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नैतिकता का ईवीएम हैक हुआ है, लोक में सच्चा ज्ञानोदय अभियान जरूरी

त्रिभुवन , May 29, 2019, 18:13 pm IST
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नैतिकता का ईवीएम हैक हुआ है, लोक में सच्चा ज्ञानोदय अभियान जरूरी
यह बहस पूरे देश में है कि ईवीएम हैक हो रही है। मुझे भी लगता है कि ईवीएम हैक हो रही है। हारे हुए नेताओं, उनके दलों, उनके कार्यकर्ताओं और उनके प्रशंसकों को वाकई लग रहा है कि ईवीएम हैक हुए बिना इतनी सीटें नहीं आ सकतीं। लेकिन मैं इस बात के कतई पक्ष में नहीं हूं। मुझे नहीं लगता कि इस मशीन का कुसूर है। कुसूर मशीनों में नहीं, हमारे दिमागों में है। हम 1984 को क्यों भूल जाते हैं? उस समय भी हमारे दिमाग़ हैक हुए थे और कांग्रेस को 404 सीटें आईं थी। उस समय आज की घमंड से चूर भाजपा की महज दो सीटें आईं  थीं और 30 सीटों के साथ तेलुगु देशम मुख्य विपक्षी दल बनी थी। 
 
जॉर्ज आर्वेल ने कभी कहा था कि पॉलिटिकल लोगों की भाषा बड़ी भ्रामक होती है। वे अपनी भाषा को इस तरह डिज़ाइन करते हैं कि वे जब झूठ बोलें तो सुनने वाली जनता उसे सबसे बड़े सत्य के रूप में ग्रहण करे। वे किसी की हत्या करें तो लगे कि उन्होंने बहुत ही गौरवशाली काम किया है। हम जॉर्ज ऑर्वेल से असहमत नहीं हो सकते। क्योंकि अभी हमने चुनाव में देखा कि किस तरह महात्मा गांधी की हत्या को रेस्पेक्टेबल बताया गया और किस तरह हत्यारे नाथूराम गोडसे को राष्ट्रभक्त साबित करके वोट बटोरे गए। जॉर्ज ऑरवेल का राजनीति के बारे में सूक्त कथन बहुत ही सटीक और अकाट्य साबित होता रहा है। कालांतर में ऐसा कांग्रेस, कम्युनिस्ट, लीगी आदि ऐसा करते रहे हैं।
 
जॉर्ज आॅर्वेल ने भी कहा था और यह भारतीय जीवन दर्शन की परंपरा भी है कि जब कोई भ्रम या उलझाव पैदा करे तो पत्रकार या लेखक उसे सही तरीक से जनता के बीच पहुंचाएं। पत्रकारों का तो धर्म ही ये है कि वे किसी पार्टी-पॉलिटिक्स से न बंधें और न ही किसी दल, नेता या विचारधारा के मोह में पड़ें। उनका काम ही यह है कि वे राजनेताओं की भाषा के उन जुमलों या लच्छेदार शब्दों को डीकोड करके जनता को बताएं। उनका काम यह नहीं है कि वे बहुत मेहनत से डिजाइन किए हुए और अपने अतीत के धत्कर्मों, वर्तमान के पापों और भविष्य की दुष्ट स्वप्नों को एकदम भुलाकर 'विलक्षण, सारवान, समावेशी, प्रेरक, गंभीर, अभिभूत करते वक्तव्य को ध्यान से सुनने-गुनने योग्य घोषित करें।' जैसा जी अभी प्रधानमंत्री के भाषण को लेकर तारीफ़ों के पुल बांधे गए। तारीफ़ें बुरी नहीं, लेकिन तारीफ़ कोरे शब्दों की नहीं, शब्दों के माध्यम से जो कहा जा रहा है, उसे हक़ीक़त में उतारे गए कामों की होनी चाहिए। 
 
कुछ स्वनामधन्य मित्र झूठ को सत्य दर्शाने के लिए डिजाइन की गई भाषा बोलने वाले की तारीफ़ों में लहालोट हैं। जिसे इस देश के आम नागरिक को झूठ और सच का फ़र्क समझाना चाहिए, वह राजनीतिक दलों और उनके नेताओं की और उनके सही-ग़लत कामों की ऐसी तारीफ़ें बांधने लगते हैं कि उनकी पीआर सेल से जुड़े भी मारे लाज के पानी-पानी हो जाते हैं।
 
