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सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद समलैंगिकता भले ही अपराध नहीं, पर समलिंगी विवाहों को मान्यता दूर

सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद समलैंगिकता भले ही अपराध नहीं, पर समलिंगी विवाहों को मान्यता दूर नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने भले ही समलैंगिकता को धारा 377 से हटाकर अपराध की श्रेणी से अलग करने का फैसला सुना दिया हो, पर ऐसी शादियों को कनूनी मान्यता शायद अभी नहीं मिलेगी. भाजपा के शीर्ष संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के रुख से यह साफ है. आरएसएस ने एक बयान जारी कर इस मुद्दे पर अपना रुख साफ कर दिया.  

आरएसएस ने साफ-साफ कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले की तरह वो भी समलैंगिकता को अपराध नहीं मानती है, लेकिन ऐसे संबंध को वह प्रकृति के खिलाफ मानती है, लिहाजा वो समलैंगिक शादियों का समर्थन नहीं करते हैं.

आरएसएस के प्रमुख अरुण कुमार ने एक बयान में कहा, ‘‘सुप्रीम कोर्ट के फैसले की तरह हम भी इसे (समलैंगिकता) अपराध नहीं मानते. ये संबंध प्राकृतिक नहीं होते इसलिए हम इस तरह के संबंध का समर्थन नहीं करते हैं.’’

समलैंगिकता को लेकर आरएसएस  का ये बयान काफी नपा तुला रहा. आरएसएस  ने इस मुद्दे पर अपनी साफ-साफ राय रख दी है, जबकि दूसरी तरफ बीजेपी ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. समलैंगिकता के मुद्दे पर संघ ने दो साल पहले के अपने विचार को दोहराया है.

समलैंगिकता को लेकर आरएसएस ने अपने रुख में नरमी साल 2016 में ही दिखाई थी. उस वक्त संगठन के तत्कालीन संयुक्त सचिव दत्तात्रेय होसबोले थे, जिन्हें बाद में महासचिव बना दिया गया.

मार्च 2016 में जयपुर में एक कार्यक्रम में भाग लेने के दौरान होसाबले ने घोषणा की थी कि समलैंगिकता को लेकर RSS का दृष्टिकोण अपराधीकरण वाला नहीं होना चाहिए और साथ ही वो इसका महिमामंडन भी नहीं करेंगें.

उन्होंने कहा, "समलैंगिकता को तब तक अपराध नहीं माना जाना चाहिए जब तक कि ये समाज में दूसरों के जीवन को प्रभावित न करे ... हम, आरएसएस में, व्यक्तिगत प्राथमिकताओं पर कभी चर्चा नहीं करते हैं".

दत्तात्रेय होसबोले के इस बयान के बाद आरएसएस में खलबली मच गई थी. आरएसएस को इस मुद्दे पर अपना रुख साफ करने को कहा गया. होसबोले ने अगले दिन ट्विटर पर इस मुद्दे पर सफाई दी. उन्होंने लिखा, ''समलैंगिकता मनोवैज्ञानिक का मामला है, जिसे अपराध के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. लेकिन समलैंगिक विवाह को बंद किया जाना चाहिए.''

इसी के तहत संघ ने एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद अपनी बात दोहराई. संगठन पर अपनी किताब, 'आरएसएस: ए व्यू टू द इनसाइड' के लेखक श्रीधर दामले और वॉल्टर एंडरसन ने भी संघ के बदलते दृष्टिकोण के बारे में विस्तार से बात की है. जहां उन्होंने समलैंगिकता और खान-पान के मुद्दों पर लिखा है.

किताब में एक जगह लिखा गया है, "भारत में तेजी से आर्थिक विकास के साथ-साथ पारंपरिक सामाजिक मूल्यों में भी बदलाव आ रहा है. हमारे कुछ वरिष्ठ नेताओं ने समलैंगिकता पर अपने तटस्थ विचार रखा है''

साल 2009 में जब दिल्ली हाईकोर्ट ने धारा 377 को हटाया था उस वक्त बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कहा था, "हम धारा 377 का समर्थन करते हैं, क्योंकि हम मानते हैं कि समलैंगिकता अप्राकृतिक चीज़ है.''

साल 2014 में जब सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता पर हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया था उस वक्त धारा 377 पर ऑर्गनाइज़र में लेख छपा था. इसमें लिखा था, "यूपीए सरकार की रिव्यू पेटिशन को खारिज सुप्रीम कोर्ट का एक साहसिक फैसला है. देश के मूल्यों को संरक्षित करने में एक मील का पत्थर है."
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