Saturday, 20 April 2024  |   जनता जनार्दन को बुकमार्क बनाएं
आपका स्वागत [लॉग इन ] / [पंजीकरण]   
 

सलाखें नहीं, सेवा की कैद में सेन

जनता जनार्दन संवाददाता , Apr 15, 2011, 16:06 pm IST
Keywords: Profile   जीवनी   जीवन-गाथा   Legal Battle   क़ानूनी लड़ाई   Binayak Sen   बिनायक सेन  
फ़ॉन्ट साइज :
सलाखें नहीं, सेवा की कैद में सेन

सुप्रीम कोर्ट से जमानत पाने वाले बिनायक सेन पेशे से सम्मानित डॉक्टर, समाजसेवी और जानेमाने कार्यकर्ता रहे हैं. उनकी जिंदगी ग़रीबों पर होने वाले ज़ुल्म की खिलाफत करने में बीती और नतीजा जेल की सलाखों के पीछे बीता. पर सेन की जगह जेल या उनकी सलाखें नहीं हैं, सेवा उनके मिज़ाज का हिस्सा है और इंसाफ़ उनके लिए जीवन की सांसों जितना जरूरी. इसीलिए उन्होंने खुद की नहीं, औरों की ,ग़रीब तबकों की लड़ाई लड़ी, हालांकि उन औरों को वो बेहद अपना मानते हैं. यहां हम सेन के जीवन से जुड़े कुछ तथ्यों व घटनाक्रमों के बारे में बता रहे.

खादी का बिना प्रेस किया हुआ कुर्ता-पाजामा और पैरों में साधारण स्पोर्ट्स शू पहने 58 वर्षीय डॉक्टर बिनायक सेन को देखकर अक्सर उनके समूचे व्यक्तित्व का पता नहीं चल पाता.

जेल में दो बरस रहने से पहले तक समय पहले तक उनकी लंबी दाढ़ी हुआ करती थी और अभी भी है. लोग उन्हें सीधे-सादे सामाजिक कार्यकर्ता के रुप में जानते थे तो कुछ एक बौद्धिक चिंतक के रुप में. लेकिन अब पुलिस उन्हें नक्सलियों का सहयोगी बताती है और छत्तासगढ़ की एक अदालत ने भी उन्हें देशद्रोह का दोषी ठहराया है. उन्हें अदालत ने नक्सलियों के साथ साँठगाँठ और उनका सहयोग करने का दोषी पाया है.

बिनायक सेन हमेशा इन आरोपों का खंडन करते रहे हैं. वे कहते रहे हैं कि वे नक्सलियों का समर्थन नहीं करते लेकिन राज्य की ग़लत नीतियों का जमकर विरोध करते हैं. छत्तीसगढ़ की शहरी आबादी भले ज़्यादा न जानती रही हो लेकिन वहाँ के दूरस्थ इलाक़ों के गाँव वाले और आदिवासी उन्हें अपने हितचिंतक के रुप में जानते रहे हैं. पेशे से चिकित्सक डॉ बिनायक सेन छात्र जीवन से ही राजनीति में रुचि लेते रहे हैं.

उन्होंने छत्तीसगढ़ में समाजसेवा की शुरुआत सुपरिचित श्रमिक नेता शंकर गुहा नियोगी के साथ की और श्रमिकों के लिए बनाए गए शहीद अस्पताल में अपनी सेवाएँ देने लगे. इसके बाद वे छत्तीसगढ़ के विभिन्न ज़िलों में लोगों के लिए सस्ती चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध करवाने के उपाय तलाश करने के लिए काम करते रहे.

डॉ बिनायक सेन सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता तैयार करने के लिए बनी छत्तीसगढ़ सरकार की एक सलाहकार समिति के सदस्य रहे और उनसे जुड़े लोगों का कहना है कि डॉ सेन के सुझावों के आधार पर सरकार ने ‘मितानिन’ नाम से एक कार्यक्रम शुरु किया. इस कार्यक्रम के तहत छत्तीसगढ़ में महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता तैयार की जा रहीं हैं.

