौर में तेजी सूरी भी इसी तरह के हालात से गुजर रही थी।

बाद में अमिताभ की मां बनीं तेजी की सगाई आक्सफोर्ड में पढ़े एक युवक से हो चुकी थी मगर विरोधी विचार उन्हें करीब नहीं आने दे रहे थे। मंगेतर का परिवार उनका पुराना परिचित था और उस घर में वह बहुत पसंद की जाती थीं मगर उनका अपना दिल उधर नहीं था।

तेजी कोई आम भारतीय लड़की होतीं तो शायद चुपचाप विवाह कर लेतीं मगर मनोविज्ञान की टीचर होने के नाते वह ऐसे बेमेल विचारों की सगाई को शादी में बदलने पर सवाल उठाने लगी थीं। यह बात उनकी प्रिंसपल प्रेमा जौहरी, जो बरेली की रहने वाली थीं भी बाखूबी जानने लगीं थी। सर्दी की छुट्टियों में प्रेमा जी जब बरेली लौटीं तो अपने साथ वह तेजी को भी यहां ले आईं।

प्रेमा जौहरी के पति प्रोफेसर प्रेम प्रकाश जौहरी तब बरेली कॉलेज में अंग्रेजी पढाते थे और बच्चन जी के अंतरंग मित्र थे। दोनों टूटे दिलों को जोड़कर एक करने का ख्याल अपने इन्हीं प्रोफेसर साहब की सूझ था। उन दिनों बच्चन जी किसी कवि सम्मेलन के सिलसिले में पंजाब के अबोहर शहर गए हुए थे। प्रोफेसर साहब ने उन्हें तार भेज दिया- इलाहाबाद लौटते समय यहां रुकें।

31 दिसम्बर की सुबह बच्चन बरेली पहुंचे। प्रोफेसर ज्योति प्रकाश सिविल लाइन्स में कंपनी बाग के सामने बिजली कंपनी के पास एक कोठी में रहते थे। बहुत कम लोग जानते होंगे कि बच्चन जी की भी बरेली कॉलेज के अंग्रेजी विभाग में नौकरी लगी थी लेकिन उन्होंने ज्वाइन नहीं किया था।

प्रोफेसर साहब की इस कोठी में 31 दिसम्बर की सुबह चाय पर बच्चन जी का घर की दूसरी मेहमान तेजी से पहला परिचय हुआ। बच्चन ने लिखा है- उनका रूप प्रथम दृष्टि में किसी को भी अभिभूत करने को पर्याप्त था। अगर उन्होंने ही अपनी करण दृष्टि से मुझे एकटक नहीं देखा होता तो उन्हें देखते ही मेरी आंखें नीची हो जातीं।

शाम को प्रकाश दंपति बच्चन और तेजी को फिटन यानि बग्घी से घुमाने गए। यहीं बच्चन को पहला प्रेम स्पर्श मिला, जब तेजी ने उनके कंधे पर हाथ रखा था। अचानक तेजी ने कहा कि मन करता है साईस की बगल वाली सीट पर बैठूं। बच्चन बोले, तब मुझे साईस की सीट पर बैठना होगा।

फिर उसी रात इलाके के नामी वकील और कवि रामजी शरण सक्सेना के घर संगीत कार्यक्रम में दोनों आसपास बैठे। रात में प्रकाश जी के घर लौटे तो उन्होंने बच्चन जी से नववर्ष के स्वागत में कविताएं सुनाने को कहा।

उस कविता के अंतिम बोल थे 'उस नयन में बह सकी कब इस नयन की अश्रुधारा।' इतने में तेजी की आंखे बहने लगी। बच्चन भी रोने लगे।

यह देखकर प्रकाश, प्रेमा कमरे से निकल गए और बच्चन के शब्दों में 'हम दोनों एक दूसरे के गले लिपटकर रोने लगे।' चौबीस घंटे भी नहीं गुजरे थे कि दो अजनबी जीवनसाथी हो चुके थे। सुबह हुई तो साल बदल चुका था। प्रोफेसर प्रकाश ने गुलाब के फूलों की दो मालाएं बनवाकर अपने पुत्र से उनके गलों में डलवाकर तेजी और बच्चन की सगाई की घोषणा की और यह खबर समाचार पत्रों में भी भेज दी।

चार जनवरी तक बच्चन और तेजी बरेली में ही रहे। तेजी लाहौर लौटीं पिता का आर्शीवाद लेने, बच्चन इलाहाबाद गए शादी की तैयारी करने। कुल तीन हफ्ते बाद 24 जनवरी को उनका विवाह भी हो गया। गौर कीजिए, बच्चन ने लिखा है कि 'उन्होंने यह तिथि किसी पंडित से तय नहीं करवाई बल्कि अपनी सुविधा देखकर तय की थी।'

उन्होंने लिखा है कि क्या हम दोनों दैवी विधान से ऐसे में एक दूसरे के निकट आ गये थे जब मेरे खालीपन ने उन्हें और उनके खालीपन ने मुझे अपनी ओर खींच लिया। मैं अब सोचता हूं कि मेरा बरेली पहुंचना इतना अकस्मात नहीं था। प्रकाश बहुत दिन से मेरे लिए चिंतित थे और चाहते थे कि मुझे कोई उपयुक्त जीवनसाथी मिले और मेरा जीवन सुखमय हो।

जब उन्होंने तेजी को बरेली में देखा तो फौरन उनका ख्याल मेरी ओर गया। उन्होंने सोचा किसी प्रकार दोनों को मिला दें और आगे की बात उनकी पारस्परिक मनोप्रतिक्रिया पर छोड़ दें। इसी उद्देश्य से उन्होंने मुझे अबोहर से सीधे बरेली आने का तार दिया।
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