लोगों के गुस्से से ड़रो, ये गुस्सा भड़क गया तो क्या होगा
जनता जनार्दन संवाददाता ,
Dec 24, 2011, 16:16 pm IST
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हिसार में चोट खाई कांग्रेस बदले के मूड में है। वो अन्ना की टीम को हर हाल में हरा देना चाहती है। आंदोलन की धार को कुंद करने का बीड़ा उसने उठा लिया है। इसलिए कभी किरण बेदी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए जा रहे हैं तो कभी अरविंद को उनकी पत्नी के जरिये नीचा दिखाने की कोशिश हो रही है और टीम अन्ना कह रही है कि अगर हम दोषी हैं तो हमें फांसी दे दो लेकिन जन लोकपाल ले आओ। सरकार जनलोकपाल ले आएगी इसमें अभी संशय दिखता है। कभी-कभी लगता है कि अगर मौजूदा सरकार को जेपी का आंदोलन झेलना होता तो वो क्या करती? जो सरकार सिर्फ जन लोकपाल की मांग से घबरा रही है वो क्या करती अगर जेपी की तरह अन्ना ने कह दिया होता कि मनमोहन सिंह को हर हाल में इस्तीफा देना होगा, संसद भंग करनी होगी और नए सिरे से चुनाव करवाने होंगे और रोज स्कूल कॉलेज बंद होते , पुलिस लाठीचार्ज करती, लोग गोलियों का शिकार होते। जेपी तबतक गांधी के रास्ते पर थे। सक्रिय राजनीति से दूर, दलविहीन राजनीति की वकालत कर रहे थे और संसदीय व्यवस्था में उनकी आस्था ज्यादा नहीं थी। लेकिन अहमदाबाद पहुंचते ही 1942 की क्रांति के इस हीरो को जोश हो आया। जेपी ने हिंसा की न तो बुराई की और न ही उसकी आलोचना। उलटे कह बैठे "बरसों से मुझे रास्ता नहीं सूझ रहा था, गुजरात के छात्रों ने उन्हें राह दिखाई है। राजनीतिक बदलाव की राह दिखी है मुझे"। यानी जेपी को छात्रों के हिंसक आंदोलन में बदलाव के लक्षण दिख रहे थे। सोचो अगर अन्ना ने ऐसे किसी हिंसक आंदोलन का पक्ष लिया होता तो कपिल सिब्बल, पी चिदंबरम और अरूंधति राय क्या कहते? विनोबा भावे जेपी से इसी मसले पर नाराज थे और जेपी से उन्होंने पूछा भी था, "क्या उन्हें पता है कि छात्र आंदोलन कैसे शुरू हुआ था, लूट और आगजनी इसका आरंभ बिंदु था। वो कैसे इस पर लगाम लगाएंगे"। जेपी आंदोलन के हिंसक स्वरूप से दुखी होकर ही विनोबा ने आपातकाल के शुरुआती दिनों को "अनुशासन पर्व" कहा था। प्रसिद्ध इतिहासकार बिपिन चंद्रा लिखते हैं कि "ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं जब जेपी ने गैर जिम्मेदाराना भड़काऊ बय़ान दिए"। जेपी कहते थे कि अगर कोई विपक्षी पार्टी सरकार बदलने का माद्दा रखती है और इसके लिए हिंसा का सहारा लेती है तो वो उसे समर्थन देंगे। अन्ना का आंदोलन तो सिर्फ कानून बनाने तक है और कानून न बनाने की स्थिति में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को हराने के लिए प्रचार करने की चेतावनी तक सीमित है। लेकिन जेपी ने छात्र आंदोलन की लीडरशिप हाथ में लेते ही इंदिरा गांधी हटाओ का नारा बुलंद किया था और बाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद पुलिस, प्रशासन और सेना से अपील की थी कि वो गैरकानूनी सरकार के आदेशों को न मानें। सोचो अगर आज अन्ना ये कह दें कि मनमोहन सिंह सरकार अगर जनलोकपाल कानून नहीं बनाती है तो लोग उसका आदेश मानने से इंकार कर दें तो क्या होगा? जो सरकार अभी से शीर्षासन कर रही है और जो तथाकथित सरकारी बुद्धिजीवी अभी इस आंदोलन को लोकतंत्र के लिए खतरा बता रहे हैं वो तब किस जुमले का इस्तेमाल करते? हैरानी तो तब होती है जब यही बुद्धिजीवी जेपी आंदोलन की तारीफ करते हैं और अन्ना को कोसते हैं। जबकि अन्ना के आंदोलन में शुरू से अंत तक एक पत्थर नहीं चला, किसी बस का कांच नहीं टूटा , कहीं कर्फ्यू नहीं लगा, पुलिस को कहीं भी आंसू गैस का इस्तेमाल नहीं करना पड़ा, कोई हताहत नहीं हुआ सिर्फ एक दिन देर रात कुछ हुड़दंगियों ने शराब पीकर पुलिस पर हमला किया था और उन्हें घायल किया था। उसके लिए भी अन्ना ने बाकायदा मंच से माफी मांगी थी, जेपी ने पूरे आंदोलन में कभी भी हिंसा के लिए खेद नहीं जताया। जेपी उन्हीं गांधी जी को आदर्श मानने थे जिन्होंने चौरीचौरा कांड के बाद आंदोलन वापस ले लिया था क्योंकि वहां हिंसा हुई थी। |
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