जान देने की रुत रोज आती नहीं...
जनता जनार्दन संवाददाता ,
Aug 23, 2011, 10:38 am IST
Keywords: Anna Hazare Movement Patriotic approach Young participation India against corruption अन्ना हजारे आंदोलन इंडिया अगेंस्ट करप्शन युवाओं की सहभागिता देशभक्ति का जज्बा
नई दिल्ली: प्रख्यात गांधीवादी अन्ना हजारे के आन्दोलन की कामयाबी और लोगों के उससे जुड़ते चले जाने के पीछे देशभक्ति का वह जज्बा है, जो अब से पहले अमूमन देश पर हुए विदेशी हमलों के वक्त ही देखा गया. यह एक ऐसा आन्दोलन है, जो स्वत: स्फूर्त है, और लोगों के मन और दिलों पर बस एक ही धुन है,'जिंदा रहने के मौसम बहुत हैं मगर, जान देने की रुत रोज आती नहीं...'।
रामलीला मैदान पहुंचने से लेकर अन्ना के आन्दोलन में देश के कोने कोने में तिरंगा उठा लेने वाला हर एक शख्स दरअसल यही महसूस कर रहा है। उसे लग रहा है कि देश के लिए कुछ कर गुजरने का उसके पास यही एक मौका है। वह इस मौके को यूं ही जाया नहीं करने देना चाहता। उसे लगता है कि उसके पहुंचने भर से एक संख्या मात्र का समर्थन भी बढ़ जाता है तो उसका जीवन धन्य हो गया। इसी जज्बे के साथ लोग अन्ना हजारे को समर्थन करने रामलीला मैदान पहुंच रहे हैं। लोगों का जज्बा सिर्फ पहुंचने और समर्थन देने भर का भी नहीं है। वह चाहते हैं ऐसे मौके पर काम आकर कर क्यों न वे राष्ट्र सेवा में अपनी थोड़ी सी सही, भूमिका तो निभाए। उन्हें लगता है, न जाने ऐसा मौका फिर कब मिलेगा। बैंक के सेवानिवृत्त 70 वर्षीय डी. पी. झा को ही लीजिए। वह दिल्ली के रहने वाले हैं। उन्हें लगा कि लोग पानी की कमी महसूस कर रहे हैं। इधर-उधर देखे बगैर उन्होंने पानी की पांच ट्रालियां ही खरीद ली और हर प्यासे को मुफ्त में पानी पिलाया। झा इसे अपना सेवा धर्म समझ रहे हैं। उन्हें विश्वास है कि देश जरूर भ्रष्टाचार से मुक्त हो जाएगा। झा ने कहा, "ऐसे मौके बार-बार नहीं आते। मैं सशरीर तो यहां उपस्थित हूं लेकिन मुझे लगा कि मैं लोगों को पानी पिलाकर ही शायद इस आंदोलन के काम आ सकूं और अपना थोड़ा योगदान दे सकूं।" वह कहते हैं, "मैंने लोगों को पानी पिलाने का निश्चय किया है। अब बहुत हो चुका, भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेंकना है। देश के युवाओं के लिए कुछ कर गुजरने का समय आ गया है और हमारे देश के युवा अपने जज्बे से इसे दिखा भी रहे हैं।" दिल्ली के 48 वर्षीय व्यापारी सतीश टोकस ने तो अपनी तरफ से लोगों के बीच 60 दर्जन केले बांटे। टोकस ने कहा, "अब तक हम सोए थे लेकिन अब जाग गए हैं। पूरा देश जाग रहा है। जितना बन पड़ेगा उतना तो हम करेंगे ही। अगली पीढ़ी के भविष्य के लिए अब तो जान देने की रुत आ गई है। यह समय बार-बार नहीं आने वाला है।" लोगों के इस भारी जनसैलाब में कुछ युवा ऐसे भी दिखे जिन्होंने हाथों से कूड़ा उठाने में भी परहेज नहीं कया। घर पर खुद से उठकर एक गिलास पानी नहीं पीने वाले ऐसे दर्जनों युवा स्वेच्छा से इस काम में लगे थे। वे न तो इंडिया अगेन्स्ट करप्शन के कार्यकर्ता थे और न ही किसी गैर सरकारी संगठन से जुड़े थे। रोहिणी से आए उनमें से एक युवा का नाम राहुल शर्मा था। वह पेशे से सॉफ्टवेयर हैं। उनसे जब पूछा गया कि आखिर आपके मन में क्या भाव है जिससे आप इतने प्रेरित हुए हैं। उन्होंने कहा, "जिंदा रहने के मौसम बहुत हैं मगर, जान देने की रुत रोज आती नहीं..'। |
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