अन्ना साहब के लिए एक यथार्थवादी पत्र
आदरणीय अन्ना साहब,
आपको और आपके द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाए गए मुहिम को मेरा नमस्कार ।
लगभग तीन दशकों की देश की मुरदा राजनीति में जो गतिशीलता पैदा की है निश्चित रुप से सराहनीय है। ईश्वर उन सबको सदबुद्धि दे जो पिछले 16 अगस्त से आपकी आवाज में आवाज मिला रहे हैं और एक यथार्थवादी मुद्दे को रोमांटिक बनाने की कोशिश कर रहे है। यदि भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों में इतनी चेतना होती तो सिर्फ मेट्रो चलाने के आधार पर जनता तीसरी बार दिल्ली में शीला दीक्षित को वोट नहीं देती। जबकि दिल्ली के मुख्यमंत्री ने अपने पर्स से निकाल कर मेट्रो को खैरात में नहीं दिया था।
दिल्ली के नागरिक जो आपके साथ भ्रष्टाचार के खिलाफ शामिल है मेट्रो रेल को रिश्वत मान कर सरकार की तमाम गलतियों को भुला दिया और सच्चाई की ओर नहीं देख सके। पता नहीं इस प्रकार के कितने प्रलोभन नेताओं द्वारा दिए जाते हैं और हम उससे प्रभावित होकर उन्हीं नेताओं को चुन लेते है। जबकि देश और प्रदेश का विकास करना उनका दायित्व है खैरात नहीं।
जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति को मैं ने दिल्ली के 23 तुगलक रोड से पटना के डाक बंगला चैराहे तक देखा, शामिल हुआ था। जनता ने इसी प्रकार का जोश दिखाया था जैसे आज लोग आपके प्रति दिखला रहे हैं। इसमें कितनी राजनीति है, और कितना सही अर्थों में भ्रष्टाचार के खिलाफ गुस्सा है यह निर्णय आनेवाला समय करेगा। लेकिन मैं इतना ही कहना चाहूंगा कि भीड़ और ईमानदारी दोनो दो तरह के मूल्य हैं।
भीड़ का ईमान कब बदल जाय कहा नहीं जा सकता। उदाहरण के लिए जिस भीड़ ने आपातकाल के बाद हुए चुनाव में ‘जयप्रकाश नारायण’ की जय बोलते हुए, श्रीमती इंदिरा गांधी की कांग्रेस पार्टी को हरा कर सत्ता से उखाड़ फेंका और कांग्रेस के इतिहास की धारा मोड़ दी। उन्हीं मतदाताओं ने महज डेढ़- दो वर्षों के भीतर ‘आधी रोटी खाएंगे, कांग्रेस को जिताएंगे’ कहते हुए जनता पार्टी के वजूद को ही समुद्र में डूबो दिया और दो तिहाई के बहुमत से जिता कर कांग्रेस को सत्ता पर बिठा दिया। यह सब कैसे हुआ?