जैसे, प्रधानमंत्री जी ने कहा कि मुसलमानों को छला और डराया गया। उनकी ये सही बात थी कि कांग्रेस ने धर्मनिरपेक्षता के नाम पर मुसलमानों को छला, लेकिन डराया तो आपने, आपके दल और आपके लोगों ने!  एक छलता रहा और दूसरा डराता रहा। एक डराता रहा और दूसरा छलता रहा। आप दोनों मुसलमान को ऐसे ही सेकते रहे। 
 
भाजपा के नेता अब दो बच्चों के बाद नसबंदी की बात करते हैं तो लोगों को बहुत बुरा लगता है, लेकिन कांग्रेस ने तो जबरन नसबंदी की थी। बीजेपी राम मंदिर अभियान चलाती है। लेकिन ताले कांग्रेस खोलती है। भाजपा के लोग बाबरी ढाँचा तोड़ते हैं, लेकिन वह कौनसी पार्टी है, जिसका प्रधानमंत्री समय रहते कोई बंदोबस्त नहीं करता और ढांचा ढहने तक सोया रहता है? आप इन सचाइयों को ख़ारिज नहीं कर सकते।
 
हम देखते हैं कि आज नेताओं से पत्रकारों से लेकर आला अधिकारी और धार्मिक संतों से लेकर बिजनेस टाइकून तक सब मुग्ध हैं। पचासों लोगों को पीएचडी करवाने वाले और सत्यशोधन का काम करने वाले प्राध्यापक किसी के प्रशस्ति गान में व्यस्त हैं। रिटायर्ड न्यायाधीश, जो न्याय और इन्साफ़ के लिए जाने जाते हैं, वे अपने नीरक्षीर विवेकी दृष्टि को परे रखकर किसी विचारधारा विशेष के साथ हमराह होने लगते हैं। शिक्षक को देखो, प्रशिक्षक को देखो, डॉक्टर को देखो, न्यायाधीश को देखो, वकील को देखो और अपराधी को परखो तो सबके सब ही भाषा बोल रहे हैं। और आप कह रहे हैं कि ईवीएम हैक हो रही है। जहां दिमाग़ हैक हो गए हों और जहां प्रतिद्वंद्वी दल ने लोगों के बीच जाकर काम करना बंद कर दिया हो, वहां  किसी को जरूरत है ईवीएम हैक करने की? आख़िर हम विवेकशीलता और नीर क्षीर विवेकी दृष्टि को परे क्यों छोड़ देते हैं?
 
मोदी में उनके प्रशंसकों को एक स्वप्नद्रष्टा दिखता है, लेकिन क्या देश को ये अपेक्षा नहीं करनी चाहिए कि वे इस असाधारण विजय को भारत की विकराल समस्याओं के समाधान की राह में बदलें, न कि उन पर पर्दा डालें। जैसे कि पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर से ध्यान हटाने के लिए दरें रोज़ बदलना शुरू कर दिया है। क्या किसी प्रधानमंत्री को देश ही विपक्ष के प्रति इतना क्रोधित दिखना चाहिए? उनके चुनावी भाषणों का 53% समय तो इसी क्रोध की भेंट चढ़ा।
 
प्रधानमंत्री जी का राजनीतिक दल सुबह से शाम तक और पहली तारीख़ से आख़िरी तारीख़ तक यानी 24 इंटू 7 काम करता है। उसे साम-दाम-दंड और भेद से भी कोई ऐतराज़ नहीं है। वह एक समय अपने आपको हिंदुत्व के मस्क्युलर चैंपियन की भूमिका में उतारता है और अगले ही पल अपने आपको एकात्म मानवतावादी  घोषित करता है। वह समाजवादी और धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों को जीने वाले भगतसिंह के प्रति भी अपना सम्मान दिखाने का स्वांग रचता है और उसकी विचारधारा को भी गर्व से खारिज करता है। कोई समाजवाद विरोधी और कट्‌टर हिंदुत्ववादी दामोदर सावरकर के स्वतंत्रता संघर्ष की तारीफ तो कर सकता है, लेकिन उनके विचारों के प्रति सम्मान रखकर कोई कैसे भगतसिंह के आदर्शाें की रक्षा कर सकता है? वह गांधी को भी साथ रखने का फ़रेब रचता है और गोडसे को देशभक्त भी खुलेआम कहता है। वह स्त्री अधिकारों की वकालता का दिखावा भी करता है और स्त्री स्वातंत्र्य के मूल्यों को पलीता लगाने वाली परंपराओं का कठारेता से पोषण भी करता है। वह 21वीं सदी की बातें भी बढ़चढ़कर करता है, लेकिन अतीतजीवी, प्रतिगामी और विज्ञानविरोधी दर्शन को भी जीता है। 
 
