अविश्वास प्रस्ताव: अब मोदी सरकार के खिलाफ, पर क्या है इतिहास, कब गिरी सरकारें, बहस, मतदान और संख्याबल

अविश्वास प्रस्ताव: अब मोदी सरकार के खिलाफ, पर क्या है इतिहास, कब गिरी सरकारें, बहस, मतदान और संख्याबल नई दिल्लीः मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव पर बहस और मतदान शुक्रवार को होगा. लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने मॉनसून सत्र के पहले ही दिन विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव को मंजूरी दे दी. पिछले 15 साल में यह दूसरा अविश्वास प्रस्ताव है. इससे पहले 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के खिलाफ प्रस्ताव आया था जो गिर गया था. देश के संसद के इतिहास में अब तक करीब 26 बार अविश्वास प्रस्ताव आए हैं लेकिन दो बार ही विपक्ष को इसमें सफलता मिली है.

भारतीय संसद में पहली बार अविश्वास प्रस्ताव 1963 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के खिलाफ आया था. नेहरू के खिलाफ जेबी कृपलानी ने अविश्वास प्रस्ताव रखा था. कांग्रेस के दोबारा से अध्यक्ष न बनाए जाने के चलते जेबी कृपलानी ने पार्टी छोड़कर किसान मजदूर प्रजा पार्टी शुरू कर दी, जो बाद में सोशलिस्ट पार्टी के साथ मिलकर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी में बदल गई.

प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के तत्कालीन सांसद जेबी कृपलानी द्वारा नेहरू सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में 62 वोट और विरोध में 347 वोट पड़े. इस तरह से ये अविश्वास प्रस्ताव औंधे मुंह गिर गया.

नेहरू के निधन के बाद देश के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री बने. तीन साल के उनके कार्यकाल में विपक्ष के द्वारा तीन बार अविश्वास प्रस्ताव लाया गया, लेकिन एक बार भी विपक्ष को सफलता नहीं मिल सकी. इसके बाद सत्ता की कमान इंदिरा गांधी को मिली. शास्त्री के बचे हुए कार्यकाल को इंदिरा गांधी ने पूरा किया. इस दौरान उनके खिलाफ दो बार प्रस्ताव लाया गया.

भारतीय संसदीय इतिहास में सबसे ज़्यादा अविश्वास प्रस्ताव का सामना प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को करना पड़ा है. इंदिरा गांधी के खिलाफ विपक्ष 15 बार अविश्वास प्रस्ताव लाया, पर एक भी बार उसे कामयाबी नहीं मिली.

विपक्ष की ओर से सबसे ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव पेश करने का रिकॉर्ड मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सांसद ज्योति बसु के नाम है. उन्होंने अपने चारों प्रस्ताव इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ रखे थे.

भारत के संसदीय इतिहास में पहली बार विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव को सफलता 1978 में मिली.  आपातकाल के बाद हुए चुनाव में जनता पार्टी को बहुमत मिला और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने.  मोरारजी देसाई सरकार के कार्यकाल के दौरान उनके खिलाफ दो बार अविश्वास प्रस्ताव लाया गया.

पहले प्रस्ताव से उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई, लेकिन 1978 में दूसरी बार लाए गए अविश्वास प्रस्ताव में उनकी सरकार के घटक दलों में आपसी मतभेद थे. अपनी हार का अंदाजा लगते ही मोरारजी देसाई ने मत-विभाजन से पहले ही इस्तीफा दे दिया.

लाल बहादुर शास्त्री की तरह नरसिम्हा राव की सरकार को भी तीन बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा. 1993 में नरसिम्हा राव बहुत कम अंतर से अपनी सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को मात दे पाए.  नरसिम्हा सरकार के खिलाफ आए अविश्वास प्रस्ताव के वोटिंग में 14 वोट के अंतर से सरकार बची. हालांकि उनके ऊपर अपनी सरकार को बचाने के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसदों को प्रलोभन देने का आरोप भी लगा.

एनडीए सरकार के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने विपक्ष में रहते हुए दो बार अविश्वास प्रस्ताव पेश किए. वाजपेयी जब खुद प्रधानमंत्री बने तो उन्हें भी दो बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा. इनमें से पहली बार तो वो सरकार नहीं बचा पाए लेकिन दूसरी बार विपक्ष को उन्होंने मात दे दी.

1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को जयललिता की पार्टी के समर्थन वापस लेने से अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा था. तब वाजपेयी सरकार 1 वोट के अंदर से हार गई थी.  उन्होंने मतविभाजन से पहले ही इस्तीफ़ा दे दिया था. इसके बाद 2003 में वाजपेयी के खिलाफ लाए अविश्वास प्रस्ताव को एनडीए ने आराम से विपक्ष को वोटों की गिनती में हरा दिया था. एनडीए को 312 वोट मिले जबकि विपक्ष 186 वोटों पर सिमट गया था.

