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साहित्य अकादेमी द्वारा फणीश्वरनाथ रेणु की जन्मशतवार्षिकी पर संगोष्ठी संपन्न

साहित्य अकादेमी द्वारा फणीश्वरनाथ रेणु की जन्मशतवार्षिकी पर संगोष्ठी संपन्न नई दिल्ली: साहित्य अकादेमी ने प्रख्यात लेखक फणीश्वर नाथ रेणु की जन्मशतवार्षिकी के अवसर पर आज 18 जनवरी को एक संगोष्ठी का आयोजन आभासी मंच पर किया. संगोष्ठी का उद्घाटन वक्तव्य प्रख्यात कवि एवं आलोचक तथा साहित्य अकादेमी के महत्तर सदस्य विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने दिया और बीज वक्तव्य प्रख्यात समालोचक गोपेश्वर सिंह ने प्रस्तुत किया. कार्यक्रम की अध्यक्षता हिंदी परामर्श मंडल के संयोजक चित्तरंजन मिश्र ने की और स्वागत वक्तव्य साहित्य अकादमी के सचिव के. श्रीनिवासराव द्वारा दिया गया.

अपने उद्घाटन वक्तव्य में साहित्य अकादेमी के पूर्व अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कहा कि रेणु हिंदी के विलक्षण और विरल रचनाकार थे. अन्य भारतीय भाषाओं में भी उन जैसे रचनाकार गिने-चुने ही हैं. प्रेमचंद के बाद हिंदी कथा साहित्य को जैनेंद्र के बाद नया मोड़ देने वाले वे दूसरे रचनाकार थे. उन्होंने आजादी के बाद के पहले दशक की सरकारी योजनाओं का सजीव लेखा-जोखा प्रस्तुत किया. शरद चंद्र और रवींद्रनाथ टैगोर से प्रभावित रेणु के साहित्य में जो राग तत्त्व  दिखाई देता है, वह अद्वितीय है. अपना बीज वक्तव्य देते हुए गोपेश्वर सिंह ने कहा कि रेणु की प्रतिबद्धता सच्चाई के प्रति थी और इसके लिए उन्होंने अपने लोगों की आलोचना करने में कोई चूक नहीं की. प्रेमचंद के बाद कथा का नेरेटिव जैसा उन्होंने बदला वैसा कोई और न कर सका. पिछड़े वर्ग के होने के बावजूद भी उन्होंने अगड़े-पिछड़े की राजनीति पर बेबाकी से लिखा.

संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए चित्तरंजन मिश्र ने कहा कि प्रेमचंद के गाँव जहाँ शहर के नजदीक हैं वहीं रेणु के गाँव बेहद अंदर के गाँव हैं इसलिए दोनो के यर्थाथ में बेहद अंतर है. रेणु ने प्रेमचंद के गाँव से जुड़े यथार्थ को नई दृष्टि ही नहीं दी बल्कि उसको सम्पूर्णता प्रदान की. उन्होंने मनुष्य के मन को पूरे वैभव और सम्पूर्णता से व्यक्त किया. सही मायनों में रेणु का साहित्य बदलाव की आकांक्षा का प्रतीक था.

संगोष्ठी के आरंभ में स्वागत भाषण देते हुए अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने कहा कि फणीश्वरनाथ रेणु को आजादी के बाद का प्रेमचंद कहा जा सकता है. उनका लेखन हमेशा दमन के खिलाफ रहा जोकि उस समय की जरूरत भी थी. उन्होंने सभी का स्वागत करते हुए कहा कि अगर कोरोना महामारी नही हुई होती तो यह संगोष्ठी वृहद स्तर पर रेणु के अंचल में कहीं आयोजित की गई होती.

विचार सत्र की अध्यक्षता प्रख्यात आलोचक रेवती रमण ने की और इसमें तरुण कुमार, देवशंकर नवीन,करुणा शंकर उपाध्याय, अरुण होता, कमलेश वर्मा, रश्मि रावत एवं मीना बुद्धिराजा ने अपने - अपने आलेख प्रस्तुत किए.

रश्मि रावत ने कहा कि रेणु के हदय में आम जीवन के प्रति प्रेम  सम्पूर्ण मात्रा में था और उनको पढ़ते हुए आदमियत पर भरोसा होता है. तरुण कुमार ने कहा कि रेणु ग्रामीण जीवन की बदलती शैली को सजीवता के साथ प्रस्तुत करते हैं. देवशंकर नवीन ने कहा कि रेणु की कथाओं में हम व्यवस्थाओं के शिकंजे में जकड़े उन ग्रामीणों को पाते हैं जो इस शासकीय वर्चस्व के चलते बहुत सी मुश्किलों का सामना कर रहे हैं. कमलेश वर्मा ने ‘मैला आँचल’ के चरित्रों का विश्लेषण प्रस्तुत किया. मीना बुद्धिराजा ने कहा कि रेणु केवल लिखते ही नहीं बल्कि उस परिवेश को जीते भी  हैं.

अरुण होता ने कहा कि रेणु अपने समय-समाज के अंतर्विरोधों को बड़ी सजीवता से प्रस्तुत करते हैं. करुणशंकर उपाध्याय ने कहा कि हमारे पूर्व आलोचक रेणु के साथ न्याय नहीं कर पाए और उनको केवल 'मैला आँचल' और एक-दो कहानियों के इर्द-गिर्द ही समेट दिया, जबकि रेणु हमें अपनी हर रचना में जीवन की जड़ो तक ले जाते हैं. विचार-सत्र की अध्यक्षता कर रहे रेवती रमण ने कहा कि रेणु बहुत बड़े शब्द साधक थे. उन्होंने  कहानी और उपन्यासों में कलाकारों के प्रति जो सम्मान दिखाया है उससे स्पष्ट होता है कि वे जीवन में कला को अहम हिस्सा मानते थे. उन्होंने भाषा के आधार पर रेणु का विवेचन करते हुए कहा कि वे इस संदर्भ में कालजयी रचनाकार ठहरते हैं.

कार्यक्रम का संचालन अकादेमी के संपादक (हिंदी) अनुपम तिवारी ने किया.
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