एक विजेता जब सत्ता के केंद्रीय कक्ष से कहता है कि आपको बहकाने वाले पत्रकार बहुत मिलेंगे। लेकिन आपको प्रधानमंत्री कार्यालय से भी मंत्री बनाने का फोन आए तो भरोसा मत करना। पहले कन्फर्म करना। ये बहुत ही नेक़ और बेहतरीन सलाह है; लेकिन देश का कोई स्वनामधन्य पत्रकार यह प्रश्न नहीं करता कि ओ इस युग के महान नेता, अभी चुनाव में तो आपकी पार्टी के नेता अपने ही कार्यकर्ताओं से सार्वजनिक रूप से कह रहे थे कि मुलायम सिंह के बेटे अखिलेश ने पिता को थप्पड़ मारने का झूठ वायरल किया तो हमारी सत्ता आ गई। इसका गोपनीय संदेश ये था कि आप भी ऐसा मौका न चूकें! तब तो आपने इस तरह के वाट्स ऐप झूठों को ठाेक बजाकर देखने की बात कभी क्यों नहीं कही? क्योंकि आपको एक झूठ से नुकसान और दूसरे झूठ से फायदा होता है। 
 
यह कोई पहला नेता नहीं है, जो एेसा कर रहा है। यह सब तो पंडित जवाहरलाल नेहरू के काल से ही चल रहा है। आज देश का शायद ही कोई प्रख्यात कवि वर्तमान प्रधानमंत्री के प्रशस्तिगान में जुटा हो, लेकिन आजादी के तत्काल बाद तो रामधारी सिंह दिनकर सार्वजनिक रूप से ऐसी कविताएं रच रहे थे, जो हर प्रकार से प्रशस्ति गान का हिस्सा थीं। और बदले में उन्हें राष्ट्रकवि की उपाधि भी मिली। पंडित नेहरू का यशोगान करने वाले पत्रकार आज भी मिलेंगे। उनमें से शायद ही किसी को तब के भारतीय शासन और प्रशासन की विद्रूपता दिखती होगी। यह अलग बात है कि समय के साथ कई तरह की गिरावट आई है और पहले जो पतली नाली थी, वह अब एक महानद बन गया है। आज के सत्ताधीशों को बहुत सी सुविधाएं हासिल हैं। उन्हें इंटेलेक्ट को हैक करना आता है और जिसका ब्रेन हैक हो गया, वह अपने आपको ऐसे सत्ताधीश का विरोधी मानकर भी उसके बनाए खांचे में बहता चलता है। इसलिए उस डिजाइंड भाषा को डीकोड करने वाले लोगों की जरूरत है, जो झूठ को सच और हत्यारों को राष्ट्रवादी दर्शाने का काम कर रही है। 
 
मित्रो, ईवीएम हैक तो हुई है, लेकिन वह ईवीएम है : हमारे ईथॉज़, हमारे वैल्यूज और हमारी मॉरैलिटी की! दरअसल, सभी राजनीतिक दल मिलकर हमारे ईथॉज़, वैल्यूज और मॉरैलिटी की ईवीएम को हैक कर रहे हैं और कोई किसी से पीछे नहीं है! 
 
सत्ता भाजपा के हाथ आने या कांग्रेस के हाथ चली जाने से हालात नहीं सुधरेंगे। न ही उनमें करिश्माई छवि ढूंढने से निकलेंगे। ये छवियां गढ़कर ही कांग्रेस ने वर्षों सत्यानाश किया। हिमालय के ग्लेशियर में केदारनाथ जी के मंदिर के पार्श्व में खड़े होकर भगवा वेश में ध्यानस्थ मुद्रा का फोटो खिंचवाने से छवि तो गढ़ी जा सकती है, लेकिन केदारनाथ नाम वाले उस सच्चे शिव की शिक्षा तो गरल पान करने की है, उगलने की नहीं! कई विमानों में सुरक्षादलों और फ़ोटोग्राफरों को हिमालय में ले जाकर एक अद्भुत पोलिटिकल लैंडस्केप खींचना अलग बात है और निरंतर बर्बाद होते हिमालय, उसके ग्लेशियर, उसकी नदियों, उसकी पारिस्थितिकी की रक्षा के उपाय करना एकदम अलग। दरअसल, इसके लिए लोक में सच्चे ज्ञानोदय का अभियान जरूरी है। जो लोग सोच रहे हैं कि एक राजनीतिक दलों में सत्ता परिवर्तन से हालात सुधर जाएंगे, वे ओस चाटकर प्यास बुझाने की कोशिश कर रहे हैं।
 
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