साल 2008 में सीपीएम मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाई थी. यह प्रस्ताव अमेरिका के साथ हुए परमाणु समझौते की वजह से लाया गया था. हालांकि कुछ वोटों के अंतर से यूपीए की सरकार गिरने से बच गई. अब मोदी सरकार के खिलाफ टीडीपी अविश्वास प्रस्ताव लाई है. शुक्रवार को अग्निपरीक्षा का दिन तय हुआ है.

मोदी सरकार को अपने सवा चार साल के कार्यकाल में पहली बार अग्निपरीक्षा से गुजरना पड़ रहा है. टीडीपी द्वारा मोदी सरकार के खिलाफ लाए अविश्वास प्रस्ताव पर शुक्रवार को चर्चा और वोटिंग होगी. सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों अपने खेमे को मजबूत करने में जुट गए हैं. पीएम मोदी जहां अपने सहयोगी दलों को साधने में जुटे हैं. वहीं, टीडीपी सहित कांग्रेस विपक्षी दलों को अपने साथ एकजुट करने में लगी है.

वैसे तो अंकगणित सरकार के पक्ष में है पर सोनिया गांधी पूछ रही हैं कि किसने कहा कि उनके पास नंबर नहीं हैं? इस पर बीजेपी सोनिया को उनके 1999 में किए गए इसी तरह के दावे की याद दिला रहा है जब उन्होंने 272 की संख्या अपने पक्ष में होने की बात कही थी. वैसे विपक्ष सिर्फ अलग-अलग मुद्दों पर सरकार के खिलाफ अपनी बात देश के सामने रखने के लिए यह प्रस्ताव लाया है. जैसे टीडीपी आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य के दर्जे की मांग कर रही है. वहीं कांग्रेस किसानों की दुर्दशा और अन्य नाकामियों को लेकर सरकार का असली चेहरा जनता के सामने रखना चाहती है. तृणमूल कांग्रेस भी इस प्रस्ताव के समर्थन में है.

वहीं बीजेपी को लगता है यह मौका होगा सरकार का रिपोर्ट कार्ड संसद के माध्यम से देश के सामने रखने का. बजट सत्र का दूसरा हिस्सा अविश्वास प्रस्ताव के मुद्दे पर ही ठप हो गया था, लेकिन इस बार सरकार पहले ही दिन मान गई. इसके पीछे कुछ खास वजह है. सबसे बड़ी यह कि बीजेपी चुनावी मोड में आ गई है. अमित शाह का मानना था कि अविश्वास प्रस्ताव का इस्तेमाल विपक्षी एकता की हवा निकालने और जनता के सामने सरकार की कामयाबियां गिनाने के लिए करना चाहिए. पिछली बार कांग्रेस-टीडीपी के अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में देर से मैदान में आई, लेकिन इस बार पहले ही दिन से साथ थी इसलिए प्रस्ताव के पक्ष में जरूरी पचास से अधिक सांसद थे. लिहाजा यह प्रस्ताव मान लिया गया.

सरकार को यह भी उम्मीद है कि विपक्ष जिन तमाम मुद्दों पर बहस चाहती है उन पर अविश्वास प्रस्ताव के दौरान चर्चा हो सकती है. इसलिए संसद न सिर्फ चलेगी, बल्कि जरूरी बिल भी पास कराए जा सकेंगे.

सरकार के साथ

545 सदस्यों वाली लोकसभा में मौजूदा समय में 532 सांसद हैं. यानी बीजेपी को बहुमत हासिल करने के लिए महज 267 सांसद चाहिए. लोकसभा अध्यक्ष को हटाकर बीजेपी के पास अभी 273 सदस्य हैं. इसके बावजूद मोदी सरकार किसी तरह का जोखिम उठाने के मूड में नहीं है. इसीलिए सहयोगी दलों के साथ भी बीजेपी बातचीत कर उन्हें साधने में जुटी है.

मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए के सहयोगी अकाली दल ने सरकार को समर्थन करने का ऐलान किया है. मौजूदा समय में अकाली दल के 4 सांसद हैं.

शिवसेना ने भी सरकार का साथ देने की बात कही है. पार्टी प्रवक्ता संजय राउत ने बुधवार को कहा था कि हमारी कोई मजबूरी नहीं है इसलिए हम सरकार के साथ रहेंगे. शिवसेना से पास मौजूदा समय में 18 सांसद हैं. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से बात की. इसके बाद शिवसेना ने अपने सांसदों को लोकसभा में उपस्थित रहने के लिए व्हिप जारी कर दिया है.

मोदी सरकार में मंत्री रामविलास पासवान की पार्टी एलजेपी ने भी सरकार के पक्ष में वोटिंग करने को कहा है. एलजेपी के 6 सांसद हैं.

इन दलों के अलावा मोदी सरकार को अपने अन्य सहयोगी दलों पर भी भरोसा है. इनमें आरएलएसपी के 3, जेडीयू के 2, अपना दल के 2 और अन्य सहयोगियों के 6 सदस्य हैं.

