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जब करपात्री जी मिले अघोरेश्वर अवधूत भगवान राम से

जब करपात्री जी मिले अघोरेश्वर अवधूत भगवान राम से
बात करीब  1957 की है, बाबा जशपुर पैलेस मे थे,उन दिनो राजा साहब के गुरू स्वामी करपात्री जी भी महल मे ही प्रवास कर रहे थे, दरअसल राजा विजयभूषण जू देव का प्रथम दर्शन बाबा से अष्टभुजी( विँध्याचल) मे हुआ था,वहाँ पर किसी ने किशोर अवधूत की महिमा के बारे मे राजपरिवार को बताया थाl, फिलहाल इस घटना के पहले बाबा २-३ बार जशपुर पैलेस राजासाहब के अनुनय विनय पर जा चुके थे

#स्वामी करपात्री जी एक दीर्घ अनुष्ठान के लिये जशपुर पैलेस मे आमँत्रित किये गये थे, ये अनुष्ठान था राजकुमार उपेन्द्र सिँह जूदेव की अकाल मृत्यु को रोकने का, जो कि राजा विजयभूषण के छोटे सुपुत्र थे, देश भर के सिद्ध ताँत्रको, महात्माओ साधको का जमावडा और आना जाना लगा हुआ था महल मे उनकी कुण्डली मे अकाल मृत्यु को रोकने के क्रम मे
राजासाहब से किसी ने विँध्याचल मे ही बताया था कि ये किशोर अवधूत अगर चाह देगा, तो ब्रह्माण्ड की कोई शक्ति नही उसे रोक सकती है, ये मै आपको challenge करता हूँ
तो बाबा अनुनय विनय पर महल मे जाने को तैयार हुये।
 
बाबा २० साल के थे, मशानी चादर ओढे हुये, पूरे शरीर मे भस्मि लगाये हुये,और एक हाथ मे बडा सा बाँस और एक हाथ मे खप्पर लिये राजा साहब के अम्बेस्डर कार से उतरे, बाबा के साथ २ लोग और थे, जो बराबर उनके साथ सेवा मे रहते थे, फिलहाल बाबा शाम को पहुँचे थे, यात्रा की थकान थी, बाबा के लिये विशेष तौर पर उनकी पसँदीदा मछली, भात और पकौडी राजा साहब ने बनवायी, बाबा खाकर अपने कमरे मे सो गये, सुबह बाबा उठे, नहाने धोने के पश्चात अपना बाँस और खप्पर लिये महल के बगीचे मे गये, जहाँ स्वामी करपात्री जी, राजा साहब, और राजपरिवार के लोग बैठे हुये थे, बाबा खप्पर लेके जैसे ही पहुँचे, राजासाहब ने तुरन्त साष्टाँग किया,और कुर्सी मे बैठने को निवेदन किया, लेकिन स्वामी करपात्री जी उठे नही अपने आसन से, अभी भी वो बाबा को समझ नही पा रहे थे, फिलहाल बाबा बैठ गये, और सबको बैठने के लिये आदेश दिये, पता नही क्या बात थी, कि औघड दानी महाप्रभु बार बार आसमान की ओर देख रहे थे, जैसे कि वो किसी की प्रतीक्षा आसमान मे कर रहे हो, राजा साहब ने कहा कि बाबा आप चाय पीजिये, बाबा ने चाय पीना शुरू कर आसमान की ओर ताकने लगे, और उधर स्वामी करपात्री जी बाबा से अपने अनुष्ठान और किये गये उपायो को बताने लगे

#एकाएक एक कबूतर आसमान की ओर उडता हुआ जा रहा था, बाबा की दृष्टि उस पर पडी और लोगो ने देखा कि बाबा ने अपने दृष्टि मात्र से ही उस कबूतर को पृथ्वी पर पटक दिया वो कबूतर आसमान से गिरकर पृथ्वी पर गिर पडा  और मर गया, उतने मे ही वहाँ  हडकम्प मच गया, लोगो ने सोचा बाप रे बाप इसके तो दृष्टि मात्र से ही पक्षी आसमान से पृथ्वी पर गिर पडा, बाबा ने सबके सामने कहा कि यही इसका मारण ग्रह था, जो आसमान मे विचरण कर रहा था, मैने अब इसको समाप्त कर दिया है,  बाबा कहे ” करपात्री जी अब तू कौनो हवन पूजन ना करा, काँहे से कि अब उ जवन ग्रह रहल उ हम अपने दृरष्टि से खत्म कइ देले बाँटी।

#इतने मे करपात्री जी बाबा से बहस करने लगे, कि कैसे औघड हैँ आप , जीव हत्या आपने कर दी, वो बाबा की लीला को नही समझ पा रहे थे, वो ये नही समझ पा रहे थे, कि साक्छात भगवान शिव अपने औघड दानी रूप मे उनके सामने खडे हैँ, उन्होने कहा कि मै ये कैसे मान लूँ कि ये कबूतर ही उसकी मृत्यु का प्रतीक था, तब बाबा ने कहा कि ठीक है लेकिन मै अभी  आपके प्रश्नो का उत्तर नही दूँगा, तब करपात्री जी ने कहा कि मै सब देख लूँगा, और आप केवल जीवन लेना जानते हैँ, क्या इस मरे हुये कबूतर को पुनरजिवित कर सकते हैँ, तब बाबा ने राजा साहब की ओर देखा, और कहा कि” काहो राजा का करीँ?

#जैसन तू कह” फिर हमे सब जनी दोष ना दीहाl

 तब बाबा ने अपनी दृष्टि मरे हुये कबूतर पर डाली, औघड दानी के दृष्टि मात्र से ही वो कबूतर खडा हो गया और फडफडाने लगा, ये देखकर स्वामी करपात्री जी को बडा आश्चर्य है कि बाप रे ” ये तो बडा असीम शक्ति वाला है, जिसके दृष्टि मात्र से ही मरा हुआ जीव जीवित हो गया और इसी प्रकार बाबा ने मारण ग्रह को नष्ट तो कर दिया, लेकिन करपात्री जी के हठ के आगे, बाबा विवश हो गये और १ साल बाद लाख अनुष्ठान करने के बाद भी राजकुमार उपेन्द्र सिँह जू देव की २४ साल की आयु मे मृत्यु हो गयी, और करपात्री जी अनुष्ठान करते ही रह गये और वो तभी बाबा के सामने नतमस्तक हुये ६४ साल की अवस्था मे और बाबा से कहे कि आप तो साक्षात शिव हैँ, प्रभु स्वयँ मेरे सामने थे, लेकिन मै उन्हे पहचान नही पाया।

करपात्री जी तभी से बाबा के बारे मे सार्वजनिक रूप से ये कहने लगे कि अवधूत जी तो साक्षात शिव हैँ
बाबा अनादि थे, अनन्त थे, सर्वव्यापी थे, करूणासागर थे, औघडदानी थे, महायोगी थे, शिवावतार थे, भक्तवत्सल थे, समस्त रहस्यो के ग्याता थे, सम्पूर्ण सिद्धियो के भण्डार थे, सम्पूर्ण ग्यान के भण्डार थे, सम्पुर्ण तन्त्रो के स्वामी थे,

१२ साल की आयु श्मशान के देवता भैरव समाहित हुये, सँगम तट पर साक्षात भगवती अन्नपूर्णा उनमे समाहित हुयीँ, प्रथम बार काशी आगमन पर साक्षात महाशक्ति ने उनका स्वागत किया और दिशानिर्देश भी दिया, गिरनार यात्रा के दौरान साक्षात दत्तात्रेय  उनमे समाहित हुये थे,
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