Thursday, 28 March 2024  |   जनता जनार्दन को बुकमार्क बनाएं
आपका स्वागत [लॉग इन ] / [पंजीकरण]   
 

जसराज के रंग में रंगी जुगलबंदी

जनता जनार्दन संवाददाता , Oct 27, 2011, 17:49 pm IST
Keywords: Pune   Mumbai   Classical Music   Jasrngi   Name   Aiyar   Ghulam Ali Khan पुणे   मुंबई   शास्त्रीय संगीत   जसरंगी   नामकरण   अय्यर   गुलाम अली खां   
फ़ॉन्ट साइज :
जसराज के रंग में रंगी जुगलबंदी नई दिल्ली:पुणे और मुंबई की तरह ही देश के दूसरे शहरों में प्रात:कालीन शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम कराने पर जोर देते हुए पंडित जसराज ने कहा कि पुरूष और महिला कलाकारों के सुर एवं राग के मेल से बनी जुगलबंदी को जसरंगी कहते हैं।
    
राजधानी में बीते दिनों एक कार्यक्रम में शिरकत करने आए पंडित जसराज ने खास मुलाकात में कहा कि जसरंगी में मेरे दो शिष्यों संजीव अभ्यंकर और श्वेता झवेरी ने पहली प्रस्तुति दी थी। कार्यक्रम के पहले लोगों ने कहा कि यह तो तलवार की धार पर चलने जैसा है, लेकिन बाद में सभी ने सराहना की। पहले केवल हमारे शिष्य ही गाते थे और अब इसे दूसरे घरानों ने भी अपनाया।
    
इसके नामकरण के बारे में उन्होंने बताया कि कार्यक्रम के बाद एक श्रोता मीणा फणीकर ने कहा कि यह जसराज के रंग में रंगी जुगलबंदी है। इसलिए इसका नाम जसरंगी होना चाहिए। उन्होंने बताया कि पुरूष और महिला शास्त्रीय संगीतज्ञ अपने स्वर और राग से गाते हैं। पुरूष और महिला कलाकारों के वादययंत्र अलग अलग होते हैं, लेकिन उनमें एका स्थापित किया जाता है। ऐसी स्थिति आती है कि हर की तान एक लगती है।

शाम को कार्यक्रम होने के कारण प्रात:कालीन राग का गायन कम होने के बारे में पंडित जसराज ने कहा कि पुणे में पंडित भीमसेन जोशी के गुरू की स्मति में होने वाले सवाई गंधर्व संगीतोत्सव में मॉर्निंग राग गाए जाते हैं, यह कार्यक्रम सुबह छह बजे शुरू होता है और शाम को आठ बजे तक चलता हैं। मुंबई में भी कुछ कार्यक्रम सुबह की राग के मददेनजर हमने कराये हैं।
    
शास्त्रीय संगीत के श्रोताओं के बारे में उन्होंने कहा कि 1977 में अमेरिका में अली अकबर खां के स्कूल में मेरे कार्यक्रम में 108 लोग थे और वैंकूवर में हुए दूसरे कार्यक्रम में उस्ताद जाकिर हुसैन के होने के बावजूद 40 श्रोता थे। पंडित रविशंकर अकेले किस्मत वाले कलाकार है, जिनको दुनिया में हर जगह श्रोता मिलते हैं। हालांकि, इस वक्त अमेरिका में किसी भी शास्त्रीय गायक का कार्यक्रम हो, लोग सुनने आते हैं।
    
शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम में कम श्रोताओं के होने की बात को खारिज करते हुए पंडित जसराज ने कहा कि इस देश में बहुरत्न वसुंधरा है, जिसमें नाना प्रकार के हीरे जवाहरात (शास्त्रीय गायक) हैं। मगर उसको सही हाथों में जाना चाहिए ताकि प्रतिभा जानी जा सके, क्योंकि हीरे को तराशने के बाद ही उसका सही मूल्य लगाया जा सकता हैं। हमारे देश के युवा कलाकार को लंबी उम्र चाहिए तो उन्हें शास्त्रीय संगीत ये जुड़ना चाहिए।

वर्ष 1955 के संस्मरण को याद करते हुए उन्होंने बताया कि पहले उन्हें कर्नाटक शैली का संगीत बहुत ज्यादा पसंद नहीं था। दस दिन की रसिक रंजन सभा में उन्होंने शामागुड़ी श्रीनिवासन अय्यर को सुना, जो कर्नाटक शैली के अदभुत कलाकार थे। इसमें बड़े गुलाम अली खां अकेले हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के कलाकार थे।
    
पंडित जसराज के अनुसार, अय्यर ने गुलाम अली खां को देखते ही कहा आइये उस्ताद जी। मेरी आवाज तो आप जितनी सुरीली नहीं है, लेकिन आप सुनिये। और इसके बाद उन्होंने जो गाना गाया, वह अपने आप में लाजवाब था, जिससे मुझे लगा कि दुनिया में आवाज के अलावा भी कोई संगीत है।
    
उन्होंने कहा शास्त्रीय संगीत में संगीत अलग नहीं होता। यह केवल आवाज पर निर्भर नहीं करता, बल्कि आवाज अगर खराश वाली हो तो भी कलाकार बेहतर कर सकता है। हर कोशिश शास्त्रीय संगीत को किसी न किसी प्रकार से समद्ध कर जाती है।

एक अन्य संस्मरण को याद करते हुए उन्होंने कहा कि मैं 1951 में उस्ताद बड़े गुलाम अली खां के साथ बैठा था उन्होंने फिल्म में लता मंगेशकर के गाये गाने 'ये जिंदगी उसी की है' को सुनकर सुरमंडल नीचे रखा और कहा कि यह कमबखम्त कभी बेसुरी नहीं होती। उस्ताद जी जैसे कलाकार की यह प्रशंसा किसी कलाकार के लिए बड़ी अहमियत रखती है।
वोट दें

क्या आप कोरोना संकट में केंद्र व राज्य सरकारों की कोशिशों से संतुष्ट हैं?

हां
नहीं
बताना मुश्किल