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भारत पर चीन का दबाव

जनता जनार्दन संवाददाता , Dec 03, 2011, 11:52 am IST
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 भारत पर चीन का दबाव

नई दिल्ली: भारत के प्रति चीन का दृष्टिकोण कभी भी संदेहों से परे नहीं रहा। हाल ही में बौद्ध सम्मेलन के मुद्दे पर चीन ने सीमा संबंधी बातचीत को रोक दिया। बीती सर्दियों के दिनों में जब चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ भारत यात्रा पर आए थे तो उन्होंने कहा था

कि सीमा का मुद्दा काफी जटिल है और इसे सुलझाया जाना चाहिए लेकिन बौद्ध सम्मेलन के मुद्दे पर चीन ने एक दम से पलटी मारी है। दरअसल में दिल्ली में हो रहे बौद्ध सम्मेलन को लेकर चीन ने जो रुख अपनाया है वह उसके मन में भारत और अमेरिका के गहराते संबंधों को लेकर जो आशंकाएं पैदा हो रही हैं उसे दर्शाता है।

चीन को लग रहा है कि भारत दलाई लामा के माध्यम से राजनीति खेल रहा है। और दलाई लामा भी हर मौके का इस्तेमाल इस बात के लिए करते हैं कि दूसरे देश चीन पर पर दबाव बनाने के लिए कुछ करें। दलाई लामा के कारण चीन को कई तरह से दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

चीन चाहता है कि वह बौद्ध धर्म का इस्तेमाल घरेलू स्तर पर अपने हित में करे लेकिन दलाई लामा के कारण उसे इस काम में बाधा आती है जिससे वह उन्हें अपने लिए चुनौती मानता है। साथ ही तिब्बत का मुद्दा और वहां अल्पसंख्यक का मुद्दा तो चीन के गले की फांस बने हुए है ही। इस सम्मेलन को लेकर चीन पहले से ही सक्रिय हो गया था।

पहले तो चीन ने भारत सरकार पर इस बात के लिए दबाव डाला कि इसे होने ही न दिया जाए। जब भारत सरकार ने इसे रद्द करने से मना कर दिया तो चीन ने फिर दबाव डाला।

जब भारत की तरफ से उस दबाव को भी नकार दिया गया तो चीन ने सीमा मुद्दे पर होने वाली विशेष प्रतिनिधि स्तर की बातचीत में शामिल होने से ही इंकार कर दिया। इस सम्मेलन को लेकर चीन ने जो रुख अपनाया है, उससे दुनियाभर के बौद्द संप्रदायों में नाराजगी है।

इस सम्मेलन से जुड़े कुछ लोगों का तो यहां तक कहना है कि आखिर चीन कौन होता है हमें यह बताने वाला कि हमें कहां सम्मेलन करना है? चीन के इस कदम से दुनिया के बाकी हिस्सों में बसे तिब्बती लोगों में भी नाराजगी है।

तिब्बत पर चीन का जो रुख है उसे लेकर दुनियाभर में फैले तिब्बती लोगों के साथ ही फिलहाल तिब्बत में रह रहे लोगों के मन में भी गुस्सा है। चीन के व्यवहार के खिलाफ केवल दूसरे देशों में ही नहीं बल्कि चीन के अंदर भी तिब्बतियों द्वारा प्रदर्शन होते रहते हैं।

हाल ही में तिब्बत में ग्यानसेन नोर्बू मठ में प्रदर्शन हुए थे। ये प्रदर्शन चीन द्वारा नामित पंचेन लामा के निवास के पास हुए थे। ये प्रदर्शन मई माह में चीन द्वारा आयोजित स्वायत्त शासी तिब्बत की 60वीं वर्षगांठ के अवसर पर हुए थे। जहां कहीं भी इस तरह के विरोध प्रदर्शन होते हैं चीन उन्हें जबर्दस्ती दबा देता है।

अगर ये दूसरे देशों में होते हैं तो चीन वहां की स्थानीय सरकारों पर इन्हें दबाने के लिए दबाव डालता रहता है। दरअसल बात यह है चीन केवल तिब्बती प्रदर्शनकारियों ही नहीं बल्कि अपने दूसरे इलाकों से भी इसी तरह की अशांति का सामना करना पड़ रहा है।

चीन के शिनजियांग प्रांत में उइगर मुसलमानों की तरफ से भी चीन की सरकार को चुनौतियां मिलती रहती हैं।

चीन पिछले कई सालों से इस क्षेत्र में फौज की जबर्दस्त तैनाती कर रहा है और बलपूर्वक इन आंदोलनों को दबा रहा है।शिंघुआ विश्वविद्यालय द्वारा कराए गए एक सीक्रेट सर्वे में यह बात सामने आई है कि चीन में बीते वर्ष लगभग 1.80 लाख विरोधप्रदर्शन हुए जिन्हें सरकार ने दबा दिया। दरअसल चीन के समाज में सरकार के प्रति गुस्सा बढ़ता जा रहा है।

वहां महंगाई बढ़ती जा रही है जिससे लोगों के सामान्य जीवन जीने की लागत भी काफी बढ़ गई है। इससे लोगों को वहां जीवन चलाना मुश्किल पड़ रहा है।चीन में नागरिक जीवन के तमाम पक्षों पर सरकार का कड़ा नियंत्रण है।

इसके कारण वहां के नागरिकों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है लेकिन अब चीन के निवासियों का धैर्य जवाब दे रहा है और सरकार के लिए चुनौतियां बढ़ती जा रही है।

चीन की सरकार को अंदरूनी सुरक्षा चुनौतियों का अहसास बखूबी हो रहा है इसलिए सरकार इसकी तैयारियों में तेजी के साथ ही सतर्कता भी बरत रही है। मार्च में आयोजित हुए चीन के संसदीय अधिवेशन में अंदरूनी सुरक्षा के लिए 95 अरब डॉलर की राशि आवंटित की गई।

इतनी बड़ी राशि खर्च करने से साफ संकेत मिलता है कि चीन को अपनी अंदरूनी स्थिति कुछ ठीक नजर नहीं आ रही है।

चीन जिस तरह से आक्रामक कदम उठा रहा है वे सब उसकी चिढऩ को दर्शाते हैं। चाहे अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का एशिया दौरा हो या फिर दक्षिण चीन सागर और दूसरी घटनाएं, चीन ने हर जगह आक्रामकता का परिचय दिया है।

अमेरिकी राष्ट्रपति के दौरे के समय तो वहां की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के मुख पत्र पीपुल्स डेली ने लिखा कि ओबामा का यह दौरा अमेरिकी एशिया में फिर से घुसपैठ करने की कोशिश की रणनीति का हिस्सा है।

जहां तक बात भारत और चीन के आपसी रिश्तों की है तो यहां भी चीन अपनी आक्रामकता दिखा रहा है। विशेष प्रतिनिधि स्तर की बातचीत को टाल देना चीन की इसी आक्रामकता का परिचायक है। लेकिन चीन को यह जान लेना चाहिए उसे दूसरे देशों की संप्रभुता का सम्मान करना चाहिए।

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