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जानें खूनी इतिहासः सदियों पुराना है अरब-इजराइल संघर्ष, जिसके केंद्र में है फिलिस्तीन, यरूशलम और गाजा पट्टी

जानें खूनी इतिहासः सदियों पुराना है अरब-इजराइल संघर्ष, जिसके केंद्र में है फिलिस्तीन, यरूशलम और गाजा पट्टी तकरीबन तीन हजार साल पहले मध्य पूर्व में दुनिया के तीन बड़े समझे जाने वाले धर्म की शुरुआत हुई. यरूशलम में इस इलाके का बहुत बड़ा शहर है. यह इस्लाम, ईसाई और यहूदी धर्म के लिए काफी अहम है. यह यहूदियों का दुनिया में सबसे पवित्र स्थान है, इस्लाम में मक्का और मदीना के बाद यह तीसरा सबसे पवित्र स्थान है. ईसाई धर्म के लिए भी यह काफी अहम स्थान है क्योंकि यहां ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया था. तीनों धर्म को अब्राहम धर्म कहा जाता है.

ऑटमन साम्राज्य ने 14वीं शताब्दी तक पूरे मध्य-पूर्व पर अपना कब्जा कर लिया था और 19वीं सदी तक यह कमजोर होने लगा था. 19वीं सदी में पूरे यूरोप में राष्ट्रवाद की बहार आ गई, जिसमें इटली, जर्मनी अहम हैं, ये तमाम देश छोटे-छोटे टुकड़ों में बंटे थे, लेकिन एकीकरण के इस दौर में यह देश 1950 के आस-पास एक होना शुरू हो गए.

इसी एकीकरण के दौर में थियोडोर हर्जल ने यहूदी राष्ट्र की बात शुरु की, इसे जाइनिस्ट आंदोलन का नाम दिया गया. जाइनिस्ट आंदोलन उसे कहते हैं, जिसमें यहूदी एक बार फिर से अपनी पवित्र धरती पर जाना चाहते हैं, जहां से यहूदी धर्म की शुरुआत हुई थी.

यहूदियों के इजरायल जाने की एक और बड़ी वजह यह थी कि पूरे यूरोप में यहूदियों का संहार किया जा रहा था, जिसमें सिर्फ जर्मनी या हिटलर नहीं आता है, बल्कि पूरे यूरोप में फ्रांस, रूस, इटली, पोलैंड के देशों में यहूदियों पर काफी अत्याचार किया गया. इनके धर्म को कई जगहों पर बैन कर दिया गया. इन अत्याचारों के चलते यहूदियों ने अपनी धरती पर वापस जाने की शुरुआत की.

इजरायल हमेशा से ही कई विवादों में रहता है, यहां लंबे समय से अरब और यहूदियों के बीच संघर्ष चल रहा है, गाजा पट्टी हमेशा से ही खबरों में रहता है, जबकि यरूशलम दुनिया के सबसे विवादित शहरों में गिना जाता है.

एक तरफ जहां इजरायल यरूशलम को अपनी राजधानी बताता है तो वहीं दुनिया का कोई भी देश यरूशलम को इजरायल की राजधानी नहीं मानते हैं. इजराइल को कनान, अल शाम, लेवांत या द प्रॉमिस लैंड के नाम से भी जाना जाता है.

1917 में जब प्रथम विश्व युद्ध चल रहा था, तभी ऑटमन साम्राज्य हारने की कगार पर था, तभी ब्रिटेन के विदेश मंत्री सर आर्थर बैलफॉर ने कहा कि हम यहूदियों को युद्ध खत्म होने के बाद फिलिस्तीन में स्थापित करने की पूरी कोशिश करेंगे. लेकिन इसी दौरान ब्रिटेन ने गुपचुप तरीके से एक साइक्स पीको करार किया, इसे फ्रांस और रूस के साथ किया गया था, जिसमें यह कहा गया था कि प्रथम विश्व युद्ध खत्म होने के बाद कौन सा देश किस देश पर अपना कब्जा करेगा.