स्वास्थ्य के क्षेत्र में उनके योगदान को उनके कॉलेज क्रिस्चन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर ने भी सराहा और पॉल हैरिसन अवॉर्ड दिया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य और मानवाधिकार के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए जोनाथन मैन सम्मान दिया गया. डॉ बिनायक सेन मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल की छत्तीसगढ़ शाखा के उपाध्यक्ष भी रहे हैं. इस संस्था के साथ काम करते हुए उन्होंने छत्तीसगढ़ में भूख से मौत और कुपोषण जैसे मुद्दों को उठाया और कई ग़ैर सरकारी जाँच दलों के सदस्य रहे. उन्होंने अक्सर सरकार के लिए असुविधाजनक सवाल खड़े किए और नक्सली आंदोलन के ख़िलाफ़ चल रहे सलमा जुड़ुम की विसंगतियों पर भी गंभीर सवाल उठाए. सलवा जुड़ुम के चलते आदिवासियों को हो रही कथित परेशानियों को स्थानीय और राष्ट्रीय मीडिया तक पहुँचाने में भी उनकी अहम भूमिका रही.

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाक़े बस्तर में नक्सलवाद के ख़िलाफ़ चल रहे सलवा जुड़ुम को सरकार स्वस्फ़ूर्त जनांदोलन कहती रही है जबकि इसके विरोधी इसे सरकारी सहायता से चल रहा कार्यक्रम कहते हैं. सलवा जुड़ुम के ख़िलाफ़ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने आवाज़ें उठाईं और सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर सवाल खड़े किए. आख़िर 2010 में राज्य सरकार ने इसे बंद कर दिया है.

छत्तीसगढ़ की भारतीय जनता पार्टी सरकार ने 2005 में जब छत्तीसगढ़ विशेष जनसुरक्षा अधिनियम लागू करने का फ़ैसला किया तो उसका मुखर विरोध करने वालों में डॉ बिनायक सेन भी थे. उन्होंने आशंका जताई थी कि इस क़ानून की आड़ में सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. उनकी आशंका सही साबित हुई और इसी क़ानून के तहत उन्हें 14 मई 2007 को गिरफ़्तार कर लिया गया.

छत्तीसगढ़ पुलिस के मुताबिक़ बिनायक सेन पर नक्सलियों के साथ साठ-गांठ करने और उनके सहायक के रूप में काम करने का आरोप है. हालांकि वे ख़ुद इसे निराधार बताते हैं और पीयूसीएल इसे सरकार की दुर्भावना के रुप में देखती है.

डॉ बिनायक सेन को मई, 2009 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश से ज़मानत मिली. दो वर्ष जब वे जेल में रहे तो उनकी रिहाई के लिए देश के बुद्धिजीवी और सामाजिक कार्यकर्ता अपील करते रहे. दुनिया भर के 22 नोबेल पुरस्कार विजेताओं ने भी डॉ बिनायक सेन की रिहाई की अपील की थी. नोबेल पुरस्कार विजेता चाहते थे कि उन्हें जोनाथन मैन सम्मान लेने के लिए अमरीका जाने की अनुमति दी जाए लेकिन ऐसा नहीं हो सका. डॉ बिनायक सेन की पत्नी डॉ इलीना सेन भी जानीमानी सामाजिक कार्यकर्ता हैं और वे डॉ सेन को न्याय दिलाने के लिए संघर्ष करती रही हैं.

आखिर, सर्वोच्च न्यायालय ने मानवाधिकार कार्यकर्ता और चिकित्सक बिनायक सेन को जमानत दे दी। सेन मामले से जुड़ा घटनाक्रम इस प्रकार है :

14 मई, 2007: व्यापारी पीयूष गुहा और नक्सली नेता नारायण सान्याल के बीच संदशों का आदान-प्रदान करने के आरोप में सेन की गिरफ्तारी।

15 मई, 2007: सेन को न्यायिक हिरासत में भेजा गया।

25 मई, 2007: छत्तीसगढ़ सरकार ने दावा किया कि सेन से राज्य की सुरक्षा को खतरा है। उन्हें जमानत नहीं मिली।

मई-जून : मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने सेन के समर्थन में देशभर में रैलियां निकालीं।

तीन अगस्त,2007: पुलिस ने सेन के खिलाफ छत्तीसगढ़ विशेष सार्वजनिक सुरक्षा कानून और अवैध गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत अतिरिक्त मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी सत्यभामा दुबे की अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया।

10 दिसम्बर 2007: सर्वोच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों वाली पीठ ने सेन की जमानत याचिका खारिज की।