मूल्य के प्रति आस्था रखना यह एक बेहद निजी मामला है। यह पूरे घर परिवार के संस्कार से बनता है। आपकी इस भीड़ में उस व्यक्ति का चेहरा नहीं दिखाई दे रहा है जिसकी संख्या 45 से 50 प्रतिशत तक है और जो भ्रष्टाचार का वास्तव में शिकार है। जिसके हिस्से का अन्न और राशन खा खा कर सरकार के आपूर्ति विभाग के चेहरे पर लालिमा छिटक रही है। जिन योजनाओं का हक उनको मिलना चाहिए वह मंत्रियों के ऐशो आराम पर खर्च हो रहा है।
नौकरशाहों की 36 इच की अंतडि़यो का विस्तार होता जा रहा है। एक ओर तो सुबह शाम की रोटी के जुगाड़ करने में उम्र निकल रही है दूसरी ओर पांचवीं और छठी पीढ़ी तक के लिए राशन से भरे गोदामों का इंतजाम हो रहा है। उन लोगों का समर्थन लिए बिना इस देश में किसी भी प्रकार की क्रांति नहीं हो सकती। वे आपके पास दिल्ली के रामलीला मैदान में नहीं आ सकते। आप को याद होगा कि गांधी जी की असली क्रांति बिहार के चंपारण जिले के नीलहे मजदूरो की दुर्दशा के खिलाफ आन्दोलन करके शुरू हुई थी, जिससे पूरे देश में आजादी के आन्दोलन को प्रेरणा मिली थी। आपके साथ वैसे नीलहे मजदूरों की कमी है।
कांग्रेस ने जैसा अमर्यादित सलूक आपके साथ किया है वह आदिकालीन पौराणिक संस्कारों के कारण ही किया है। आप को याद हो कि जब जब कोई तपस्वी या ऋषि मुनि तपस्या करने बैठते थे तो इन्द्र सबसे अधिक व्यथित हो जाता था और उसे इन्द्रासन छिन जाने का खतरा महसूस होने लगता था। विदेशी और आयातित संविधान हमारे संस्कार नहीं बदल सकता ।
इसलिए प्रजातंत्रिक व्यवस्था के बावजूद,जन प्रतिनिधि से इन्द्र बने नेताओं की कुर्सियां आपकी तपस्या से हिलती हुई नजर आती हैं। यह तो गनीमत है कि आपकी उम्र को देखते हुए इन आधुनिक इन्द्रों ने किसी रंभा या मेनका को तप भंग करने नहीं भेजा। पौराणिक इन्द्र भी तपस्वियों के तप को भंग करने के लिए कुछ मायावी राक्षसों को भेजता था जिसमें उन पर थूक की वर्षा से लेकर चरित्र हनन तक करवाता था। आज भी आप के साथ वैसा ही हो रहा है।
मुझे एक मीडियाकर्मी होने के कारण इस बात की जरुर चिंता हो रही है कि टीवी कैमरे कहीं आपकी जान न ले लें। आप की यह तपस्या खबर बन गई है और धड़ल्ले से वैसे ही बेची जा रही है जैसे गांधी टोपियां। टीवी आज विश्व का बहुत ही बड़ा धोखेबाज और विध्वंसक माध्यम है। पूरे विश्व में उन सभी को तबाह कर के छोड़ दिया जिसने इसका उपयोग किया है। वे आपको भडकाएंगे, सरकार को ललकारेंगे । विज्ञापन कमाएंगे और टीआरपी बढ़ाएंगे। आप मारे जाएंगे अन्ना। इसका मुझे बहुत दुख होगा।
गांधी, भगत सिंह ,सुखदेव, राजगुरु और पता नहीं कितने मारे गए कौन याद करता हैं अन्ना ? इस देश की जनता बड़ी विचित्र है। स्वयं मूल्यों प्रति किसी भी प्रकार का आग्रह नहीं है। यहां अपने व्यवहार में बिजली,पानी या किसी भी तरह के बिलों को जमा कराने की फुर्सत नहीं है, उसे भी किराए के लोग जमा करते है। यह आप को भी पता है। यदि इनका वश चलता तो वे खाना खाकर पचाने के लिए भी लोग किराए पर ले आते। यहां परीक्षाओं में श्रम करने के बजाए परमात्मा की कृपा से लोग पास होने की उम्मीद करते हैं और सवा किलो लड्डू का भोग लगा आते हैं। यदि आज सांसद में 147 सांसदों पर अपराधिक मामले हैं तो उन्हे किसने चुन कर भेजा?
यदि भारत की राजधानी दिल्ली के विद्वान मतदाता मां ओर बेटे को वोट देकर जिता देते हैं तो इसका जिम्मेवार कौन है? अन्ना, आप फुनगी को काट रहे हैं। जडें तो यहां की जनता के पास है, जो आज भी मानसिक रुप से जाति के नेताओं की गुलाम है और वह चाहती है कि संसद में उसकी जाति के नेता जाएं, भले ही वे अपराधी हों। ऐसे में भ्रष्टाचार को कैसे रोक पाएंगे अन्ना?
वे लोग आपको हर तरह से मार डालेंगे, जिनको भ्रष्टाचार के मिटने से अस्तित्व का खतरा है।
हमें आपकी चिंता है और सत्य के प्रति इस आग्रह को प्रणाम करता हूँ अन्ना।
आपका, शुभेच्छु