इस करार के तहत ब्रिटेन ने फिलिस्तीन को अपने हिस्से में रखा था, जबकि सीरिया, जार्डन को फ्रांस को दे दिया, जबकि टर्की के कुछ इलाकों को रूस को दे दिया. इसके साथ ही अरब देशों को ब्रिटेन ने भरोसा दिया कि युद्ध के बाद वह फिलिस्तीन को आपको दे देंगे, अगर आप ऑटमन साम्राज्य के खिलाफ हमारा साथ दें.

पहले विश्व युद्ध के बाद फिलिस्तीन में एक नई सरकार का गठन हुआ, इस दौरान बड़ी संख्या में फिलिस्तीन में यहूदी शरण लेने लगे, यहां इस समय यहूदियों की कुल आबादी सिर्फ 3 फीसदी थी, लेकिन अगले तीस साल में यह बढ़कर 30 फीसदी तक पहुंच गई. यहूदियों ने यहां आकर अरब लोगों से जमीन खरीदनी शुरू कर दी और यहां यहूदी बस्तियों की स्थापना करनी भी शुरू कर दिया.

इसी दौरान 1936 में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अरब ने बगावत शुरू कर दी, इस बगावत को खत्म करने के लिए ब्रिटेन की सरकार ने यहूदी लड़ाकों का साथ दिया. इस बगावत के बाद ब्रिटेन की सरकार ने यहूदियों के फिलिस्तीन आने पर कुछ पाबंदी लगा दी, जैसे अब हर साल 10 हजार से अधिक यहूदी यहां नहीं आ सकते हैं, ताकि अरब लोगों की बगावत को थोड़ा रोका जा सके. जिसके बाद यहूदी लड़ाके ब्रिटेन की सरकार के खिलाफ शुरू कर दिया और गुरिल्ला लड़ाई करने लगे.

फिलिस्तीन में चल रहे विवाद के बीच ही 1939 में दूसरा विश्व युद्ध शुरू हुआ, इस वक्त यूरोप में बड़ी त्रासदी हुई थी, जिसे होलोकास्ट कहते हैं, इसका मतलब होता है यहूदियों का जनसंहार, जर्मनी में लाखों की संख्या में यहूदियों को गैस चैंबर में डालकर मार दिया गया था. कहते हैं कि इस दौरान 40 लाख यहूदियों को गैस चैंबर में डालकर मार दिया गया. इस अत्याचार के दौर में यहूदी फिलिस्तीन की ओर भागने लगे, क्योंकि उन्हें लगने लगा था अगर जीवित रहना है तो हमें अपने ही देश जाना होगा.

संयुक्त राष्ट्र ने 1947 में एक नया प्रस्ताव रखा कि क्या यहूदियों को अपना एक देश मिलना चाहिए, जिसपर इजराइल को समर्थन मिला. इस प्रस्ताव के बाद इजरायल को दो भाग में बांट दिया गया, एक हिस्सा था यहूदी राज्य और एक था अरब राज्य. लेकिन बड़ी समस्या थी यरूशलम क्योंकि यहां आधी आबादी यहूदियों की थी और आधी आबादी मुसलमानों की थी. इसलिए संयुक्त राष्ट्र ने फैसला दिया कि यरूशलम को अंतर्राष्ट्रीय सरकार के द्वारा चलाया जाएगा.

इस घोषणा के तुरंत बाद इजराइल के आस-पास के देशों ने इजराइल पर हमला कर दिया. मिस्र, सीरिया, इऱाक, जॉर्डन ने इजरायल पर हमला कर दिया, इसे 1948-49 का अरब इजराइल युद्ध कहते हैं. इस युद्ध में इजरायल ने अपनी ताकत का परिचय देते हुए इन देशों को पीछे ढकेलकर अपनी जमीन में इजाफा किया, यानी कि जो जमीन इजराइल को यूएन की द्वारा दी गई थी अब वह इस युद्ध के बाद और बढ़ गई थी.

इस लड़ाई के दौरान बड़ी संख्या में शरणार्थियों की समस्या खड़ी हो गई, इजरायल से तकरीबन सात लाख लोग विस्थापित हो गए, इस लड़ाई के बाद गाजा पट्टी का नियंत्रण इजरायल के पास चला गया और पश्चिमी घाट पर जार्डन ने कब्जा कर लिया था.