31 दिसम्बर,2007: 'इंडियन एकेडमी ऑफ सोशल साइंस' ने छत्तीसगढ़ में गरीब, दलित लोगों की जीवन गुणवत्ता में सुधार लाने के मकसद से प्रकृति व मानव समाज विज्ञान की उन्नति में महत्वपूर्ण योगदान के लिए सेन को 'आर.आर. केतन स्वर्ण पदक' प्रदान किया।

15 मार्च-11 अप्रैल, 2008: जेल प्रशासन ने सुरक्षा का हवाला देते हुए सेन को एकांत कारावास में रखा।

21 अप्रैल,2008: 'ग्लोबल हेल्थ काउंसिल' ने वश्विक स्वास्थ्य एवं मानवाधिकार के क्षेत्र में योगदान के लिए सेन को 'जोनाथन मैन अवॉर्ड' से नवाजा।

30 मई 2008: सेन मामले में रायपुर में सुनवाई प्रारंभ।

11 अगस्त,2008: छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय बिलासपुर में दूसरी जमानत याचिका दाखिल की गई।

14 अगस्त, 2008: सेन की जमानत याचिका पर पहली बार सुनवाई। सुनवाई स्थागित।

2 दिसम्बर,2008: जमानत याचिका खारिज।

3 दिसम्बर: पूरक आरोप दाखिल, इसमें अतिरिक्त 47 गवाहों की सूची शामिल।

4 मई, 2009 : सर्वोच्च न्यायालय ने सेन को हिरासत में रखे जाने को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार को नोटिस जारी कर दो सप्ताह के भीतर जवाब मांगा। अदालत ने सेन के दिल की तकलीफ को देखते हुए उन्हें बेहतर चिकित्सकीय सुविधा मुहैया कराने को भी कहा।

25 मई,2009: सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति मरक डेय काटजू और न्यायमूर्ति दीपक वर्मा की पीठ के आदेश पर सेन जमानत पर रिहा।

23-26 नवम्बर: रायपुर सत्र न्यायालय में सुनवाई दोबरा शुरू।

अगस्त के अंतिम सप्ताह और सितम्बर की शुरुआत, 2010 : सर्वोच्च न्यायालय ने छत्तीसगढ़ सरकार को सितम्बर के अंत तक सेन के खिलाफ सबूत पेश करने का निर्देश दिया।

28 सितम्बर,2010: अभियोजन पक्ष ने सभी सबूत पेश किए।

25-26 नवम्बर,2010: बचाव पक्ष ने 12 गवाहों सहित दस्तावेज पेश किए।

24 दिसम्बर, 2010: रायपुर के सत्र न्यायालय ने सेन, सान्याल और गुहा को राजद्रोह और साजिश के जुर्म में आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

24 जनवरी, 2011 : सेन की जमानत याचिका पर छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में सुनवाई शुरू। वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी सेन के पक्ष में उतरे और निचली अदालत के फैसले को बिना सबूत के आधार वाला फैसला करार दिया।

25 जनवरी 2011: एक अन्य वकील सुरेंद्र सिंह ने सेन का पक्ष लेते हुए कहा, "छत्तीसगढ़ पुलिस ने सेन के नक्सलियों से सम्बंध होने के दस्तावेज फर्जी तरीके से तैयार किये हैं।"

9 फरवरी, 2011 : उच्च न्यायालय ने अभियोजन पक्ष के वकील किशोर भादुड़ी की दलील सुनने के बाद आदेश सुरक्षित रखा।

10 फरवरी, 2011: न्यायमूर्ति टी. पी. शर्मा और न्यायमूर्ति आर. एल. झानवार ने सेन की जमानत याचिका को खारिज किया।

11अप्रैल, 2011 : सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एच. एस. बेदी और न्यायमूर्ति सी. के. प्रसाद की अध्यक्षता वाली खण्डपीठ ने छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा अपनी दलील पेश करने के लिए और समय मांगने पर सुनवाई स्थगित की।

15 अप्रैल,2011: सर्वोच्च न्यायालय ने सेन को जमानत दी।

अन्य खास लोग लेख
वोट दें

क्या आप कोरोना संकट में केंद्र व राज्य सरकारों की कोशिशों से संतुष्ट हैं?

हां
नहीं
बताना मुश्किल