अविश्वास प्रस्ताव को एआईएडीएमके ने समर्थन न करने की बात कही है. एआईएडीएमके तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है. मौजूदा समय में 37 सांसद हैं. एआईएडीएमके का कदम बीजेपी के पक्ष में जाएगा.

खिलाफ ये दल

विपक्षी दलों की बात करें तो मौजूदा समय में लोकसभा में सबसे ज्‍यादा 48 सीटें कांग्रेस के पास हैं. कांग्रेस पूरी तरह से सरकार के खिलाफ खड़ी है. इसके अलावा अविश्वास प्रस्ताव लाने वाली टीडीपी के पास 16 सांसद हैं.

टीडीपी सांसद ने आम आदमी पार्टी के मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के घर जाकर समर्थन मांगा. इसके बाद आप ने अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन करने का ऐलान किया है. आप के 4 सांसद हैं.

सीपीएम के पास 9 सांसद हैं. माना जा रहा है कि पार्टी अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में है. इसी तरह सपा की तरफ से खुलकर कोई बात नहीं कही गई लेकिन जिस तरह से पार्टी का रुख रहा है. इससे साफ है कि सपा सरकार के खिलाफ वोट करेगी. सपा के 7 सांसद हैं.

विपक्षी दलों की बात करें तो मौजूदा समय में लोकसभा में सबसे ज्‍यादा 48 सीटें कांग्रेस के पास हैं. अविश्‍वास प्रस्‍ताव लाने वाली टीडीपी के पास 16 सीटें हैं, जबकि जेडीएस के 1, एनसीपी के 7, आरजेडी के 4, टीएमसी के 34, सीपीआईएम के 9, सपा के 7 सदस्य हैं. इसके अलावा आम आदमी के 4, टीआरएस के 11, वाईएसआर कांग्रेस के 4,एयूडीएफ के 3 और बीजेडी के 20 सदस्य हैं. इन्हें मिला लेते हैं फिर भी 268 के आंकड़े को छू नहीं पा रहे हैं. इस तरह साफ है कि सदन में अविश्वास प्रस्ताव का औंधे मुंह गिरना तय है.

इन पर नजर

अविश्वास प्रस्ताव को लेकर टीआरएस ने अभी कोई फैसला नहीं लिया है. पार्टी शाम तक निर्णय लेकर बताएगी. मौजूदा समय में टीआरएस के 11 सांसद हैं.

टीआरएस की तरह बीजेडी ने अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है. बीजेडी के पास 20 सांसद हैं और पार्टी ने अपने सांसदों को संसद में उपस्थित रहने के लिए व्हिप जारी किया है.

नहीं खोले पत्ते

मोदी सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर टीएमसी ने अभी तक पत्ते नहीं खोले हैं. हालांकि माना जा रहा है कि वह सरकार के खिलाफ ही रहेगी. टीएमसी के 34 सांसद हैं. इस तरह से एनसीपी ने अभी तक कोई फैसला सामने नहीं आया है. एनसीपी के 7 सदस्य हैं. एयूडीएफ के 3 सांसद हैं और पार्टी ने अभी फैसला नहीं लिया है.

हालांकि विपक्ष मान रहा है कि चुनावी साल में कई बीजेपी सांसद व्हिप के बावजूद या तो गैरहाजिर या फिर प्रस्ताव के पक्ष में वोट डाल कर बीजेपी को झटका दे सकते हैं. इनमें शत्रुघ्न सिन्हा, कीर्ति आजाद, सावित्री फुले, राजकुमार सैनी, अशोक दोहरे, छोटेलाल आदि का नाम लिया जा रहा है जो पार्टी से नाराज़ चल रहे हैं. इसके अलावा भोला सिंह समेत दो सांसद बीमार हैं. कीर्ति वर्धन सिंह विदेश में हैं. हालांकि बीजेपी का दावा है कि सावित्री फुले को छोड़ बाकी सब प्रस्ताव के विरोध में वोट देंगे.

उधर, बीजेपी की कोशिश विपक्षी एकता में सेंध लगाने की है. वह चाहती है कुछ विपक्षी सांसद वैसे ही खुल कर बगावत कर दें जैसी उन्होंने उपराष्ट्रपति चुनाव में की थी. तो सवाल यह है कि जब अंकगणित पूरी तरह से बीजेपी के पक्ष में है तब विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाकर क्या हासिल करना चाहता है? इस प्रस्ताव के बाद का फायदा किसे मिलेगा? सरकार को या विपक्ष को?

आरजेडी ने अविश्वास प्रस्ताव पर पार्टी नेताओं से निर्णय करने के बाद फैसला करने की बात कही है. पार्टी नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि ये निश्चित है कि मोदी सरकार 2019 में वापस नहीं आएगी. उन्होंने कहा कि मोदी को याद रखना चाहिए कि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार भी एक बार गिर चुकी है. आरजेडी के 4 सांसद हैं.
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