मिस्र, सीरिया और जॉर्डन से इजरायल के रिश्ते कभी अच्छे नहीं रहे थे, इनके बीच में आपसी तनाव काफी ज्यादा था. 1967 में मिस्र ने अपनी सेना इजरायल की सीमा पर तैनात कर दी, लेकिन इजरायल ने मिस्र के हमले से पहले ही हमला कर दिया और इस लड़ाई में इजरायल ने मिस्र, जॉर्डन और सीरिया को बुरी तरह से हराया और कई इलाकों को इन देशों से इजरायल ने अपने कब्जे में कर लिया, जिसमें गाजा और वेस्ट बैंक आज भी इजरायल के कब्जे में है.

पूर्वी यरूशलम में ज्यादातर मुस्लिम आबादी है, जबकि पश्चिमी हिस्से में यहूदी आबादी है, जबकि इनके बीचो-बीच यह पवित्र स्थान मौजूद है. यहां अल अक्सा मस्जिद है, जहां  इजरायल 18-50 वर्ष के लोगों को जाने से रोकता है, क्योंकि ये लोग अक्सर यहां प्रदर्शन करते हैं.

पूर्वी यरूशलम की गलियों में इतिहास के खून के थक्के जमे दिखाई देते हैं. पुराने शहर के भीतर ही मौजूदा अरब-इजरायल संघर्ष की जड़ें हैं. सात गेटों से घिरे हुए महज एक वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल की यरूशलम के फसाद की जड़ यहीं पास स्थित शेख जर्रा इलाके में है.

12वीं शताब्दी के इस्लामिक मिलिट्री लीडर सलादीन के हकीम शेख जर्रा को यहीं दफनाया गया था. उन्हीं के नाम पर इस इलाके का नाम पड़ा. 1967 की लड़ाई के बाद इस इलाके की तस्वीर बदल गई. इसी साल पूर्वी यरूशलम जॉर्डन के हाथों से निकलकर इजरायल के नियंत्रण में आ गया.

नए नियमों के मुताबिक वे यहूदी जो अपने स्वामित्व के सर्टिफिकेट पेश कर सकते थे, उन्हें अपनी ज़मीनें वापस पाने का अधिकार दिया गया. अरबों ने इसका विरोध किया. झगड़ा यरुशलम की अदालत में पहुंचा. फैसला यहूदियों के पक्ष में हुआ. अरबों ने हिंसक विरोध शुरू किया. फिर विरोध में पत्थरबाज़ी हुई. पत्थरबाजी का यह सिलसिला यहां से शुरू होकर अल अक्सा तक पहुंचा.

इजरायल की पुलिस ने एक्शन लिया. भीड़ को इकट्ठा होने और उग्र होने से रोकने के लिए अल अक्सा मस्जिद में रमजान के महीने में नमाज़ियों की संख्या तय की गई. हालांकि यह पहले भी होता रहा है. मगर इस बार अरब खासे नाराज़ थे, सो यह फसाद जैसे ही शुरू हुआ, सारी सीमाएं तोड़ गया. इस फसाद में हमास की एंट्री और इजरायल पर दनादन रॉकेट की बौछार ने इसे 'पॉइंट ऑफ नो रिटर्न' कर दिया, जहां से वापसी की गुंजाइश खत्म हो जाती है.

यरूशलम का शेख जर्रा इलाका ओल्ड सिटी के डमास्कस गेट से करीब आधे किलोमीटर की दूरी पर है. इस डमास्कस गेट से हेरोड गेट और जाफा गेट के बीच अरबों की अच्छी-खासी आबादी है.

1978 में इजरायल को मिस्र ने पहली बार एक राष्ट्र के तौर पर मान्यता दी थी, जिसपर काफी विवाद हुआ था. उस वक्त मिस्र के तत्कालीन राष्ट्रपति अनवर सदाक कुछ साल बाद हत्या तक कर दी गई थी.

इन संघर्ष के बाद ही फिलिस्तीन और इजरायल के बीच विवाद शुरू हुआ. इजरायल के खिलाफ पीएलओ यानी पैलेस्टाइन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन ने अपनी लड़ाई शुरू की, जिसके काफी चर्चित नेता थे यासिर अराफात. फिलिस्तीन के लोगों ने इजरायल सरकार के खिलाफ अपना विरोध शुरू कर दिया, क्योंकि इन लोगों को इनके अधिकार नहीं मिले और वेस्ट बैंक पर इजरायल की सेना तैनात थी.

