गठबंधन की जोड़-तोड़: 2019 चुनाव 2004 को दोहराएगा!
जनता जनार्दन संवाददाता ,
Feb 22, 2019, 17:09 pm IST
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यूपी, बिहार से लेकर तमिलनाडु और महाराष्ट्र में हाल के गठबंधन बड़ी पार्टियों की अंदरुनी हलचल और अनिश्चितता की ओर इशारा कर रहे हैं. उत्तर भारत में क्षेत्रीय दलों के तैयार हो रहे ताकतवर गठबंधन से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए बीजेपी दक्षिणी राज्य तमिलनाडु और महाराष्ट्र में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन का दायरा मजबूत करने व कांग्रेस के नेतृत्व वाले बिखरे महागठबंधन के अलावा राज्यों की ताकतवर पार्टियों को साथ लाने की मशक्कत में जुट गई है. पार्टियों को पता है कि ज्यादा वोट से बड़ी जीत जरूरी है और बड़ी जीत गठबंधन में शामिल पार्टियों की संख्या पर निर्भर करेगी. आंकड़े बताते हैं कि ज्यादा वोट पाना हमेशा सीट की गारंटी नहीं है और इस वोट परसेंटेज और सीट के समीकरण को गठबंधन की राजनीति किनारे कर देती है. 2009 में भी यूपीए के पास एनडीए से दो पार्टियां अधिक थीं, ऊपर से मुलायम सिंह और बसपा ने बिना मांगे यूपीए सरकार का समर्थन कर दिया. तीसरा मोर्चा यानी थर्ड फ्रंट 2014 तक आते-आते बिखर गया. 2014 में फिर से एनडीए ने यूपीए के मुकाबले ज्यादा पार्टियों को जोड़ा. 2009 के मुकाबले 8 पार्टियों को गठबंधन में शामिल करते हुए 18 पार्टियों के साथ चुनाव लड़ते हुए 336 सीट जीतकर सरकार बनाई. गठबंधन लोकतंत्र के झुकाव पर कैसे हावी होता है इसका सबसे सीधा उदाहरण देखिए. बिहार में 2014 के चुनाव में जेडीयू 16 फीसदी वोट के साथ लोकसभा की केवल दो सीटें जीत पाई जबकि रामविलास पासवान की पार्टी महज साढ़े छह फीसदी वोट लेकर 6 सीट जीतने में सफल रही. यह दिखाता है कि चुनाव में पार्टियों की हवा से ज्यादा जीतने लायक गठबंधन होना जरूरी है. गठबंधन सरकार की सहयोगी छोटी पार्टियां भले ही संसद में ज्यादा संख्या में नहीं पहुंचीं मगर एक तय वोट बैंक का दूसरे क्षेत्र में बड़ी पार्टी को ज्यादा फायदा मिला. 1999 में भारी भरकम जीत के बावजूद अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार 2004 में हार गई. इंडिया शाइनिंग कैंपेन की विफलता के साथ-साथ बड़ी वजह गठबंधन से सात छोटे दलों का निकलना भी था. 1999 की 182 सीटों वाली बीजेपी को 2004 में महज 138 सीट हासिल हुईं. बीजेपी ने 2004 लोकसभा चुनावों में मिले झटके से सीख ली है और 2014 से आगे बढ़कर 2019 में गठबंधन को और विस्तार देने में जुट गई है. बिहार में लालू यादव और कांग्रेस के महागठबंधन के साथ एनडीए से जुड़े पुराने नेताओं खासकर उपेंद्र कुशवाहा और जीतनराम मांझी के आने से भी बीजेपी और नीतीश कुमार के लिए चुनौती बड़ी हो गई. 2004 में आरजेडी के नेतृत्व वाले कांग्रेस और राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी ने 40 में से 29 सीट जीत ली थीं. बीजेपी और जनता दल यूनाइटेड को केवल 11 सीट मिली थीं. 2019 में हालात बदल चुके हैं. पासवान एनडीए के साथ हैं लेकिन एनडीए के पूर्व सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा और जीतन मांझी यूपीए का हिस्सा बन चुके हैं. बीजेपी इन सीटों पर होने वाले संभावित नुकासान की भरपाई के लिए दक्षिणी राज्य तमिलनाडु और महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ फिर से गठबंधन का ऐलान किया है. कांग्रेस ने भी शरद पवार को साथ लेकर उतरने का फैसला किया है. महाराष्ट्र में एनडीए के बैनर तले शिवसेना और बीजेपी फिर से साथ आ चुके हैं. बीजेपी 25 और शिवसेना 23 सीटों पर लड़ने जा रही है. इस गठजोड़ के जवाब में कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानी एनसीपी ने हाथ मिलाया है. 1999 के खराब प्रदर्शन के बाद कांग्रेस और एनसीपी 2004 में भी साथ आए थे. 2004 में दोनों पार्टियों ने महाराष्ट्र की 23 सीटों पर जीत हासिल की थी. 2019 का चुनाव क्षेत्रीय पार्टियों के नाम होगा. गठबंधन के नेतृत्व वाली बड़ी पार्टियां इनके भरोसे ही बड़ी जीत हासिल करने की रणनीति बना रही हैं. राजनीतिक रूप से यह माहौल करीब-करीब 2004 जैसा है, जहां 1999 के बाद विपक्ष खासतौर पर यूपीए किसी भी तरह एनडीए को सत्ता से बाहर रखने के लिए आतुर था. |
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