यह विवाद हिंसा में तब्दील हो गई और तकरीबन 100 यहूदी और 1000 अरब की मौत हो गई. इसी दौरान हमास का जन्म हुआ, जोकि पीएलओ से भी ज्यादा खतरनाक थी. पीएलओ इजरायल से समझौते के पक्ष में था, जबकि हमास का मानना था कि इजरायल देश का अस्तित्व ही नहीं है, हम इसे राष्ट्र नहीं मानते हैं.

1993 में ओस्लो करार के तहत इजरायल और फिलिस्तीन या यूं कहें इजरायल के पीएम येट्सचाक राबिन और पीएलओ के नेता यासिर अराफात के बीच समझौता हुआ, इन दोनों ही नेताओं को नोबेल शांति पुरस्कार मिला था. इस समझौते के तहत पीएलओ ने इजरायल को एक राष्ट्र के तौर पर मान्यता दी और इजरायल की सरकार ने पीएलओ को मान्यता दी. इससे पहले पीएलओ को आतंकी संगठन माना जाता था. समझौते के तहत पांच साल के लिए हिंसा को रोकने पर करार हुआ.

वर्ष 2000 में एक बार फिर से इजरायल और फिलिस्तीन के बीच संबंध खराब हो गए, इसकी बड़ी वजह थी उस वक्त इजरायल के राष्ट्रपति एहूद बराक 1000 सुरक्षा गार्ड को लेकर टेंपल माउंट पर चले गए, इसे यहूदियों और मुस्लिम दोनों का पवित्र स्थान कहा जाता है. इसके चलते फिलिस्तीन के लोग भड़क गए और हिंसा शुरू हो गई.

इस दौरान तकरीबन 1000 यहूदी और 3200 फिलिस्तिनियों को मार दिया गया, कई बसों को उड़ा दिया गया और कई जगह पर धमाके किए गए. इस हिंसा के बाद इजरायल की सरकार इस विवाद का समाधान निकालने की बजाए इसे रोकने पर ध्यान लगाने लगी। इसके तहत इजरायल की सरकार ने गाजा पट्टी से यहूदियों को हटा दिया, इसके अलावा सेना को भी यहां से हटा लिया गया.

इसके कुछ समय बाद यहां चुनाव हुआ हमास ने यहां का चुनाव जीत लिया. लेकिन पीएलओ की पार्टी फताह ने हमास को सरकार में लेने से इनकार कर दिया. जिसके बाद 2007 में हमास ने गाजापट्टी पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया और फतह को यहां से खदेड़ दिया और काफी ताकतवर बन गया.

हमास ने इसके बाद इजरायल पर हमला करना शुरू कर दिया, हमास ने रिहायशी इलाकों में हमला करना शुरू कर दिया. इजरायल ने भी गाजापट्टी की घेराबंदी कर दी, इसके तहत अब गाजा में किसी भी तरह का सामान नहीं जा सकता, कई जगह पर चेकपोस्ट बना दिया गया, कोई भी बाहर का जहाज गाजा में नहीं आ सकता है.

इजरायल का कहना है कि इरान जैसे कई देश यहां रॉकेट को भेजता है. लेकिन इस नाकेबंदी के चलते अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों से मिलने वाली मदद यहां नहीं पहुंच पाती, जिसकी वजह से पिछले 10 सालों में गाजा की स्थिति काफी खराब हो गई है. यहां 40 फीसदी तक बेरोजगारी है, लोगों के घर में बिजली-पानी नहीं है. गाजा में हमास और इजरायल के बीच कई बार युद्ध हुए, जिसमें हजारों लोगों की मौत हो चुकी है. इस लड़ाई में दोनों ही गुट स्थानीय नागरिकों को भी निशाना बनाते हैं.

यरूशलम को पूरी दुनिया में आज भी इजरायल की राजधानी के तौर पर मान्यता नहीं मिली है. इजरायल यरूशलम को अपनी राजधानी मानता है, जबकि दुनिया के अन्य देश अभी भी तेलअवीव को उसकी राजधानी मानते हैं, लिहाजा सारे दूतावास यहीं स्थित हैं.
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